वैचारिक लेख

बाजारवाद का दौर है। पब्लिक एकदम नई चीज पसंद करती है। चाहे राजनीति हो, चाहे चाय पकौड़े की दुकान। राजनीति में कुछ नया दिखता है तो पब्लिक एकदम से दीवानी हो जाती है। पकौड़े की दुकान में कोई नई आइटम आ जाती है तो ग्राहक खिंचे चले आते हैं। अब चुनावों का मौसम है तो नई-नई गारंटियां दी जा रही हैं। पुरानी गारंटियां पब्लिक भूल रही हैं, इसलिए पुरानी गारंटियां कैंसिल हो रही हैं और नई गारंटियां ध्यान आकर्षित कर रही हैं। पब्लिक अब 10 गारंटियां भूल गई है। उसे इतना याद है कि गोबर खरीद

स्ंाविधान की धारा 21 के अंतर्गत व्यक्तिगत जीवन व स्वतंत्रता का विशेष मौलिक अधिकार है, जो कि अपातकाल में भी समाप्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह न्यायशात्र का भी यही सिद्धांत है कि जब तक किसी दोषी को सजा न हो जाए, तब तक उसे निर्दोष ही समझा जाना चाहिए। इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (अब नागरिक सुरक्षा संहिता) में

अभी तक सीपीएम के बारे में यह माना जाता था कि वह विचारधारा पर आधारित पार्टी है। लेकिन वह अपने विदेशी स्वभाव के कारण सौ साल बीत जाने पर भी हिंदुस्तान में अपने पैर नहीं जमा सकी। समाप्ति के इस अंतिम चरण में उसने भी किसी न किसी तरह ‘सांस चलती रहे’ के सूत्र को आधार मान कर कांग्रेस के साथ गठबंधन करके अपनी स्थिति हास्यास्पद बना ली है...

शतरंज के खेल में दोम्माराजू गुकेश की इस सफलता से युवा शतरंज खेल की तरफ आकर्षित होंगे। शतरंज खेल को गंभीरता से लेने वाले कई देशों में, यह बात भी उभर कर सामने आई है कि बौद्धिक क्षमता उत्सर्जन वाले इस खेल से जुडऩे वाले युवा पढ़ाई के क्षेत्र में भी अव्वल पाए गए...

देश के तमाम राजनेता इस बात पर एक मत हैं कि गरीबों को उठाना है। नेताजी मिले तो मैंने कहा, क्यों साहब, यह तो आप लोग अपने भाषणों में आम तौर पर कहा करते हंै कि गरीब को उठाना है, तो इसका तात्पर्य क्या है? ‘गरीबों को उठाने का मतलब गरीबी मिटाने से है। इन्हें उठाए बगैर गरीबी नहीं मिट सकती।’ ‘तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि गरीबी को उठाकर इस देश से बाहर समंदर में डाल देना है, या उसे चार कंधे देेने हैं अथवा उसका वोट हथियाना है, गरीब आदमी तो वैसे ही आपको वोट देने को विवश है।’ ‘इसीलिए तो उसे उठाना है, मेरा मतलब यह है कि वह हमें वोट दे तो क्या हम खुशी में पागल होकर उसे शाबाशी रूप में भी

हिमाचल सरकार को भी चाहिए कि वह बैरकों और बटालियनों में तैनात पुलिस कर्मियों से कुछ जवानों को हिमाचल प्रदेश के सभी थानों में अटैच कर और उन्हें भीड़भाड़ वाले स्थानों में हथियारों सहित तैनात करे, ताकि स्थानीय नागरिकों एवं पर्यटकों में सुरक्षा का भरोसा जगाया जा सके। आप आम पब्लिक को रामभरोसे नहीं छोड़ सकते हैं, इसके लिए पुलिस थानों को सं

इस देश में एक साथ दो दुनिया बसती नजर आती हैं। एक वह दुनिया जिसमें सात बीस का सौ होता है, और दूसरी वह दुनिया जिससे आठ बीस का पचास भी नहीं होता। गलत नतीजा बता क्या हम ऐसी दुनिया की बात कर रह हैं, जिससे गणित पढऩा गुनाह है, या किसी उस दुनिया की बात जिसमें इतिहास के नाम पर भूगोल पढ़ा दिया जाता है। उसके बाद किसी फर्जी विश्वविद्यालय की उच्च डिग्री का दुमछल्ला लगा लो। भाषण करने लगो तो अपनी वक्तृता में दस बार अपने नाम का प्रयोग करने के बाद कहो, कि ‘मैं तो बेचारा एक कार्यकर्ता हूं, आपकी जिंदगी सफल करने के लिए इस धरती पर आया हूं।’ जी हां, जो ऊंचे प्रासादों से अवतरित होते हैं, उनके लिए कानूनों की आचार संहिता कुछ और, और इधर बेचारे फुटपाथियों के लिए कानून की सख्ती का कोई अंत नहीं। इस देश में हर

हम कोई एक रास्ता चुनते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि बाकी रास्ते गलत हैं। हम किसी एक देश के किसी एक राज्य के किसी एक शहर के किसी एक परिवार में जन्म लेते हैं। उस देश के उस राज्य के उस शहर के उस परिवार की मान्यताएं हमें प्रभा

यही वजह है कि अपनी प्रसिद्धि को देखते हुए फिल्मों के कलाकार राजनीति में आ तो जाते हैं, पर कम ही लंबी पारी खेल पाने में सफल होते हैं। फिल्म के पर्दे की राजनीतिक दुनिया से एक अपनी अलग ही दुनिया और अलग ही दास्तां है। यहां सफलता पर दर्शकों की तालियों की गूंज बार-बार सुनाई देती है। लेकिन फिल्मी स्टार से नेता बनने के बाद मन में दबी-छुपी आशंकाएं जन्म लेती हैं। ऐसे में अपनों से टकराहट, शिकायत और उलाहने के दौर के बीच की भी एक दुनिया होती है, जहां कई बार कोई साथ नहीं होता। सोचना होगा कि बॉलीवुड और नेतागिरी किस हद तक एक-दूसरे के पूरक हंै। बॉलीवुड समाज के लिए क्या कर सकता है...