वाटर हाइवेज प्रोजेक्ट से पौंग बाहर

सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र को शामिल करने की नहीं मिली परमिशन

शिमला— बहुचर्चित वाटर हाइवेज की फेहरिस्त में रामसर साइट घोषित पौंग शामिल नहीं हो सका है। बताया जाता है कि सुरक्षा कारणों से इस संवेदनशील क्षेत्र को शामिल करने की अनुमति ही नहीं मिल सकी है। जबकि परिवहन विभाग की तरफ से दावे यही किए जाते रहे थे कि वाटर हाइवेज में पौंग को सबसे पहले शामिल किया गया है। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने इसकी अनुमति ही नहीं दी है, जबकि कोल डैम, गोबिंदसागर, पंडोह और भाखड़ा तक के क्षेत्र इसमें शामिल किए गए हैं।  पुणे की मैरीटाइम कंपनी ने इसका सर्वेक्षण कार्य लगभग पूरा कर लिया है और अब इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंपे जानी की तैयारी है। इसके बाद डीपीआर तैयार करके केंद्रीय भारी उद्योग जहाजरानी मंत्रालय को सौंपी जाएगी, जिसके बाद प्रदेश को 90ः10 अनुपात में केंद्रीय सहायता उपलब्ध होगी। हिमाचल में दक्षिण राज्यों की तर्ज पर वाटर हाइवेज पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र बन सकते हैं। यही नहीं स्थानीय लोगों की सुरक्षा के लिए भी जल यात्रा काफी कारगर साबित होगी, क्योंकि अभी तक बिना सुरक्षा उपायों के मोटर बोट्स व नौकाएं संबंधित वाटरवेज पर आवाजाही करती आ रही हैं।  इसी प्रोजेक्ट के तहत इन इलाकों में बड़े-बड़े शिकारे, बड़ी मोटर बोट्स व जल परिवहन पर आधारित अन्य सुविधाएं भी जुटाने की तैयारी होगी।  हिमाचल को इसमें 10 फीसदी का ही योगदान देना होगा, 90 फीसदी राशि केंद्रीय मंत्रालय मुहैया करवाता है। मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान करीबन सभी राज्यों के लिए ये प्रोजेक्ट पेश किए गए हैं, मगर हिमाचल ऐसा पहला राज्य है, जिसने तेज गति से इस पर कार्य किया है। लिहाजा उम्मीदें पूरी हैं कि वाटर हाइवेज का प्रोजेक्ट नए वित्त वर्ष में परवान चढ़ सकता है।  इसी प्रोजेक्ट के अधीन घाट सुधार प्रक्रिया के तहत सरकार करोड़ों की राशि मुहैया करवा रही है। बहरहाल, पौंग जैसे बड़े व महत्त्वपूर्ण बांध के इस प्रोजेक्ट में शामिल न होने से हिमाचल को झटका जरूर लगा है।  क्योंकि एक तो पौंग माइग्रेटिड बर्ड्स के लिए बड़ा आकर्षण है, दूसरे बड़ी संख्या में हर साल बौद्ध पर्यटक महामहिम दलाईलामा के दर्शनार्थ धर्मशाला पहुंचते हैं।   यदि इसे भी प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया जाता तो यह एक बड़ी उपलब्धि साबित हो सकती है।