वैचारिक लेख

सैकड़ों इंकलाबी चेहरों के बलिदान से भारत आजाद हुआ था, लेकिन आजादी के बाद देश के नीति निर्माताओं ने हिंदोस्तान को धर्मनिरपेक्षता का नकाब पहना दिया। नतीजतन, सनातन धर्म का प्रभावशाली ग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित नहीं हुआ...

एक मजे की बात! कल रात मेरा जमीर भी मर गया। कुल मिलाकर अवसर दुअवसर सुअवसर हर आदमी के पास दिखाने को एक जितना भी हो, जमीर ही होता है जो झूठ, बेईमानी में भी उसे जिंदा रहने की प्रेरणा देता रहता है। तब पल भर को तो मुझे लगा कि मैं भी अब गया। कारण, मेरे शतरंज के खास दोस्त बात बात पर कहा करते थे कि बेटा! शतरंज में वजीर और जिदंगी में जमीर मर जाए तो खेल खत्म हुआ समझो, चाहे कितनी ही गेम और जिंदगी क्यों न शेष बची हो

भारत को अपने आत्मनिर्भर भारत पहल के माध्यम से अपने घरेलू विनिर्माण को मजबूत करने का अवसर मिल सकता है। हालांकि, ट्रम्प के संरक्षणवादी रुख और टैरिफ बढ़ाने के कारण भारत को निर्यात में नुकसान होने की चिंता हो सकती है...

हम अपने अपने धर्म को अच्छा मानें, इसमें कोई हर्ज नहीं है। किंतु दूसरे के धर्म को गलत या छोटा साबित करना छोड़ दें तो सद्भाव कायम करना आसान होगा। आखिर हमारे ईश्वर को इस तरह या उस तरह मानने से सूरज-चांद अपना रास्ता तो नहीं बदल लेंगे...

देवभूमि में सत्ता पक्ष और विपक्ष में आजकल ख़ूब नूराकुश्ती चल रही है, घाटे में चल रहे हिमाचल प्रदेश विकास निगम के अठारह होटलों को लेकर। उच्च न्यायालय के सिंगल बैंच ने निगम के घाटे में चल रहे अठारह होटलों को बंद करने का निर्णय दिया तो डबल बैंच ने उसे उलट दिया या पलट दिया। पता नहीं क्या कहना ठीक होगा। अकेले जज साहिब को जो ठीक लगा उसे दो जजों ने मिलकर उलट दिया। शायद इसे ही ‘एक और एक ग्यारह’ होना कहते हैं। भला, यह भी कोई बात हुई कि एक अकेले जज साहिब ही इतने होटलों को बंद करने का आदेश दे दें। करोड़ों का घाटा झेलने के बाद जो हिम्मत राज्य सरकारें वर्षों से नहीं जुटा पाई, उसे अकेले जज साहिब दिखा कर क्या साबित करना चाहते थे। आखिर इन छोटे-मोटे फैसलों से प्रदेश का क्या भला होगा? अकेले जज साहिब को राज्य को हो रहा घाटा या पर्यटन विकास निगम की अकर्मण्यता बुरी लगी तो लगी। पर डबल बैंच ने साबित कर दिया कि सरकार तो होती ही घाटा उठाने के लिए है औ

पीडीएस प्रणाली के तहत लाभार्थी लक्ष्यीकरण की सटीकता में सुधार भी जरूरी है। पीडीएस के तहत प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण में ऐसे परिवर्तन की संभावना तलाशना जरूरी है, जिससे इस व्यवस्था की पारदर्शिता बढ़ाई जा सके और अकुशलता में भी कमी की जा सके। जरूरी है कि बहुआयामी गरीबी में उल्लेखनीय कमी के बीच लक्षित लाभार्थियों का भी दोबारा आकलन किया जाए। देश में अभी भी जिस तरह से फर्जी राशन कार्ड चिंता का कारण बने हुए हैं, उन्हें शीघ्रतापूर्वक चलन से हटाना होगा। राशन कार्ड के डिजिटलीकरण के चलते देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक कारगर बनाने के लिए आधार एवं ईकेवाईसी प्रणाली के माध्यम से सत्यापन कराने के बाद अब तक फर्जी पाए गए 5 करोड़ 80 लाख से अधिक राशन कार्ड रद्द कर दिए गए हैं...

शराबबंदी के कठोर प्रावधान सुरक्षा एजेंसियों के लिए उपयोगी साबित हो रहे हैं। कोर्ट की दलील थी कि बड़े सिंडिकेट संचालकों या प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ शायद ही कभी केस दर्ज किए जाते हों, बल्कि शराबबंदी कानून से गरीब वर्ग असंगत रूप से प्रभावित हो रहा है। नकली शराब से गरीब लोग पीडि़त हैं...

गरीबी को जिंदा रहने की आदत है। हर मौसम-हर जमीन, हर गांव-हर शहर व हर जाति-हर धर्म में जिंदा रह सकती है। जिंदा रहने के लिए गरीबी सबसे अहम किरदार है। यह स्वतंत्र है और मौलिक भी है। स्वतंत्र इतनी कि महलों के करीब अपना ठिकाना खोज लेती है और मौलिकता की वजह से रंग-रूप बदल लेती है। गरीबी के बिना कोई अमीर हो ही नहीं सकता, बल्कि अब तो देश भी इसके बिना नहीं चलता। इसी गरीबी ने नेता बनाए। सरकारें अब अगर गारंटी दे पा रही हैं, तो

प्रदूषण को लेकर उद्योगों को जागरूक करने तथा लोगों में प्रदूषण और इसके खतरनाक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष दो दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाए जाने का मूल उद्देश्य देश में प्रदूषण नियंत्रण अधिनियमों की आवश्यकता की ओर बहुत ज्यादा ध्यान देने के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ाना है। वास्तव में यह दिन 1984 की उस भयानक गैस त्रासदी की घटना के कारण पीडि़त हुए लोगों के निर्दोष जीवन को याद करने के लिए चिह्नित किया गया है, जिसमें हजारों लोग भोपाल की यूसीआईएल फैक्टरी से मिथाइल गैस के हुए रिसाव के कारण मौत की नीं