प्रशासन में कर्म की परीक्षा कभी मुकम्मल नहीं होती, फिर भी व्यवस्था की आपूर्ति में अधिकारियों के जिम्मे किसी भी सरकार का पूरा कालखंड होता है। हर अधिकारी के फर्ज में सरकार का रुतबा गूंजता है और अगर यही नगीने खनक जाएं तो छवि की पताका पर संदेह होना लाजिमी है। सरकारों का अपना-अपना ट्रांसफर काल भी दिखाई देता है। हम इसे पटवारी से लेकर राज्य के मुख्य अधिकारी तक देख सकते हैं। लोग बेहतर समीक्षक होते हैं और कई बार सरकारों के ट्रांसफर आर्डरों का विरोध भी करते हैं, लेकिन जनापेक्षाएं भी सियासत की तरह अकसर मोम नहीं होतीं। नुकीले प्रश्रों की आबरू में सबसे ज्यादा पैमाइश और आजमाइ
पुलिस महकमे से पुलिस कर्मी के आंगन तक सुधार की गुंजाइश का एक नजरिया, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश से निकला है। माननीय अदालत ने पुलिस पहरे की शिनाख्त में श्रम की आरजू और श्रम की सीमा को रेखांकित किया है।
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने रहस्योद्घाटन किया है कि पाकिस्तान पिछले तीन दशकों से अमरीका, ब्रिटेन और पश्चिमी देशों के लिए आतंकवाद जैसा ‘गंदा धंधा’ कर रहा था। हमने आतंकियों को पालने-पोसने...
शहरी स्वच्छता के पैमानों में दम भरते हुए हिमाचल ने अपने नगरीय जीवन की नब्ज टटोली है। सूची के शिखर पर सोलन, तो अंतिम आठवें स्थान पर हमीरपुर रहा। आश्चर्य यह कि शिमला की स्वच्छता के अलंकार भी केवल सांतवां स्थान अर्जित कर पाए, जबकि धर्मशाला दूसरे स्थान पर रहा। स्वच्छ शहर-समृद्ध शहर की परिकल्पना में नगर निगमों की जमीन पर, शहरों की यह व्याख्या बता रही है कि इस सफर की कहानी कठिन है। यही सर्वेक्षण राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल के शह
यकीनन कश्मीर बदला है। पहलगाम में तो सडक़ों पर और होटलों में सन्नाटा पसरा है। दुकानों पर ताले लटके हैं। लोग मानसिक तौर पर आहत हैं, क्योंकि कश्मीरियत के मेहमानों के कत्ल किए गए हैं। उनकी परंपराएं छिन्न-भिन्न हुई हैं। कश्मीर में सैलानियों को इस तरह कभी भी निशाना नहीं बनाया गया। कश्मीर के पेट पर लात मारी गई है। श्रीनगर के ऐतिहासिक ‘लाल चौक’ पर जो विरोध-प्रदर्शन किए गए, उनमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, डोगरा आदि सभी समुदायों के चेहरे दिखाई दे रहे थे। डल लेक पर शिकारे बंद पड़े हैं और वे सामूहिक तौर पर आतंकवाद को खारिज कर रहे हैं। जिन हाथों में कभी पत्थर और ‘हिंदुस्तान विरोध’ की तख्तियां होती थीं, आज उन हाथों में ‘तिरंगा’ लहरा रहा है। कारगिल से कन्याकुमारी तक गुस्सा और आक्रोश एक जैसा ही है। प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन यकी
कश्मीर घाटी के पहलगाम आतंकी हमले की प्रतिक्रिया में भारत की मोदी सरकार ने पाकिस्तान पर वज्र-प्रहार किए हैं। राजनयिक संबंध लगभग तोड़ दिए गए हैं और 1960 की ऐतिहासिक सिंधु जल संधि तुरंत प्रभाव से स्थगित कर दी गई है। यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी। अब पाकिस्तान वालों को भारत आने का, किसी भी तरह का, वीजा नहीं दिया जाएगा। सार्क देश होने के कारण जो छूट थी, उसे भी रद्द कर दिया गया है। राजनयिकों को भारत छोडऩे को मात्र एक सप्ताह का वक्त दिया गया है। नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान के उच्चायोग में रक्षा, नौसेना, वायुसेना, थलसेना आदि के सलाहका
प्रतिवर्ष गर्मियों के मौसम में हिमाचल में आगजनी की घटनाएं बढ़ जाती हैं। आग से उठने वाले जहरीले धुएं से पर्यावरण संतुलन गड़बड़ा जाता है। इससे मौसम के घटनाक्रम पर भी विपरीत असर पड़ता है। जंगलों में आग लगने से करोड़ों रुपयों की वन-संपदा, सरकारी एवं निजी संपत्ति का नुकसान होता है। कई लोग जिंदा अपने ही आशियाने में झुलस कर भगवान को प्यारे हो जाते हैं तथा हजारों वन्य प्राणी तड़प-तड़प कर स्वाहा हो जाते हैं। असंख्य जंगली जानवरों के बच्चे एवं पक्षियों के अंडे धू-धू कर जलते हैं। कई बार जंगल की आग बस्तियों तक भी पहुंच जाती है। इससे निजी संपत्ति का नुकसान भी करोड़ों में होता
एक तस्वीर मीडिया के जरिए दुनिया के सामने आई है। सबसे त्रासद, दर्दनाक और नरसंहार को बयां करती तस्वीर...! एक नवविवाहिता की कलाइयों पर लाल रंग का चूड़ा है, उंगली में अंगूठी है, लेकिन वह अपने पति के शव के पास गुमसुम बैठी है। उसके भीतर न जाने कितने अंधड़ उमड़ रहे होंगे! आतंकी हमले ने एक नवविवाहित जोड़े की जिंदगी ही काली कर दी। कश्मीर में पहलगाम जिले के बैसरन घसियाले मैदान में आतंकियों ने हमला किया है। यह हमला ही नहीं, बल्कि दानवी नरसंहार है, जिसमें 28 निहत्थे, निर्दोष, मासूम पर्यटकों को, मात्र 20 मिनट में ही, लाश बना दिया गया। बैसरन घाटी पहलगाम से करीब 7 किमी दूर है। एक बेहद खूबसूरत घास का मैदान, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ कहते हैं, लेकिन आतंकियों ने उसे भी खून से लथपथ कर बदनाम कर दिया। पहल
ईसाई धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस, अंतत:, यीशु मसीह के घर लौट गए। दुनिया के 1.2 अरब ईसाइयों के लिए यह शोकाकुल घड़ी है। जीवन और मौत नियति के अपरिहार्य फैसले हैं, लेकिन ऐसे धर्मगुरु की अंतिम विदाई भावुकता और करुणा से भर देती है, जो आजीवन परमाणु हथियारों और युद्धों का विरोध करते रहे। पोप ने परमाणु हथियार बनाने और उन्हें रखने को भी ‘अनैतिक अपराध’ करार दिया था। पोप फ्रांसिस ईसाई, रोमन कैथोलिक चर्च के ही धर्मगुरु नहीं थे, बल्कि दुनिया उन्हें ‘ईश्वर का रूप’ मानती थी। उन्हें ‘यीशु मसीह’ का ही प्रतिरूप माना गया। पोप हमेशा मानवीय, नागरिक, धा