सरकारी शिक्षा का ‘असर’

(महक भड़वाल, कोपड़ा, नूरपुर)

एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर), 2016 में हिमाचली शिक्षा के सशक्त होने के निशान साफ देखे जा सकते हैं। हालांकि पर्वतीय राज्य हिमाचल में साक्षरता दर में वृद्धि और गुणवत्ता के सरीखे लक्ष्यों को एक साथ हासिल करना आसान नहीं रहा है। ऐसे में ‘असर’ की हालिया रपट में हम केरल से भी दो कदम आगे नजर आते हैं, तो यह समूचे प्रदेश के लिए हर्ष का विषय है। सर्वेक्षण के मुताबिक हिमाचल में छह से 14 वर्ष आयु वर्ग का नामांकन 99.8 फीसदी है। हिमाचल में भाषा एवं गणित में बुनियादी शिक्षा की उपलब्धि का स्तर देशभर में पहले स्थान पर रहा। इस सर्वेक्षण की सबसे खास बात यह रही कि प्रदेश में गणित विषय में सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के ज्ञान के स्तर में मॉडर्न समझे जाने वाले महंगे निजी स्कूलों के विद्यार्थियों की अपेक्षा कहीं अधिक वृद्धि हुई है। गुणवत्ता के लिहाज से फिसड्डी साबित होती रही पाठशालाओं के लिए यह रुझान जरूर कुछ राहत देने वाला माना जाएगा। इसमें तो पहले से ही कोई संदेह नहीं रहा है कि सरकारी पाठशाला के गुरुजन निजी स्कूलों की अपेक्षा कहीं अधिक दक्ष, पेशेवर व ‘हाइली क्लालिफाइड’ होते हैं। हालांकि सरकारी क्षेत्र की विडंबना भी तो यही है कि इसमें किसी प्रतिभा के प्रवेश के साथ ही उसका क्षरण भी शुरू हो जाता है। ऐसे में सरकारी पाठशाला में अध्यापन में जुटे शिक्षकों का बदलता दृष्टिकोण व कार्य के प्रति समर्पण की भावना अगर कहीं बलवती हो रही है, तो इसे सरकारी शिक्षा के लिए एक शुभ संकेत माना जाएगा। कुल मिलाकर महंगी होती शिक्षा के दौर में ‘असर’ की रपट आम आदमी के लिए एक अच्छी खबर है, जो अपने बच्चों की शिक्षा के लिए आज भी सरकारी पाठशाला पर निर्भर है।