संपादकीय

‘जुड़ेगा भारत, जीतेगा इंडिया’...यह नारा विपक्षी गठबंधन के आपसी रिश्तों और मजबूत गठबंधन को परिभाषित करना चाहिए, लेकिन सटीक नहीं बैठता। यह महज एक जुमला-सा लगता है, क्योंकि गठबंधन के घटकों की हकीकत में गंभीर विरोधाभास हैं। ताजातरीन घटनाक्रम पंजाब का है। कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने दावा किया कि सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के 32 विधायक उनके संपर्क में हैं। कांग्रेस सभी 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। यदि हमारी सरकार बनी, तो 2 महीने में ही ‘आप’ की सरकार गिर जाएगी। यह राजनीतिक बयान हो सकता है, लेकिन गठबंधन का आभास तक नहीं होता। यह भाषा परम दुश्मन राजनीतिक दल की है। बवाल तब गंभीर हुआ, जब पंजाब के कांग्रेस विधायक सुखपाल खैरा को नशीले

सिफ्ट कौर सामरा 50 मीटर राइफल की निशानेबाजी की नई एशियाई चैम्पियन बनी हैं, लेकिन वह विश्व चैम्पियन भी हैं, क्योंकि उन्होंने एक साथ विश्व रिकॉर्ड और एशियन रिकॉर्ड स्थापित कर स्वर्ण पदक जीता है। उन्होंने 469.6 अंक हासिल कर विश्व कीर्तिमान रचा है। 1986 में सोमा दत्ता ने इसी 3 पोजिशन में, सियोल एशियन खेलों में, रजत पदक जीता था, लिहाजा ऐसी कामयाबी वाली, सभी

हिमाचल में राजनीतिक कारीगिरी से पर्यटन क्षेत्र को देखा जाता रहा है और इससे सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग भी हुआ। इसमें दो राय नहीं कि एचपीटीडीसी के माध्यम से आरंभिक दौर में बनी होटल इकाइयों की भूमिका कारगर सिद्ध हुई, लेकिन धीरे-धीरे इस मद में आया धन व्यर्थ होता गया। आज भी पर्यटन निगम की कुछ इकाइयां अलाभकारी हैं, तो पर्यटन सूचना केंद्र ताले में बंद हैं। अधिकांश कैफेटेरिया बंद हो गए या सरकारों ने बेच दिए, फिर भी पर्यटन की परिकल्पना में हिमाचल ने दक्षता व विशिष्टता हासिल

जिस तरह पाकिस्तान आतंकियों की ‘पनाहगाह’ है, कनाडा भी उसी राह पर है। पंजाब में जो नौजवान मौजूदा व्यवस्था से नाराज हैं और लंबे वक्त से बेरोजगार हैं, उन्हें खालिस्तान-समर्थक एक खास चि_ी देते हैं। उसके आधार पर उन्हें आसानी से कनाडा का वीजा मिल जाता है। लोक

पर्यटन की संभावना में गुणवत्ता लाने के लिए यह आवश्यक है कि हिमाचल उच्च श्रेणी के सैलानियों को आकर्षित करने के काबिल बने। यह मात्रात्मक दृष्टि से कहीं भिन्न प्रदेश की अधोसंरचना, कनेक्टिविटी तथा समूचे पर्यटन क्षेत्र की मार्किटिंग से जुड़ा सवाल है। सुक्खू सरकार ने यूं तो पर्यटन के प्रति अपनी प्राथमिकताओं का उल्लेख किया है, लेकिन पांच करोड़ सैलानियों के आंकड़े पर टिकी तवज्जो केवल मात्रात्मक दृष्टि का विस्तार करती है। हमें सैलानियों का रेवड़ नहीं, बल्कि हाई एंड टूरिज्म की तलाश करनी है। उन संभावनाओं को परिष्कृ

हिमाचल प्रदेश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का एक प्रहरी ‘दिव्य हिमाचल’ अखबार की मुख्य लाइन ‘कत्र्तव्य पथ पर चलकर बनें बदलाव का जरिया’ पढक़र पिछले दिनों आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय द्वारा कही गई ‘मन की बात’ का सारांश जाना। सारांश एक..भारतवासी, क्षेत्रवासी अपने पर्यटन तीर्थों, क्षेत्रों को जानें, साथ में जानें वहां के इतिहास की सार्थकता, सिद्धता सिद्धांत और उसे मजबूत करें ताकि क्षेत्र मजबूत हो, पर्यटन मजबूत हो, अर्थव्यवस्था मजबूत हो और जन्मभूमि धरा को पहचान मिले। सारांश दो.. हमारी लोकसांस्कृतिक विरासत चुम्बकीय है। विदेशी अपनाने, नाचने, गाने, पढऩे-सीखने स्वत: चले आते हैं। उदाहरण जर्मनी की एक लडक़ी कैसमी

हमें पर्यटन को इससे जुड़ी आर्थिकी में रूपांतरित होकर चलना होगा और इसके लिए जरूरी है कि उद्योग के पार्टनर पहचानें और निरंतर बढ़ाए जाएं। एक भ्रम है कि पर्यटन केवल सरकारी दायित्व की खोज है, लेकिन हिमाचल में आने का बुलावा कई गतिविधियों से बढ़ रहा है। इस दौरान वैश्विक व राष्ट्रीय पटल पर आ रहे परिवर्तन तथा बदलती हुई सैलानी की परिभाषा भी एक नई हलचल पैदा कर रही है। हिमाचल में पर्यटन का ताल्लुक कई वजह से सदियों पुराना व स्थायी है, लेकिन अब इसकी अहमियत रा

भारत में बेरोजगारी और महंगाई सबसे अहम राष्ट्रीय मुद्दे हैं। विडंबना है कि इन मुद्दों पर अधिकतर जनादेश तय नहीं किए जाते। आजकल महिला आरक्षण की खूब गहमागहमी है। सामान्य आरक्षण भी ऐसा ही संवेदनशील मुद्दा है। आरक्षण से ज्यादा जरूरी रोजगार है, ताकि महिलाएं भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी ‘अवैतनिक कामकाजी’ न रह सकें और औसत भारतीय आत्मनिर्भर बन सके। देश

पर्यटन की तहजीब में आ के हर साल एक हफ्ता गुजर जाता, लेकिन इस उद्योग की व्याख्या में यह कोई स$फर नहीं। पर्यटन अगर साल में अपने लिए कुछ दिन, कुछ महीने तय करने लगे तो हम इसके चबूतरे पर केवल नौटंकी करते रहेंगे। पर्र्यटन की आत्मा में चौबीस घंटे का अनुभव, गतिविधियां व श्रम समाहित रहता है। पर्यटक हर देश, हर प्रदेश और हर जगह के संदेश को समझता है। पर्यटक अगर अंतरराष्ट्रीय डगर पर निकला है, तो उसे भारत बुलाने का मकसद बड़ा हो जाता है। ऐसे में हिमाचल को