नोटबंदी पर राष्ट्रपति

नोटबंदी पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की टिप्पणी चौंकाने वाली है। राष्ट्रपति की आशंका है कि नोटबंदी से अस्थायी मंदी पैदा हो सकती है। पहला सवाल तो यह है कि राष्ट्रपति का यह आकलन किन तथ्यों और आंकड़ों पर आधारित है? अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों तक ने आर्थिक मंदी की बात नहीं की है, बल्कि अर्थव्यवस्था में एक अंतराल तक सुस्ती की संभावनाओं के बावजूद हमारी आर्थिक विकास दर 6.8 फीसदी आंकी है। मोदी सरकार इसे 7.1 फीसदी से ज्यादा मान रही है। अकसर राष्ट्रपति ऐसा बयान नहीं देते हैं। यदि कोई टिप्पणी करनी भी है, तो वह केंद्र सरकार की सलाह ही लेते हैं। आधार सामग्री, आधार विचार केंद्र सरकार ही मुहैया कराती रही है। राष्ट्रपति ने राज्यपालों और उप राज्यपालों के साथ वीडियो संवाद के दौरान यह टिप्पणी की है कि नोटबंदी से अस्थायी मंदी पैदा हो सकती है। गरीबों की तकलीफों को लेकर हमें ज्यादा सजग रहना होगा। कहीं ऐसा न हो कि दीर्घकालिक प्रगति की उम्मीद में उनकी यह तकलीफ बर्दाश्त से बाहर हो जाए। गरीबों को राहत देने में तेजी लाए जाने की जरूरत है, ताकि भूख, बेरोजगारी और शोषण मुक्त समाज बनाने के लिए किए जा रहे राष्ट्रीय प्रयासों में वे सक्रिय भागीदारी निभा सकें। राष्ट्रपति की चिंता कई स्तरों पर उचित लगती है, लेकिन नोटबंदी के संदर्भ में उनका सरकार-विरोधी बयान है। जबकि राष्ट्रपति उसे ‘मेरी सरकार’ कहकर संबोधित करते रहे हैं। बेशक नोटबंदी का असर उद्योगों, कारोबारियों और मजदूरों पर पड़ा है। करीब 10 करोड़ मजदूर बेरोजगार होकर अपने गांवों की ओर पलायन कर गए हैं। ये असंगठित क्षेत्र के आंकड़े हैं, आर्थिक मंदी के सूचकांक नहीं हैं, क्योंकि यह अस्थायी स्थिति है। मजदूर हुनरमंद जमात है, जो कहीं भी अपने लिए धंधा तलाश कर सकती है। यह स्थिति तभी तक थी, जब नकदी का घोर संकट था। बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारें थीं। उसके बावजूद पैसा मिलना अनिश्चित था। लिहाजा मजदूर गांव चले गए, क्योंकि फैक्टरी या ठेके के मालिक के पास भी नकदी नहीं थी। अब स्थिति संवरने लगी है, तो वे काम पर लौट सकते हैं। जो आंकड़े सामने आए हैं, उनमें करीब छह करोड़ किसान भी और करीब 20 लाख छोटे दुकानदार, कारोबारी भी नोटबंदी से प्रभावित हुए हैं, लेकिन किसानों के लिए मोदी सरकार लगातार चिंतित है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने नववर्ष की पूर्व संध्या पर घोषणा की थी कि अब 3.5 करोड़ किसान कार्ड ‘रूपे कार्ड’ में बदले जाएंगे, ताकि किसान जब भी चाहें, खरीद-बिक्री कर सकें। नाबार्ड और सहकारी बैंकों के जरिए किसानों को कर्ज मुहैया कराने की भी घोषणा प्रधानमंत्री ने की थी। किसानों के कर्ज पर 60 दिन का ब्याज माफ किया जाएगा और उसे सरकार भरेगी। राष्ट्रपति ने भूख और बेरोजगारी का जिक्र तो किया है, लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश के करीब छह करोड़ नागरिक बेरोजगार हैं। यह स्थिति नोटबंदी की उपज नहीं है, बल्कि सात दशकों के कुशासन और गलत नीतियों का ही नतीजा है। अब मोदी सरकार इससे लड़ेगी और स्थितियों को संवारने की कोशिश करेगी। बेशक नोटबंदी से उद्योग और छोटे दुकानदार भी प्रभावित हुए हैं। आपसी बातचीत में वे कहते हैं कि 40 से 70 फीसदी धंधा ढक्कन हो गया है, लेकिन दुकानें भी खुली हैं और वे हररोज का खुदरा कारोबार कर रहे हैं। उद्योगों को बड़े ग्राहकों की प्रतीक्षा है। वे भी आने लगे हैं। गली-मोहल्ले, सड़क और स्थानीय इलाकों में फुटपाथ और रेहडि़यों पर जो धंधा कर रहे थे, वे बदस्तूर जारी रखे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने ही यह आंकड़ा गिनाया था कि बीते साल मुद्रा लोन योजना के तहत करीब 3.5 करोड़ लोगों ने कर्ज लिया, ताकि वे अपने धंधे को विस्तार दे सकें। इसके अलावा, किसी भी राज्य से सामूहिक स्तर पर भूखों मरने की कोई खबर नहीं है। सवाल है कि आर्थिक मंदी के कौन से आसार थे, जिनके आधार पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इतनी बड़ी आशंका जताई? अलबत्ता राष्ट्रपति ने यह जरूर माना है कि नोटबंदी से काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। लिहाजा विरोधियों की जुबान बंद होनी चाहिए, जो लगातार सवाल करते रहे हैं कि कितना काला धन निकला, सरकार बताए? बेशक मोदी सरकार को देश को बताना भी चाहिए कि आखिर नोटबंदी के फलितार्थ क्या रहे? लेकिन उसके लिए सरकार को कुछ समय दिया जाना चाहिए। संसद का बजट सत्र बहुत दूर नहीं है। संभव है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली अपने बजट भाषण में खुलासा करें कि काला धन, जाली नोट, भ्रष्टाचार आदि को लेकर सरकार ने, नोटबंदी के जरिए, क्या हासिल किया! कमोबेश राष्ट्रपति को किसी असंभव संभावना को लेकर अपनी टिप्पणी सार्वजनिक नहीं करनी चाहिए। वह प्रधानमंत्री के साथ गुफ्तगू के दौरान ऐसी आशंकाएं जता सकते हैं, जिनका माकूल जवाब भी मिलेगा।