मौन का महापर्व मौनी अमावस्या

माघ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। मौन का भारतीय साधना परंपरा में विशेष महत्त्व रहा है। मौन की साधना में सिद्ध व्यक्ति को यह परंपरा उच्च दर्जा देती है और मुनि के नाम से पुकारती है।  माघ मास के स्नान का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण पर्व मौनी अमावस्या ही है। मौनी अमावस्या के दिन सूर्य तथा चंद्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं। इसलिए यह दिन काफी ऊर्जावान माना जाता है। इस दिन मौन रहकर पवित्र नदियों व तीर्थस्थलों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन व्यक्ति विशेष को मौन व्रत रखने का भी विधान रहा है। कई लोग इस दिन से मौन व्रत रखने का प्रण करते हैं। वह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि कितने समय के लिए वह मौन व्रत रखना चाहता है। कई व्यक्ति एक दिन, कोई एक महीना और कोई व्यक्ति एक वर्ष तक मौन व्रत धारण करने का संकल्प कर सकता है। इस दिन मौन व्रत धारण करके ही स्नान करना चाहिए। वाणी को नियंत्रित करने के लिए यह शुभ दिन होता है। मौनी अमावस्या को स्नान आदि करने के बाद मौन व्रत रखकर एकांत स्थल पर जाप आदि करना चाहिए। इससे चित्त की शुद्धि होती है। इस दिन मौन रहकर यमुना या गंगा में स्नान करना चाहिए। यदि यह अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। मौनी अमावस्या के पर्व के पीछे ठोस ज्योतिषीय कारण भी हैं। चंद्रमा को मन का स्वामी माना गया है और अमावस्या को चंद्र दर्शन नहीं होते, जिससे मन की स्थिति कमजोर होती है। इसलिए इस दिन मौन व्रत रखकर मन को संयम में रखने का विधान बनाया गया है। शास्त्रों में भी वर्णित है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य मन में हरि का नाम लेने से मिलता है।  मौनी अमावस्या के दिन संतों की तरह चुप रहें तो उत्तम है। अगर चुप रहना संभव नहीं है तो कम से कम अपने मुख से कोई भी अपशब्द न निकालें। आज की भागती-दौड़ती जिंदगी में मौनी अमावस्या मौन के महत्त्व से परिचय कराती है, उस मौन से जो आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति का आधार है।