शिक्षा विभाग में आए दिन नए नए परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। मानो शिक्षा विभाग कोई प्रयोगशाला है। बात चाहे छुट्टियों की हो या पठन-पाठन प्रक्रिया की हो। हाल ही में दो निर्णय ऐसे शिक्षा विभाग द्वारा लिए गए हैं जो किसी भी संवेदनशील अध्यापक को मर्मान्तक वेदना पहुंचाने के लिए पर्याप्त हंै। इनमें से एक है कि प्राकृतिक आपदा के कारण यदि आकस्मिक अवकाश विद्यालयों में घोषित किया जाता है, तो वह केवल छात्रों के लिए होगा। टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ को विद्यालय में आना अनिवार्य है। अन्य विभागों के कर्मचारियों की तर्ज पर शिक्षकों को अनिवार्य रूप से अपने कार्यालय में उपस्थिति दर्ज करवानी है। एक शिक्षक बंधु ऐसे सरकारी फरमान की बलि चढ़ गया। मंडी जिला के थुनाग क्षेत्र में बादल फटने की घटना से किसका मन नहीं पसीजा होगा? सरकारी आदेश के कारण अपनी सेवाएं देने के लिए मौसम के खराब होने पर भी घर से निकले सराज क्षेत्र की उच्च पाठशाला में टीजीटी के पद पर कार्यरत
बारिश से घर टूट गए। बादल फटे तो घर मलबे में बदल गए। नदी ने घरों को बहा दिया। और नेता लोग अपने घरों से बाहर निकल पड़े। फेसबुक पर तस्वीरों की बाढ़ आ गई। जिधर देखो, उधर नेता। बयानबाजी की राहत आई, मगर आपदा पीडि़त लोग खाली हाथ ही रहे। नेता आए, हाथ जोडक़र आशीर्वाद दिया, फिर उन्हीं हाथों से सबको दूर से टा-टा बाय-बाय कहकर निकल लिए। नेता लोग भी बाढ़ जैसे आते हैं- अचानक, और बादलों जैसे ही गायब हो जाते हैं। फेसबुक पर उनके दानवीर होने की कहानियां भक्तजन आगे से आगे फॉरवर्ड करते हैं। अब जनता के मन में तैरता सवाल है- अगली बार नेता लोग कब आएंगे? कोई कहता है- अब सूखा पड़ेगा, तभी आएंगे। नेता लोग तो आपदा ऋतु के पक्के पंछी हैं, बाढ़ में भी दिखते हैं, सूखे में भी। नेता जी का दौरा किसी बिन
वैसे खड़े होने की मेरे घुटनों में शक्ति नहीं थी, लेकिन जब देखा कि सत्तर-अस्सी साल के बूढ़े ही खड़े हो गए हैं तो मैं खड़ा नहीं हो पाया तो यह मेरी अधेड़ावस्था का अपमान होगा, इसलिए इस चुनाव में मैं भी तनकर खड़ा हो गया हूं। परिणाम चाहे जो भी हो, लेकिन मैं बाकायदा निर्दलीय रूप में राजनीति में आ गया हूं। असल स्वच्छ राजनीति भी बिना किसी दल के ही संभव है और मैं इस स्वच्छता का पक्षधर हूं, इसलिए डट गया हूं। मुझे मेरा पेट एकदम गोल्डन दिखाई दे रहा है, क्योंकि जनता राजनीतिक दलों से उकताकर परेशान हो गई है। वह सबकी पोलों को जान गई है। उसने कांग्रेस को भी देख लिया है तो भाजपा व संयुक्त मोर्चा को भी। इसलिए मेरा फ्यूचर ब्राइट नजर आ रहा है। अबकी बार लगता है कि निर्दलियों की सरकार बनेगी तथा महामहिम मुझे ही देश का नेतृत्व देने के लिए सरकार गठित करने का आमंत्रण देंगे। हो सकता है कि मैं प्रधानमंत्री बन जाऊं। प्रधानमंत्री बनना कोई कठिन काम थोड़े ही है। राजनीतिक दलों में जरूर यह काम जूतम पैजार का है। वहां सर्वसम्मति से संसदीय दल का नेता चुना जाना अवश्य जटिल है, परंतु मैं निर्दलियों को
श्रीनगर में शहीद स्मारक के नाम से एक स्थान है जहां हर साल 13 जुलाई को कुछ राजनीतिक व दूसरे लोग जाकर माथा निभाते हैं। इस स्थान पर 22 लोगों की कब्रें बनी हुई हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वे 1931 मैं पुलिस की गोली से मारे गए थे। इस कब्रिस्थान को मजार-ए-शुहदा यानी शहीदों की मजार के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल श्रीनगर में अब्दुल कादिर खान नाम के एक अपराधी पर मुकद्दमा चल रहा था। यह अपराधी कौन था और इसे कौन लाया था, इसको लेकर अभी भी विवाद चलता रहता है। जाहिरा तौर पर तो यह कहा जाता है कि यह एक अंग्रेज अफसर का रसोइया था। यह रसोई का काम कितना करता था, इसके बारे में कहना तो मुश्किल है, लेकिन इतना निश्चित है कि यह शहर भर में मुस्लिम कश्मीरियों को हिंदू कश्मीरियों के खिलाफ भडक़ाने वाले भाषण कर
पहाड़ों पर असंख्य गाडिय़ों का बोझ, उनसे निकलने वाला धुआं और ऊष्मा क्या पहाड़ों के जलवायु को प्रभावित नहीं करते? हमारे पहाड़ देवस्थल थे, अत: इन्हें धूर्त, शराबियों का अड्डा और वेश्यालय न बनने दिया जाए। पहाड़ों की शांति-संस्कृति कायम रहनी चाहिए...
अब जरा उपवास को भी समझने की कोशिश करते हैं। हमारी संस्कृति में रचे-बसे उपवास बदलते मौसम की मार को कम करने के लिए बनाए गए थे, साथ ही यह प्रावधान भी किया गया था कि किस उपवास में क्या खाया जाए...
हिमाचल प्रदेश में वर्तमान समय में गौ सेवा आयोग द्वारा 72 अभयारण्य एवं दो बड़े गौ सदनों का निर्माण कार्य प्रगति पर है। हिमाचल प्रदेश गौ सेवा आयोग में अभी तक 111 गौ सदनों का पंजीकरण किया जा चुका है।
कब तक, कब और कितने दिन तक? बहुत बार पूछना चाहा है, लेकिन जवाब में सही उत्तर नहीं, केवल दिलासा मिला है। दिलासा देने वाले चेहरे अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन उनका अंदाज एक जैसा, पीठ थपाने का...
जब हम टीवी देखते हैं, तो काफी हद तक दिमाग टीवी में उलझ जाता है और अपनी व्यक्तिगत बातों से हट जाता है, और सबसे बढ़ कर यह कि इस बात पर विश्वास होना चाहिए कि कोई भी टेंशन जीवन से बढ़ कर नहीं, टेंशन आनी-जानी है, यह जीवन का हिस्सा है। इसे खुद पर सवार नहीं करना चाहिए। इनसान से शक्तिशाली कोई नहीं, वो दुनिया में हर असंभव को संभव कर सकता है। याद रहे आज के दौर में, हर आदमी के लिए सबसे बड़ा तनाव होता है पारिवारिक तनाव। तनाव का परिणाम तो हमेशा बुरा और विनाशकारी ही होता है...