भारत का इतिहास

मिशन योजना के प्रतिकूल था नेहरू का वक्तव्य

29 जून को मंत्रि  मिशन के ब्रिटेन  वापस जाने से पहले 7 उच्च अधिकारियों की एक काम चलाऊ सरकार बना दी गई ताकि वह संविधान सभा के लिए निर्वाचन आदि करा सके। इसी बीच दो घटनाएं ऐसी हुईं, जिनका मुस्लिम लीग के रुख पर गहरा प्रभाव पड़ा-

(1) ब्रिटिश भारतीय प्रांतों के लिए जो 296 स्थान निर्धारित किए गए थे,  उनके लिए चुनाव  जुलाई 1946 तक पूरे हो गए। संविधान सभा के चुनावों में  ब्रिटिश भारत के 296 स्थानों में से 205 कांग्रेस ने जीते जबकि लीग को केवल 73 स्थान मिले। संविधान सभा में कांग्रेस को इतने भारी बहुमत में पाकर जिन्ना को भारी निराशा और आशंका हुई।

(2) 10 जुलाई को एक संवाददाता सम्मेलन में मौलाना आजाद के स्थान पर नव-निर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से बोलते हुए  पंडित नेहरू ने यह दुर्भाग्यपूर्ण वक्तव्य दे डाला था कि प्रांत संघों अथवा समूहों में सम्म्लित होने से मना कर सकते हैं अर्थात वर्गीकरण ऐच्छिक है अनिवार्य नहीं,  और हो सकता है कि कोई वर्गीकरण हो ही नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने संविधान सभा में जाना स्वीकार किया है, पर वह  वहां किसी  समझौते के बंधनों से बंध कर नहीं जा रही और संविधान सभा में मिशन योजना में परिवर्तन या सुधार करने के लिए  अपने  को स्वतंत्र समझती है। नेहरू के इस वक्तव्य के बड़े घातक परिणाम निकले। मुस्लिम लीग ने जिस आधार पर मिशन योजना को स्वीकारा था, नेहरू का वक्तव्य उसके प्रतिकूल था। वह मंत्रि-मिशन द्वारा दिए गए 25 मई के  स्पष्टीकरण के भी बिलकुल प्रतिकूल था। इससे मुस्लिम लीग को यह  कहने का अवसर मिल गया कि कांग्रेस ने वस्तुतः मिशन योजना को पूरी तरह  स्वीकार नहीं किया था तथा  जब अभी से कांग्रेस का यह हाल है तो बाद में शक्ति मिलने के बाद तो  उसका  बिलकुल भी विश्वास नहीं किया जा सकता और वह अपने  बहुमत के बल पर बाद में सब कुछ बदल सकती है। कांग्रेस कार्यकारिणी ने स्थिति को संभालने की पूरी कोशिश की, पंडित नेहरू के वक्तव्य के विरुद्ध तथा मंत्रिमंडल मिशन योजना की पूर्ण स्वीकृति दोहराते हुए एक प्रस्ताव पास किया गया। ब्रिटिश सरकार ने भी जिन्ना को आश्वासन दिए कि सरकार योजना में कोई परिवर्तन न होने देगी। किंतु जिन्ना  असंतुष्ट रहे क्योंकि उनका कहना था कि कांग्रेस के वास्तविक इरादों के बारे में उनका संदेह पक्का हो गया था। मौलाना आजाद के अनुसार पंडित नेहरू का 10 जुलाई का वक्तव्य उन दुर्भायग्यपूर्ण घटनाओं में से था, जिन्होंने इतिहास का रुख बदल दिया।