यहां आराम से बीतते हैं जिंदगी के आखिरी पल

लाइलाज बीमारी से पीडि़त मरीजों का सहारा प्रदेश का एकमात्र टांडा का पैलेटिव केयर सेंटर

टीएमसी— बीमारी से जूझ रहे मरीजों के लिए वह पल सबसे कष्टदायक होते हैं, जब डाक्टर कह दे कि रोग लाइलाज है और वह चंद ही दिनों के मेहमान हैं। जीवन के ये दिन न केवल रोगी के लिए बल्कि पूरे परिवार के लिए पीड़ादायक होते हैं। मार्मिक पलों को आसान बनाने और जीवन में थोड़ी और सांसें जोड़ने का काम कर रहा है प्रदेश का एकमात्र टीएमसी स्थित पैलेटिव केयर सेंटर। सुपर स्पेशियलिटी स्थित इस सेंटर में रोजाना हर उम्र के छह से सात ऐसे लोग आते हैं, जिनका अब उपचार नहीं हो सकता या जिन्हें डाक्टर्स ने कह दिया हो कि अब इनकी सेवा कीजिए। यहां लगभग 200 ऐसे लोगों को सेवाएं दी जा चुकी हैं। इनमें से 50 लोगों की मौत हो चुकी है। यहां दूरदराज से मरीजों को लाया जाता है और उन्हें होम बेस्ड सुविधाएं दी जाती हैं। मरीजों की काउंसिलिंग करके उन्हें बीमारी से जूझने के लिए तैयार किया जाता है और उनकी पीड़ा कम करने का हर तरह से प्रयास किया जाता है। उन्हें मरहम पट्टी के अलावा हर प्रकार की दवाई निःशुल्क मुहैया करवाई जाती है।

फिर सांत्वना देने जाते हैं घर

पैलेटिव केयर सेंटर का स्टाफ सिर्फ जीते जी ही रोगी के घर से वास्ता नहीं रखता, बल्कि अनहोनी होने पर दस दिन के बाद परिजनों को सांत्वना देने जाता है। सेंटर स्टाफ की मानें तो कई बार दूरदराज इलाकों तक भी उनके साथ जाने में मदद करते हैं।

केरल के त्रिवेंद्रम में ट्रेनिंग

पैलेटिव केयर सेंटर में तैनात स्टाफ नर्स रजनी बताती हैं कि उन्हें इस काम की ट्रेनिंग केरल स्थित त्रिवेंद्रम में दी जाती है। यहां 45 दिन के कोर्स में वे सब बातें सिखाई जाती हैं, जो ऐसे मरीजों के लिए फायदेमंद हो सकें।

मरीजों को घर घर जाकर भी देते हैं उपचार

सेंटर में डा. प्रवीण के अलावा सात लोगों का स्टाफ है। इनमें स्टाफ नर्स, मेडिकल सोशल वर्कर और फार्मासिस्ट शामिल हैं। यह स्टाफ न केवल यहां आने वाले मरीजों का उपचार करता है, बल्कि ऐसे लोग जो अस्पताल तक पहुंच नहीं पाते उनका घरद्वार पर जाकर इलाज करता है। कई बार स्टाफ को दूरदराज इलाकों में  पैदल पहुंचकर रोगी के घर तक पहुंचना पड़ता है।