सम्मोहन की साधना

प्रायः सम्मोहन को नकारात्मक दृष्टि से किए जाने वाले जादू-टोने के रूप में लिया जाता है। भारतीय संदर्भों में देखें तो यह बात पूरी तरह सही नहीं है। यहां सम्मोहन को एक साधना के रूप में लिया जाता है। सम्मोहन विद्या में दक्षता प्राप्त करने की शुरुआत त्राटक से की जाती है…

सम्मोहन को लेकर समाज में विविध तरह की धारणाएं व्याप्त हैं। प्रायः सम्मोहन को नकारात्मक दृष्टि से किए जाने वाले जादू-टोने के रूप में लिया जाता है। भारतीय संदर्भों में देखें, तो यह बात पूरी तरह सही नहीं है। यहां पर सम्मोहन को एक साधना के रूप में लिया जाता है। सम्मोहन विद्या में दक्षता प्राप्त करने की शुरुआत त्राटक से की जाती है। यही वह साधना है, जिसका निरंतर अभ्यास करने से आपकी आंखों में अद्भुत चुंबकीय शक्ति जाग्रत होने लगती है और यही चुंबकीय शक्ति दूसरे प्राणी को सम्मोहित करके अपनी ओर आकर्षित करती है।  विधिवत रूप से शिक्षा लेना कोई आवश्यक नहीं है, क्योंकि यह तो मन और इच्छा शक्ति का ही खेल है। आप स्वयं के प्रयास, निरंतर अभ्यास और असीम धैर्य से सम्मोहन के प्रयोग सीखना आरंभ कर दें, तो आपके अंदर यह अद्भुत शक्ति जागृत हो सकती है। यह विद्या मन की एकाग्रता और ध्यान, धारणा समाधि का ही मिलाजुला रूप है। आप किसी भी आसन में बैठकर शांतचित्त से ध्यानमग्न होकर मन की गहराइयों में झांकने का प्रयास करें।   मन को कहीं भी न भटकने दें। मन के समस्त विचारों को एक बिंदु पर ही केंद्रित कर लें और सिर्फ द्रष्टा बन जाएं अर्थात जो कुछ भी मन के भीतर चल रहा है उसे चलने दें, छोड़ें नहीं। सिर्फ देखते जाएं। धीरे-धीरे आप महसूस करेंगे कि आपको आंशिक सफलता प्राप्त हो रही है। आपको अनोखी अनुभूति महसूस होने लगेगी। बस यहीं से आरंभ होती है आपकी वास्तविक साधना और यहीं से आप तैयार हो जाते हैं अद्भुत जगत में पदार्पण करने के लिए। यहां विचित्रताएं और आलौकिक अनुभूतियां बांहें पसारे आपका स्वागत करने को आतुर हैं। यहां आकर आपको भूत-भविष्य एक चलचित्र की भांति स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगेगा।  ध्यान के द्वारा मन की गहराइयों में आकर अनोखे रहस्यों को जाना जा सकता है। मन को वश में करने की प्रमुख विधि ध्यान ही है। सम्मोहन अथवा वशीकरण विद्या में दूसरों को वश में करने से पूर्व स्वयं अपने मन को अपने ही वश में करना परम आवश्यक है। जब आपका मन आपके नियंत्रण में हो जाए तो दूसरों को वशीभूत करना  बाएं हाथ का खेल है। इस विद्या को हासिल करने के लिए प्रथम सीढ़ी है त्राटक का अभ्यास। यही वह साधना है जिसका निरंतर अभ्यास करने से आपकी आंखों में अद्भुत चुंबकीय शक्ति जाग्रत होने लगती है और यही चुंबकीय शक्ति दूसरे प्राणी को सम्मोहित करके आकर्षित करती है। भारतीय मनीषियों ने जहां एक ओर सम्मोहन सीखने के  लिए यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम, धारणा, ध्यान और समाधि जैसे आवश्यक तत्त्व निर्धारित किए हैं। वहीं दूसरी ओर पाश्चात्य विद्वानों और सम्मोहनवेत्ताओं ने हिप्नोटिज्म में प्रवीणता प्राप्त करने के लिए सिर्फ प्राणायाम और त्राटक को अधिक महत्त्व दिया है। पाश्चात्यवेत्ताओं का मानना है कि श्वास-प्रश्वास पर नियंत्रण एवं त्राटक द्वारा नेत्रों में चुंबकीय शक्ति को जाग्रत करके ही मनुष्य सफल हिप्नोटिस्ट बन सकता है। त्राटक के द्वारा ही मन को एकाग्र करके मनुष्य अपने मन पर नियंत्रण स्थापित कर सकता है। आहार-विहार की शुद्धि, विचारों में सात्विकता, प्राणायाम-त्राटक और ध्यान का नियमित अभ्यास तथा असीम धैर्य और विश्वास के संयुग्मन से सम्मोहन विद्या को पूर्णता के साथ आत्मसात किया जा सकता है। पश्चिम में हिप्नोटिज्म का उपयोग मुख्यतः मनोवैज्ञानिक चिकित्सा में किया जाता है। शारीरिक एवं मानसिक रोगों के उपचार में इसका प्रयोग पूर्णतः सफल रहा है। पश्चिमी देशों में तो सम्मोहन को एक विज्ञान के रूप में कानूनी मान्यता प्राप्त हो चुकी है और वहां के समस्त अस्पतालों में अन्य चिकित्सकों, रोग-विशेषज्ञों की भांति हिप्नोटिस्ट्स (सम्मोहनवेत्ताओं) के लिए भी अलग से पद निर्धारित होते हैं।  अब तो वहां की पुलिस भी अपराधों की रोकथाम करने एवं अपराधियों से अपराध कबूल करवाने में हिप्नोटिज्म का भरपूर उपयोग करने लगी है, परंतु विडंबना यही है कि जिस देश में इस विद्या की उत्पत्ति हुई यानी भारतवर्ष में आज सैकड़ों वर्षों पश्चात भी सम्मोहन को मान्यता नहीं मिल पाई है। सम्मोहन का अभ्यास साधकों को अत्यधिक लाभ पहुंचाता है। जहां एक ओर उनकी आत्मिक शक्ति प्रबल होती है, वहीं दूसरी ओर उनके आत्मविश्वास में अभूतपूर्व वृद्धि होकर इच्छाशक्ति सृदृढ़ हो जाती है। इन सबका साधक के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप उसका व्यक्तित्व चुंबकीय बन जाता है।