संपादकीय

हिमाचल में कांग्रेस का नया युग, बीते कल से मुकाबला कर रहा है। जाहिर है भाषण और भाषा सडक़ की सभ्यता में नए उच्चारण तक पहुंच गई है या राजनीति का मनोविज्ञान अब बोलने की नई परिभाषा है। आगामी लोकसभा चुनाव की फांस में सरकार, सत्ता और कांग्रेस के बीच नए अफसाने जन्म ले रहे

जनादेश का लोकतांत्रिक पर्व एक बार फिर आया है। यह ऐसा पर्व है, जब देश की आम जनता वोट देकर लोकतंत्र को जिंदा रखती है और इस तरह देश के गणतंत्र और संविधान भी प्रासंगिक रहते हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनावी पर्व भी व्यापक और गहरा होता है। करीब 97 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर 18वीं लोकसभा, विधानसभाओं और अंतत: भारत सरकार का निर्वाचन करेंगे। इससे बड़ा लोकतंत्र और क्या हो सकता है? इतना विशाल और विराट लोकतंत्र अपने अस्तित्व के खतरे में कैसे हो

राष्ट्रीय चुनाव की कसौटी के बीच हिमाचल की अपनी भी एक पड़ताल अवश्यंभावी दिखाई दे रही है। भले ही आज यानी 18 मार्च में वक्त की सूइयां सुप्रीम कोर्ट से मुखातिब हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव के साथ उपचुनाव के दस्तावेज तैयार हैं। राजनीतिक घटनाक्रम किसको दगा दे गया या आगे चलकर उपचुनाव किस करवट बैठेंगे, यह कयास लगाना इतना भी आसान नहीं कि हम

आय प्रमाणपत्र की जरूरत पर आम आदमी के अधिकार अगर अदालत के दरपेश सरकारी कार्यसंस्कृति का निकम्मापन साबित हो सकते हैं, तो जनता की व्यथा का अंदाजा लगाया जा सकता है। माननीय हाई कोर्ट ने आनी के तहसीलदार की कार्यशैली पर प्रतिकूल टिप्पणी नहीं, बल्कि सरकारी व्यवस्था के कर्ताधर्ताओं पर गंभीर प्रश्र चिन्ह लगाए हैं। हैरानी यह कि तमाम गारंटियों, सु

भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने ‘एक देश, एक चुनाव’ पर अपनी रपट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। यह रपट व्यापक विमर्श का महादस्तावेज है, लिहाजा यह संदेह करना कि देश में एक ही पार्टी काम करेगी या 2029 के बाद देश में चुनाव ही नहीं होंगे, फिजूल और पूर्वाग्रह है। करीब 7 माह के दौरान 65 बैठकें की गईं, 11 रपटों का अध्ययन किया गया और

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की व्याख्या ही बदलने की कोशिश की है। उन्होंने कुछ सवाल उठाए हैं, जो भावोत्तेजक हैं। उनकी मंशा हिंदू-मुसलमान से आगे बढक़र आर्थिक संसाधनों और स्थितियों पर केंद्रित करने की है, ताकि राजनीति की दिशा और दशा बदली जा सके। हालांकि ऐसी संभावनाएं नगण्य हैं। संयुक्त राष्ट्र नागरिकता को व्यक्तिपरक सुरक्षा का बुनियादी तत्त्व मानता है और प्रताडि़त, शोषित, मानवाधिकार कुचलन के शिकार लोगों को ‘शरणार्थी’ के तौ

सियासत के अद्भुत प्रतीक और शिनाख्त के पद्चिन्हों में राजनीतिक सपूत चुनने की कवायद में आगामी लोकसभा चुनाव की दृष्टि सामने आ रही है। पांचवीं बार हमीरपुर लोकसभा के अपने अभेद्य दुर्ग पर अनुराग ठाकुर को भाजपा, लोकसभा में मुकाम दिखा रही है। शिमला से सुरेश कश्यप पर भरोसा जताने के बावजूद मंडी का जौहर दिखाने में भाजपा की सियासी किफायत और कांगड़ा की

पार्टी आलाकमान का ऐसा एकाधिकार भी किसी लोकतंत्र का हिस्सा होता है, हमें याद नहीं है, लेकिन देश की सबसे बड़ी और सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा और एकाधिकार से ही संचालित होती है। प्रधानमंत्री की अचानक इच्छा हुई, तो हरियाणा के उस मुख्यमंत्री को, कुछ ही घंटों में, बदल दिया गया, जिसे जनादेश हासिल था। यह जनादेश अक्तूबर, 2024 के अंत तक का था। 2019 का विधानसभा चुनाव जिसके नेतृत्व में लड़ा गया और 41 विधायक जीत कर आए। यही नहीं, जो शख्स प्रधानमंत्री

कुछ तो शुक्रिया अदा शराब की बोतल का करें, जिसकी बदौलत प्रदेश का चूल्हा जलेगा। कोशिश हर बोतल से पूछ रही है कि इस बार कमाई के छबील पर कितना नशा बहेगा। ठेकेदारों की खिदमत में बोलियां लगाता आबकारी विभाग अपने सिर की जुएं निकाल देगा और फिर यूनिट दर यूनिट, इस महफिल में कमाने का जरिया, हमारी ही दरिद्रता के सामने अमीर हो जाएगा। पिछले दस महीनों में जिन लोगों ने नौ