वृद्धावस्था पेंशन का सुरक्षा कवच

( अनुज आचार्य लेखक, बैजनाथ से हैं )

भारतवर्ष के उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार किया है कि सेवानिवृत्ति के बाद नियमित पेंशन पाना किसी भी सरकारी कर्मचारी का अधिकार है। केवल गंभीर कदाचार के आरोपों के चलते ही किसी सरकारी कर्मचारी को पेंशन देने से इनकार किया जा सकता है अथवा पेंशन को जब्त किया या घटाया जा सकता है। सेवा शर्तों, नियमों एवं सुविधाओं के चलते आज भी भारतवर्ष में सरकारी सेवा में जाना अधिकतर लोगों की प्राथमिकता में बना हुआ है। लेकिन पेंशन जैसे मसले को लेकर अब स्थितियां पहले जैसी नहीं रही हैं। अब हिमाचल प्रदेश सरकार की सेवा में नियुक्त नियमित सरकारी कर्मचारियों को 15 मई, 2003 से नवीन पेंशन प्रणाली के अधीन लाया गया है, जिसे अंशदायी पेंशन योजना के नाम से भी जाना जाता है। केंद्र सरकार ने सशस्त्र सेनाओं के कर्मचारियों को छोड़कर अपने बाकी कर्मचारियों के लिए इस नवीन पेंशन प्रणाली को पहली जनवरी, 2004 से लागू किया था, ताकि पेंशन बजट पर बढ़ रहे खर्चे को कम किया जा सके। इसके लिए केंद्र सरकार ने 10 अक्तूबर, 2003 को पेंशन कोष नियामक और विकास प्राधिकरण की स्थापना की थी।

नेशनल सिक्योरिटी डिपॉजिटरी लिमिटेड के तहत केंद्रीय अभिलेखन एजेंसी (सीआरए) द्वारा अंशदाताओं के पेंशन फंड में योगदान का हिसाब-किताब रखा जाता है। पुरानी पेंशन प्रणाली जिसे परिभाषित लाभ योजना के नाम से भी जाना जाता है, में जीपीएफ सुविधा है, जबकि एनपीएस में नहीं है। अंशदायी पेंशन योजना में कितनी पेंशन मिलेगी, यह आपकी अंशदान राशि, शेयर बाजार और पेंशन फंड मैनेजर्स की का5र्यकुशलता पर निर्भर करता है। 15 मई, 2003 से पहले सरकारी नौकरी में लगे कर्मचारियों को बिना कोई अंशदान किए पेंशन, कम्प्यूटेशन, रिटायरमेंट कम डैथ और सर्विस ग्रेच्यूटी, लीव एन्कैशमेंट, फैमिली पेंशन और समूह बीमा योजना जैसे लाभ, सुविधाएं प्राप्त हैं। इसके विपरीत नए पेंशन धारकों को इनमें से अधिकांश सुविधाओं के लाभ से वंचित कर उनकी सामाजिक हैसियत और आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डाल दिया गया है। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा गत वर्ष इस नई पेंशन प्रणाली को वापस ले लिए जाने के बाद अब केंद्र सरकार सहित 21 राज्य सरकारों द्वारा इस प्रणाली को अपने यहां लागू किया गया है, जिसमें हिमाचल प्रदेश सरकार भी शामिल है। पुरानी पेंशन पाने वालों को प्रत्येक छह माह बाद मूल पेंशन पर मंहगाई भत्ता और नए वेतन आयोग की सिफारिशों के लाभ भी मिलेंगे। लेकिन नवीन पेंशन प्रणाली में यह सुविधा नहीं है। ऊपर से सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी को जो 60 फीसदी रकम मिलेगी, उस पर आयकर भी चुकाना होगा। ऊपर से तुर्रा यह कि इन्हीं कर्मचारियों ने सेवाकाल में सरकार को आयकर भी चुकाया होगा।

महंगाई के इस भीषण दौर में सरकारी कर्मचारियों को अपने कुल वेतन की 10 प्रतिशत रकम का नई पेंशन प्रणाली टियर-1 में योगदान करना अनिवार्य है, जबकि सरकार भी इतना ही योगदान करती है। इस राशि को पेंशन कोष नियामक और विकास प्राधिकरण द्वारा कई पेंशन फंड मैनेजर्स द्वारा शेयर बाजार में लगाया जाता है। पहली अप्रैल, 2008 से मौजूदा कर्मचारियों को एक परमानेंट रिटायरमेंट अकाउंट नंबर (पीआरएएन) दिया गया है और कोई भी कर्मचारी 60 वर्ष की आयु में जाकर इस प्रणाली से बाहर निकल सकता है। चूंकि नई पेंशन प्रणाली के अंतर्गत प्राप्त होने वाला लाभांश शेयर बाजार से जुड़ा हुआ है, इसलिए किसी भी प्रकार के गारंटीशुदा रिटर्न की व्यवस्था नहीं है। तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का शुरुआती वर्षों का अंशदान बेहद कम होने के चलते  पेंशन फंड में जमा रकम भी उसी अनुपात में कम होने के कारण कुल अंशदान पर ज्यादा पेंशन मिलने की संभावना भी कम ही रह जाती है। 1993 से 2004-05 की अवधि के बीच केंद्र सरकार का पेंशन खर्च 21 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, इसी अवधि में राज्य सरकारों के पेंशन बजट में भी 27 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। लिहाजा अधिकांश सरकारें इसी प्रणाली को दृढ़ता से लागू करने के लिए कृतसंकल्पित नजर आती हैं। यह भी उतना ही सत्य है कि भारत के हिसाब से केंद्र का कुल पेंशन खर्च उसके जीडीपी के एक प्रतिशत से भी कम है, जो कि इटली के 14, फ्रांस और जर्मनी के 12 तथा जापान के नौ फीसदी से कहीं ज्यादा कम है। विकसित पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में अभी भी प्रति व्यक्ति आय बेहद कम है। ऊपर से सिकुड़ती सरकारी नौकरियों और प्राइवेट सेक्टर के मनमर्जी से वेतन देने की प्रवृत्ति के चलते अधिकांश भारतीय नागरिकों की जीवन शैली में निरंतर गिरावट दर्ज हो रही है।

अपने लागू होने के शुरुआती वर्षों के बाद से अब कर्मचारी जैसे-जैसे सेवानिवृत्त हो रहे हैं और उन्हें मुट्ठी भर पेंशन मिलना शुरू हुई है, तो अब अधिकांश नवनियुक्त सरकारी कर्मचारी खुलकर इस नवीन पेंशन प्रणाली के मुखर विरोध में उतर आए हैं और संगठन बनाकर विधायकों के माध्यम से पुरानी पेंशन प्रणाली को बहाल करने के लिए ज्ञापन भी सौंप रहे हैं। सालों अपनी सेवाओं द्वारा सरकारी योजनाओं एवं नीतियों को अमलीजामा पहनाने में योगदान देने वाले कर्मचारियों को वृद्धावस्था में सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित करना पीड़ादायक है। भौतिकतावाद के इस दौर में कर्मचारियों की कमर पहले ही टेढ़ी हो चुकी होती है, ऊपर से घरेलू, सामाजिक जिम्मेदारियों के लिए उठाए गए ऋणों के बोझ तले दबे कर्मचारी की हालत दयनीय हो जाती है और कर्मचारी अपने आपको ठगा हुआ सा महसूस करता है। भारत जैसे लोकतंत्रात्मक देश में सरकारों का हमेशा कल्याणकारी स्वरूप रहता आया है। हिमाचल सरकार द्वारा कई कल्याणकारी कार्यक्रम चलाकर आम जनमानस को फायदा पहुंचाया जा रहा है। ऐसे में कर्मचारियों द्वारा नवीन पेंशन प्रणाली को बंद कर पुरानी पद्धति वाली सरकारी पेंशन प्रणाली को पुनः लागू करने की मांग उठाना जायज ही है। उम्मीद है कि सरकार भी इसे लागू कर अपने कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद भी सिर उठाकर जीने का हक देने के लिए खुशी-खुशी आगे आएगी।