फिर टूट गई छोटी काशी की आस

विकास की दौड़ में हार गई मंडी; न बनी दूसरी राजधानी, न सेंट्रल जोन की तरह हुआ काम

मंडी —  छोटी काशी मंडी को प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी का नाम जरूर मिल चुका है, लेकिन अब छोटी काशी प्रदेश की दूसरी राजधानी बनने की जंग हार गई है। छोटी काशी ने इस प्रदेश को हर क्षेत्र में कुछ भी देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन राजनीतिक पटल पर मुख्यमंत्री की कुर्सी से लेकर अब दूसरी राजधानी की दौड़ और बडे़ संस्थान व विकास में मंडी पिछड़ती जा रही है। सत्ता के लिए हुए टकराव के बाद हिमाचल का पहला क्षेत्रीय दल व पहली गैर कांग्रेस गठबंधन सरकार देने का इतिहास भी छोटी काशी ने ही रचा था। राजय से केंद्र तक कई दिग्गज मंत्री होने के बाद भी मंडी राजधानी तो दूर सेंट्रल जोन की तरह भी विकसित नहीं हो सकी। आईआईटी मंडी, नेरचौक मेडिकल कालेज, तकनीकी शिक्षा निदेशालय और सुंदरनगर में कुछ राज्य स्तरीय विद्युत कार्यालय को छोड़ दें, तो इस समय मंडी में कुछ नहीं है। यहां तक एयरपोर्ट, रेलवे, रेडियो स्टेशन, थियेटर, स्पोर्ट सेंटर, स्टेडियम, एग्रीकल्चर व हार्टीकल्चर यूनिवर्सिटी, जड़ी बूटी उद्योग, वाइन फैक्टरी, कृषि आधारित उद्योग और पर्यटन तक में छोटी काशी को नहीं निखारा जा सका है। मुख्यमंत्री के दौड़ में सबसे पहले कर्म सिंह, उसके बाद पंडित सुखराम और अब कौल सिंह भी यह सपना पूरा नहीं कर सके हैं, जबकि भाजपा में भी ऐसी लीडरशिप नहीं उभर सकी, जो मंडी को दूसरी राजधानी बनाती। मंडी को राजधानी बनाने की मांग 1977 व 1990 के बीच से उठती आई है। उस समय के मुख्यमंत्री शांता कुमार स्वयं इस पक्ष में थे कि मंडी के सुंदरनगर या कहीं पर राजधानी बनाई जा सकती है, जहां से हर मौसम में प्रदेश का काम चले। इसके बाद 1990 में दं्रग हलके से विधायक दीना नाथ शास्त्री ने भी यह मुहिम शुरू कर विधायकों के हस्ताक्षर करवाए थे, लेकिन राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी ने मंडी की मुराद पूरी नहीं होने दी।

घोषणा से बाहर आया दर्द

धर्मशाला की घोषणा के बाद राजनेताओं का दर्द बाहर आना साफ है, जबकि बुद्धिजीवियों में पूर्व विधायक दीनानाथ शास्त्री, वरिष्ठ पत्रकार बीरबल शर्मा, साहित्यकार मुरारी शर्मा, डा. आरके गुप्ता, पंडित मकर ध्वज और मंडी अधिकार मंच के संयोजक हरमीत बिट्टू भी मानते हैं कि सेंट्रल जोन के चलते मंडी को दूसरी राजधानी बनाया जा सकता था।