वैचारिक लेख

आज हम देखते हैं कि कई अभिनेता और खिलाड़ी शराब और गुटखे के विज्ञापन करते हैं, जो युवाओं को गलत संदेश देते हैं। इसके अलावा, ड्रीम इलेवन और ऑनलाइन गेमिंग को भी इन लोगों के द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है, जो युवाओं को रातोंरात करोड़पति बनने का सपना दिखाते हैं। यदि हमें युवाओं में मानवीय मूल्यों को बचाना है, तो पहले स्वयं को बदलना होगा। तभी हम दूसरों को बदलने का प्रयास कर सकते हैं। समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए हमें अपने आचरण और विचारों में सुधार करना होगा...

जन कल्यण की भावनाओं से भरकर मैंने एक एनजीओ का गठन कर गरीब, बेसहारा और विकलांगों के लिए कार्यक्रम शुरू कर दिया है। मेरी इस संस्था को राजकीय कोष से ही नहीं अपितु विदेशों से भी धन आ रहा है। विदेशी लोग इस संस्था के उद्देश्य पढक़र अभिभूत हो गए थे और उन्हें लगा था पूरे देश में गरीबों और मानसिक विकलांगों के लिए मैं अकेला काम कर रहा हूं। फील्ड वर्क के लिए मेरे पास चार-पांच बेकारी से जूझते नौजवान हैं, जो थस्र्ट एरिया खोजकर मेरे प्रोजेक्ट ऑफिसर्स को वस्तुस्थिति बताते हैं, जिसे मेरे माहिर प्रोजेक्ट अफसर बखूबी कागजी जामा पहना देते हैं। यह रिपोर्ट मैं मेरी संस्था को धन देने वाली एजेंसियों को भेजता हूं तो वे और अधिक वित्तीय सहायता एनजीओ को उपलब्ध कराते हैं। इन धन में से दो प्रतिशत सहयोगियों को बांट देता हूं, बाकि राशि मैं संस्था में तथा मेरे घर में सुख-सुविधाएं जुटाने-बढ़ाने में खर्च करता हूं। यह सब करने के बाद भी धन इतना बचता है कि वह कुछ संस्था तथा

ध्यान वह विधि है जो हमें आंतरिक शक्ति देता है और ध्यान के लिए सांसों पर नियंत्रण, मौन की साधना, आत्म निरीक्षण और सकारात्मक विचार बहुत सहायक होते हैं। यह तो दुनिया की रीत ही है कि जब तक हम समर्थ हैं

यह केंद्र सरकार का भी दायित्व बनता है कि वह बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के गैर भाजपा शासित राज्यों को भी उदार वित्तीय मदद मुहैय्या करवाए ताकि उन राज्यों विशेषकर हिमाचल जैसे दुर्गम भौगोलिक

शिक्षा क्रांति के दावों के बाद स्कूलों का चेहरा बदल गया है। हमारे बच्चों को कुपोषण का मर्ज है। घर में तो उन्हें उचित खाने को मिलता नहीं, एक जून रोटी मिल जाए तो भी असंख्य धन्यवाद। सरकार ने बच्चों के हाथ में...

आज के प्रगतिवादी, आधुनिक और तर्कशील व्यक्ति अपनी कपोल कल्पना के वशीभूत होकर प्राचीन लोगों को मूर्ख समझते हैं, किंतु उन्हें जलवायु की दुर्दशा देखकर अपने बारे में भी यह सत्य जानने-समझने की अति आवश्यकता है कि अपने जीवन के आधार पंचतत्त्वों को पराकाष्ठा तक विकृत करने में वे सर्वाधिक दोषी हैं। पहले के मनुष्य जीवन की प्रत्येक गतिविधि को दूरदर्शी नीतियों के अनुसार निर्धारित करते थे...

पुरानी टैक्सियों को ई-टैक्सियों में बदलने के लिए ऋण सुविधा, सोलर पॉवर को बढ़ावा देने के लिए उद्यमियों, विशेषकर युवाओं को ऋण पर ब्याज उपदान की घोषणा करना, राज्य में उद्योग को आकृष्ट करने के लिए दो महीने के अंदर उन्हें सारी क्लीयरैंस देना, धार्मिक, साहसी, मेडिकल पर्यटन को विकसित करना, पर्यटन को शहर से गांव की ओर ले जाना सही दिशा में सही कदम हैं, लेकिन जरूरत है इसे अमलीजामा पहनाने की। नए डेस्टिनेशन को विकसित करने की बातें वर्षों से चल रही हैं, परंतु धरातल पर आज तक कुछ उतर नहीं पाया है। दिहाड़ीदारों, आउटसोर्स वर्कर, आंगनवाड़ी व आशा वर्कर और अन्य कई कर्मियों की पगार बढ़ाना अच्छी बात है...

मित्रो! मेरे द्वारा जिस जिसने आज तक फर्जी प्रमाणपत्र प्राप्त किए हैं, वे सब पूरी ईमानदारी से ऊंची ऊंची जगह बैठ असली प्रमाणपत्रों का व्यापार कर रहे हैं, बीमार समाज का बेधडक़ उपचार कर रहे हैं। अब अपने मुंह अपनी तारीफ क्या करनी। मैं नहीं, मेरा काम बोलता है। पिछले हफ्ते मेरे मुहल्ले का पुजारी मेरे पास आ सिर शान से उठाए बोला, ‘बंधुवर! कहते हुए आ तो शर्म रही है, पूजा करते करते बहुत थक गया हूं, अब मुझे भगवान होने का प्रमाणपत्र चाहिए था।’ ‘बस इतनी सी बात! डोंट वरी! कल ले लेना! हम यहां बैठे किसलिए हैं?’ और मैंने अगले दिन वायदे के मुताबिक पुजारी को भगवान होने का चकाचक प्रमाणपत्र थमा दिया। अगली सुबह मुहल्ले के मंदिर गया तो देखा, मेरे द्वारा दिलाए प्रमाणपत्र को गले में डाले पुजारी भगवान के सिंहासन पर और असली के भगवान पुजारी के पटड़े पर।

राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद ट्रंप ने वैश्विक मुक्त व्यापार व्यवस्था पर सीधा हमला करना शुरू कर दिया है। वही अमेरिका, जो विश्व व्यापार संगठन की बातचीत और गठन में सबसे आगे था, और दुनिया भर में मुक्त व्यापार का सबसे बड़ा पैरोकार था, अब संरक्षणवाद की वकालत कर रहा है...