संपादकीय

ललित कलाओं में संगीत यानी गायन, वादन एवं नृत्य की त्रिवेणी को श्रेष्ठतम माना जाता है। जहां शास्त्रीय संगीत में खुले चिंतन, मनन, ध्यान तथा कल्पना की स्वतंत्रता है, वहीं पर कड़े नियमों का भी बंधन होता है।

सदन के भीतर मीडिया खुद को अंगीकार कर सकता है, बशर्ते उसके भीतर अपने प्रोफेशन की नैतिकता का सदन हो। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू बनाम विधायक रणधीर शर्मा के रास्ते पर हिमाचल का मीडिया...

भारत सरकार के डाटा ने 2024-25 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में आर्थिक विकास दर 6.7 फीसदी बताई थी, लेकिन विश्व बैंक का आकलन सामने आया है कि इस साल भारत की बढ़ोतरी दर 7 फीसदी रहनी चाहिए।

पश्चिम बंगाल विधानसभा में ‘अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक’ (आपराधिक कानून एवं संशोधन) सर्वसम्मति से पारित किया गया। कोलकाता आरजी कर अस्पताल में डॉक्टर बिटिया के रेप-मर्डर के बाद जो तनाव, गुस्सा, आक्रोश और विरोध-प्रदर्शन बंगाल के कई हिस्सों में देखे गए हैं, उन्हें शांत करने का यह एक सियासी प्रयास है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आशंका है कि इतने व्यापक विरोध से उनका परंपरागत जनाधार बिखर सकता है, लिहाजा बलात्कार, हत्या, यौन उत्पीडऩ की कड़ी सजाओं के मद्देनजर उन्हें यह बिल पारित कराना पड़ा। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने भी बिल का समर्थन किया, क्योंकि यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है। अलबत्ता यह दिखावे का बिल साबित होगा और ‘राष्ट्रपति भवन’ में लटक कर रह सकता है। दरअसल कोई भी राज्य केंद्री

करमुक्त मानसिकता के आलोक में दौड़ती हिमाचल की गाड़ी अचानक पहियों से बाहर निकल गई और यकीन न हो तो नब्बे हजार करोड़ के कर्ज में डूबे ‘विचित्र आशावाद’ के गड्ढे देख लेना। आश्चर्य यह कि हमारा नागरिक समाज केवल सरकार की अभिलाषा में जीता है। निजी शान के लिए प्रगति, इम्तिहान के लिए सरकारें। क्या आप गिन सकते हैं कि पिछले एक दशक में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति वाहन, जेसीबी मशीनें, सीमेंट-सरिया, ब्रांडेड कपड़े और खानपान के लिए फूड चेन का चयन हमने किया। हम अगर पिछड़े हैं तो प्रदेश को वांछित कर चुकाने में ही देश भर में पीछे हैं। हम शहरी मानसिकता से ओतप्रोत गांव

हालांकि यह कानून की स्थिति है, लेकिन ज्यादातर मामलों में इसका उल्लंघन हो रहा है। हम अवैध निर्माण या अतिक्रमण को संरक्षण देने के पक्ष में नहीं हैं। कोई व्यक्ति, किसी भी केस में, आरोपित है अथवा सजायाफ्ता भी हो सकता है, किसी का बेटा अडिय़ल या अपराधी हो सकता है, लेकिन किसी भी सूरत में बुलडोजर चला कर उसका घर नहीं गिराया जा सकता। यह लोकतांत्रिक नहीं, मध्यकालीन, कबिलाई इंसाफ है। घर किसी के भी मानवाधिकार से जुड़ा है। यह मौलिक अधिकार भी है। आप ‘न्याय’ के नाम पर किसी का आशियाना नहीं छीन सकते। घर में आरोपी या अपराधी के अतिरिक्त और भी परिजन रहते हैं। वे अचानक सडक़ पर क्यों आएं? उन्होंने तो कोई अपराध नहीं किया। यह अपराध और दंड की किसी भी परिभाषा में नहीं है कि अपराधी के साथ-साथ उसके घरवाले भी सजा भुगतें। यदि निर्माण अवैध है, तो कानूनन कार्रवाई की जानी चाहिए। घर का ध्वस्त करना बिल्कुल भी कानूनन कार्रवाई नहीं है। अब स

बहस के विषयों में राजनीतिक नापतोल अक्सर उचित-अनुचित पर गौर न करके, संभावनाओं की मर्यादा को गौण कर देता है। प्रदेश में आर्थिक संकट पर विधानसभा के मुख्य द्वार पर एक महीन सी लक्ष्मण रेखा है, जो हर वाकआउट के तर्क में आर्थिक विडंबनाएं देखती है। प्रश्नकाल के सवाल पर प्रदेश का हाल देखती है। बजट में अकाल और खर्च में भूचाल देखती है। सवाल यह कि हिमाचल ने अपनी अर्थव्यवस्था को न देखा और न ही जानने की कोशिश की। केंद्र की नीतियों के

चालू वित्त-वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में आर्थिक विकास दर 6.7 फीसदी रही है। यह बीती पांच तिमाहियों में सबसे कम है। भारतीय रिजर्व बैंक ने जो अपेक्षाएं की थीं और अनुमान लगाए थे, उनके मुताबिक आर्थिक बढ़ोतरी 7.1 फीसदी से भी कम रही है। कृषि, विनिर्माण, औद्योगिक उत्पादन, होटल, रियल एस्टेट, परिवहन आदि क्षेत्रों में या तो आर्थिक बढ़ोतरी कम हुई है अथवा नरम, शांत रही है, लेकिन निर्माण, इस्पात, निजी गैर-वित्तीय सूचीबद्ध कंपनियों, सेवा क्षेत्रों में आर्थिक उछाल देखा गया है। यह बढ़ोतरी इतनी अधिक भी नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन

आरोपों की जिरह में यथार्थ कम नहीं, लेकिन हम हैं कि हमें अपने फटेहाल पर यकीं नहीं। जी हां! फटेहाल हिमाचल का जिक्र नब्बे हजार करोड़ का कर्ज कर रहा है, लेकिन हमारी भाषा में ऐसी आवाज को न सुनने की गुस्ताखी भरी है। अगर डेढ़-दो साल की सुक्खू सरकार को 24176 करोड़ का कर्ज उठाना पड़ गया, तो किस खजाने की कसम खाकर बोलें कि ‘पहले सब चंगा सी’। हिमाचल के नखरे और हर चुनावों के वादों ने हजामत कर दी, लेकिन हुजूम अंधेरे से गुजर कर भी परेशान नहीं। नागरिक समाज को सिर्फ अपनी औकात चाहिए, राजनीति को बदलाव चाहिए, मगर राज्य को जर्जर हालात पर भी रोना नहीं आता। हम यह नहीं कह सकते कि जो आ