सैलानियों के स्‍वागत को कितना तैयार हिमाचल – 2

हिमाचल को कुदरत ने ऐसा सौंदर्य बख्शा है, जो हर किसी को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। हर साल आबादी से दोगुना यहां पहुंचने वाले सैलानी पहाड़ की खूबसूरती पर मुहर लगाते हैं। बेशक सैलानियों की आमद ज्यादा हैं पर वे एक या दो दिन रुकने के बाद लौट जाते हैं। दखल की तफतीश में जानें यहां आने वाले सैलानियों को किन असुविधाओं का सामना करना पड़ता है…

क्रिसमस, नववर्ष, दशहरे  पर उमड़ती है भीड़,  प्रदेश में आने वाले 80 फीसदी धार्मिक पर्यटक हिमाचल में हर साल पौने दो करोड़ पर्यटक सैर-सपाटे के लिए पहुंच रहे हैं। प्रदेश के पर्यटन स्थलों की कैरिंग कैपासिटी को लेकर एडीबी प्रोजेक्ट के जरिए सर्वे करवाया जा रहा है। इसकी रिपोर्ट अभी तैयार की जा रही है। प्रदेश में हर साल क्रिसमस, नववर्ष की पूर्व संध्या, कुल्लू के दशहरे पर ज्यादा भीड़ उमड़ती है। जबकि कुल पर्यटन आमद का 80 फीसदी धार्मिक पर्यटन स्थलों में होता है। नवरात्र मेलों के दौरान प्रमुख शक्तिपीठों में लाखों पर्यटक उमड़ते हैं। खास आयोजनों पर शिमला, कुल्लू-मनाली, डलहौजी, मकलोडगंज व अन्य स्थलों पर 20 से 25 लाख पर्यटक पहुंचते हैं। इस फेहरिस्त में बौद्ध पर्यटन का भी एक बड़ा हिस्सा शामिल है। नववर्ष की पूर्व संध्या पर प्रदेश के पर्यटक स्थलों में सैलानियों को ठहरने के लिए होटल व गेस्ट हाउसेज कम पड़ जाते हैं। यह अव्यवस्था का ही आलम है कि वर्षों के बाद भी प्रदेश में पर्याप्त संख्या में पार्किंग स्थल विकसित नहीं किए जा सके हैं। लंबे ट्रैफिक जाम, पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों के लिए सिरदर्दी का सबब बनते हैं। दूसरे इन्हीं खास आयोजनों पर व्यवसायी कुछ क्षेत्रों में लूटमारी भी कम नहीं करते, जिसकी पर्यटक हर वर्ष शिकायतें भी करते हैं।   हिमाचल में 67097 बेड क्षमता है,जबकि  2416 होटल पर्यटन विभाग में पंजीकृत हैं।  राज्य में होम स्टे के अंतर्गत 1838 कमरों से युक्त 665 इकाइयां रजिस्टर हैं।

सैलानी  1.75 करोड़

होटल  2416

बेड क्षमता  67097

रेस्ट हाउस  1800

होम स्टे यूनिट  665

एचपीटीडीसी यूनिट  57

मां ज्वालामुखी के भक्त प्यासे

ज्वालामुखी मंदिर में सालाना लगभग साढ़े तीन लाख यात्री आते हैं। ज्वालामुखी में पीने के पानी की समस्या के कारण यात्री यहां पर ज्यादा दिन नहीं रुकते हैं। मंदिर की सालाना आय बीस करोड़ से अधिक होने के बावजूद मंदिर न्यास एक धर्मार्थ सराय तक का निर्माण नहीं कर पाया हैै। रज्जु मार्ग बनाने की योजना कई सालों से फाइलों में दफन है।। पर्यटन को विकसित करने के लिए छोटे मंदिरों को जोड़ने वाला परिक्रमा मार्ग खस्ता हाल में है।। शहर में 80 के लगभग होटल व गेस्ट हाउस हैं। डेढ़ दर्जन के करीब सराय हैं परंतु सराय में कमरों के दाम होटल से भी ज्यादा हैं। ज्वालामुखी को रेल मार्ग से जोड़ा जाए,तो पर्यटन में लाभ हो सकता है।

नयनादेवी में 20 लाख श्रद्धालु,  25 करोड़ चढ़ावा

नयनादेवी में वर्ष में लगभग 20 लाख श्रद्धालु मां के दर्शनों को आते हैं। 1985 में मंदिर अधिग्रहण के बाद सरकार ने यात्रियों की सुविधा हेतु अनुपम प्रयास किए हैं । यात्रियों को ठहरने हेतु न्यास ने मातृआंचल भवन मातृ शरण तथा मातृछाया भवन बनाया है। इसके अतिरिक्त यहां लगभग 200 से ज्यादा निजी धर्मशालाएं कार्यरत हैं। दर्जन भर निजी होटल भी बन गए हैं। न्यास ने यात्रियों के लिए दो पार्किंग का निर्माण करवाया तथा एक पार्किंग गुफा के समीप बनाई जा रही है। वर्ष में लगभग 25 करोड़ का चढ़ावा यहां चढ़ता है । नयनादेवी में पानी की कोई भी कमी नहीं है, बिजली व्यवस्था तथा सफाई के लिए यहां समय-समय पर काम होता रहता है।

खनियारा में अक्षरधाम कर सकता है आकर्षित

खनियारा में अक्षरधाम सैलानियों को आकर्षित कर सकता था, लेकिन राजनीतिक दांव-पेंच ऐसे फंसे कि यह प्रस्ताव सिरे न चढ़ पाया। आदि हिमानी चामुंडा के लिए अगर हेलिकाप्टर उड़ानों के बजाय रोप-वे को सिरे चढ़ाने के लिए तवज्जो दी होती तो धार्मिक पर्यटकों को खींच सकते थे। यह कड़वा सच है कि पिछले तीन दशकों में पालमपुर और धर्मशाला में प्रशासन-सरकारें रोप-वे की योजनाओं को सिरे न चढ़ा पाए हैं तो आदि हिमानी चामुंडा और जयंती माता में रोप-वे की उम्मीद कैसे की जा सकती है। बनेर के आसपास भी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की अपार संभावना है। मटौर में लाखों का चिल्ड्रन पार्क भी रामभरोसे है।

मां बालासुंदरी के दर नो टेंशन

उत्तरी भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां बालासुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर में प्रतिवर्ष करीब छह लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंदिर न्यास द्वारा श्रद्धालुआं व सैलानियों के लिए ठहरने की उचित व्यवस्था है। इसमें जहां न्यास द्वारा निर्मित यात्री निवास में होटलों की तर्ज पर सैलानियों के लिए अच्छे सूइट हैं, जो 700 से लेकर 1200 रुपए तक मिलते हैं। इसके अलावा त्रिलोकपुर में मंदिर न्यास की एक बहुमंजिला धर्मशाला (सराय) है। मंदिर न्यास की सराय के अतिरिक्त अन्य संस्थाआं द्वारा भी त्रिलोकपुर में सरायों का निर्माण किया गया है,जहां श्रद्धालु मेले के दौरान ठहरते हैं। मंदिर न्यास की कार्यकारी अधिकारी एवं एसडीएम नाहन कृतिका कुल्हारी ने बताया कि त्रिलोकपुर में मंदिर न्यास की ओर से श्रद्धालुआं के लिए ठहरने की उचित व्यवस्था है।

ऊना में हर साल आते हैं 15 लाख श्रद्धालु

ऊना में सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल माता चिंतपूर्णी, डेरा बाबा बड़भाग सिंह, पीरनिगाह, डेरा बाबा रूद्रांनद, बाबा बाल आश्रम कोटलाकलां मंदिर में वर्ष भर में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान देश-विदेश से करीब दस से 15 लाख श्रद्धालु आते हैं।  जिला में पर्यटन स्थल न होने के कारण श्रद्धालु  एक-दो दिन बाद घर लौटना ही पसंद करते हैं। जिला में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, जिन्हें तराशने के लिए अभी तक सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। बंगाणा की पिपलू सोलह सिंगी धार को पर्यटन के तौर निखारा जाए तो सैलानियों को मंदिर में माथा टेके के बाद अच्छी सैरगाह मिलेगी, जिससे उनका ठहराव भी बढ़ेगा ।

एचपीटीडीसी  की मेहमाननवाजी लाजवाब

प्रदेश पर्यटन विकास निगम  का गठन ही होटल चलाने के लिए किया गया था। प्रदेश में मेहमाननवाजी के लिए एचपीटीडीसी का नाम सर्वोपरि रहता है। अब तक एचपीटीडीसी के पास 57 होटल यूनिट्स हैं। निगम अलग से ट्रांसपोर्ट विंग सफलतापूर्वक चला रहा है। ट्राइबल टूरिज्म की बात हो या सामान्य पर्यटन की, एचपीटीडीसी पर्यटकों की राय में भी निरंतर सुधार कर रहा है। इसके अधिकारियों का कहना है कि यदि होटलों को स्वतंत्र कर दिया जाए तो निगम का महत्त्व ही नहीं रहेगा। क्योंकि निगम ही तो इन यूनिट्स का संचालन कर रहा है। प्रदेश के दूरदराज के इलाकों तक में निगम के होटल खड़े किए गए हैं। कुल मिलाकर पर्यटकों की आवभगत में एचपीटीडीसी विशेष रोल अदा कर रहा है।

चामुंडा धाम में मास्टर प्लान प्रगति पर

कांगड़ा घाटी में हर वर्ष करीब 24 से 26 लाख तक सैलानी पहुंचते हैं।  आंकड़ों को देखें तो कांगड़ा में वर्ष 2014 में करीब 23 लाख देशी व सवा लाख विदेशी सैलानी पहुंचे थे, जबकि वर्ष 2015 में 24 लाख देशी और करीब एक लाख 20 हजार विदेशी  पर्यटक यहां पहुंचे थे। वर्ष 2016 में भी करीब 23  लाख 50 हजार देशी और एक लाख 25 हजार विदेशी मेहमान यहां पहुंचे। बावजूद इसके यहां प्रसिद्ध शक्तिपीठों सहित अन्य धार्मिक स्थलों के परिसर व आसपास न तो यहां आने वाले सैलानियों के लिए कोई विशेष प्रबंध हो पाए हैं और न ही किसी बड़ी योजना को धरातल पर लागू किया गया है। पर्यटन सर्किट बनाने का प्लान पूर्व उपायुक्त केआर भारती ने शुरू करवाया था, लेकिन वह भी कागजों में ही दब कर रह गया।  उधर, उपायुक्त कांगड़ा सीपी वर्मा का कहना है कि चामुंडा मंदिर व मंदिर परिसर को संवारने के लिए मास्टर प्लान बनाया गया है, जिसके तहत काम चल रहा है, यहां पर शापिंग कांप्लेक्स पार्क सहित पर्यटकों के बैठने-घूमने और रुकने के लिए विशेष योजना के तहत काम चल रहा है।

कुछ ऐसा हो तो आएंगे पर्यटक

हिमाचल में पर्यटक बेशुमार पहुंच रहे हैं। हर सीजन में इनका आंकड़ा बढ़ रहा है। मगर इनका ठहराव एक या दो दिन का रहता है। इसे बढ़ाने के लिए आवश्यकता है कुछ कारगर योजनाओं की। ईको-टूरिज्म की बड़ी योजनाएं अभी तक शुरू नहीं हो सकीं। मनोरंजन पार्क के कई बार ऐलान हुए। वर्ष 1977 से इसकी तैयारियां चल रही हंंै, मगर यह सिरे नहीं चढ़ पाया। साहसिक पर्यटन को दिशा देने के लिए हिमाचल ने जरूर बीड़-बिलिंग को चुना है। कुल्लू-मनाली, बिलासपुर में भी ऐसे बड़े आयोजनों की जरूरत है। ये क्षेत्र अभी भी ऐसे आयोजनों के लिए तरस रहे हैं, जबकि इनमें पर्याप्त संभावनाएं मौजूद है। शिमला जिला अपनी खूबसूरती के लिए  प्रसिद्ध है। सेब के बागीचों से हटकर यहां के ऊंचे पहाड़ बर्फ से लंबे समय तक ढके रहते हैं। कई वर्षों के ऐलानों के बावजूद रोहड़ू के चांशल में स्कीईंग व अन्य साहसिक खेल परवान नहीं चढ़ सके। जरूरत इस बात की है कि हिमाचल में अब ऐसे क्षेत्रों को खोला जाए, जहां प्राकृतिक सौंदर्य भरपूर है, वे शहरों के कोलाहल से दूर हों। पर्यटक सही मायने में वहां सुकून का अनुभव कर सके। ऐसे ही क्षेत्रों में न तो यातायात समस्या होगी, न ही पार्किंग की दिक्कतें। मगर अभी तक भी हिमाचल में इसे लेकर गंभीर प्रयास नहीं हो सके हैं। प्रदेश में कबायली क्षेत्रों में भी पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। इनका दोहन तभी होगा, जब वहां आधारभूत ढांचा विकसित किया जाए। शिमला जिला के विभिन्न क्षेत्रों में पैराग्लाइडिंग के लिए बड़ी संभावनाएं मौजूद हैं। मगर इस ओर कभी भी गंभीरता से ध्यान ही नहीं दिया गया। वहीं प्रदेश के शिमला, कुल्लू-मनाली, सोलन, सिरमौर, किन्नौर, लाहुल स्पीति और चंबा के साथ-साथ मंडी में पर्यटन के नए क्षेत्र विकसित करने की भी जरूरत है। क्योंकि पुराने स्थल अब उबाऊ साबित होने लगे हैं।

पार्किंग सुविधा मिले तो बनेगी बात

प्रमुख होटल व्यवसायी मोहेंद्र सेठ, सुरेंद्र ठाकुर, कमल कुमार और जगदीश कुमार का कहना है कि यदि हिमाचल ने अब बड़ी योजनाओं की तरफ कदम नहीं बढ़ाया तो आने वाले वर्षों में हिमाचल गलाकाट प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकता है। सबसे बड़ी पार्किंग दिक्कत बनती है, जिसे प्राथमिकता के आधार पर सुलझाया जाना चाहिए। पर्यटक सीजन के दौरान यातायात अवरुद्ध न हो, इसे भी सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है।

एयर-रेल कनेक्टिविटी बिना सब बेकार

पर्यटन विशेषज्ञों की राय में जब तक प्रदेश में पार्किंग की सुविधाओं के साथ-साथ पर्यटन स्थलों में आधारभूत ढांचे को मजबूत नहीं कर लिया जाता, तब तक दिक्कतें पेश आती रहेंगी। हालांकि पर्यटन विभाग ने पिछले कुछ अरसे से खूब मेहनत की है। एडीबी के 400 करोड़ के प्रोजेक्ट के जरिए पर्यटन स्थलों की दशा सुधारने की मुहिम जारी है। मगर व्यवसायियों का कहना है कि जब तक एयर कनेक्टिविटी, रेल कनेक्टिविटी नहीं बढ़ेगी, तब तक निखार अधूरा ही रहेगा।

रोप-वे, बड़ी होटल शृंखलाएं जरूरी

पर्यटक अभी तक वीकेंड मनाने ही शिमला या अन्य पर्यटक स्थलों में पहुंचते हैं। स्तरीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक है कि बड़े प्रोजेक्ट शुरू हों। बड़ी होटल शृंखलाएं आकर्षित की जा सकें। पिछले दस वर्षों से रोप-वे प्रोजेक्ट्स को लेकर घोषणाएं हो रही थीं, मगर नयनादेवी व टिंबर ट्रेल को छोड़कर प्रदेश में अन्य और कोई भी रोप-वे शुरू ही नहीं हो सका। ये दोनों ही निजी क्षेत्र के हैं। अब मौजूदा सरकार ने धर्मशाला-मकलोडगंज, टुटीकंडी-माल रोड, पलचान-कोठी-रोहतांग के लिए कार्य शुरू किया है। पलचान-कोठी के लिए तैयारियां चली हैं। बिजली-महादेव का कार्य भी शुरू होने वाला है। जाखू रोप-वे इसी वर्ष शुरू होने की उम्मीद है। लिहाजा आने वाले वर्षों में पर्यटकों के लिए नया आकर्षण ये प्रोजेक्ट बन सकते हैं।

वाटर स्पोर्ट्स को निखारने की जरूरत

प्रदेश के पौंग, चमेरा और भाखड़ा में वाटर स्पोर्ट्स की बड़ी क्षमताएं हैं। कुल्लू में ब्यास से लेकर तत्तापानी-सतलुज में भी व्यापक संभावनाएं हैं। इन सबका बड़े स्तर पर दोहन करने की आवश्यकता है। निजी निवेशकों के लिए सकारात्मक माहौल मिले, इसे सुनिश्चित बनाना जरूरी होगा। वरना सरकारी स्तर पर अरबों रुपए के निवेश के रास्ते सरल नहीं हो सकते हैं।

अब चार नए रोप-वे प्रोजेक्ट्स से आस

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने बिजली महादेव, त्रियूंड, नयनादेवी, शाहतलाई, रोप-वे प्रोजेक्ट्स को सिरे चढ़ाने के भी निर्देश दिए हैं। ये प्रोजेक्ट पिछले 10 वर्षों से लटके हैं। हालांकि पलचान से कोठी रोपवे का जो सबसे बड़ा प्रोजेक्ट कुल्लू में सिरे चढ़ना था, उसे टैक्सी आपरेटरों के विरोध के चलते रद्द किया गया था। अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों पर फिर से इसे शुरू किया जा रहा है। टाटा कंपनी इस पर कार्य कर रही है।

 दियोटसिद्ध में पहुंचते हैं 20 लाख श्रद्धालु

सिद्धपीठ बाबा बालक नाथ दियोटसिद्ध में औसतन 20 लाख से ज्यादा श्रद्धालु बाहर से हमीरपुर आते हैं। पुरातत्व विभाग की आपत्ति के चलते मंदिर प्रशासन ने दियोट सिद्ध में अतिरिक्त निर्माण पर विराम लगा दिया है। इस कारण श्रद्धालुओं को सिर्फ  ट्रस्ट की सराय और तीन होटल पर निर्भर रहना पड़ रहा है। चकमोह पंचायत में स्थित सिद्धपीठ में धार्मिक श्रद्धालुओं को मजबूरन लोगों के घरों में शरण लेनी पड़ती है। इस से स्थानीय लोगों के लिए आमदन के भी रास्ते खुले हैं। मंदिर न्यास ने धार्मिक पर्यटन के बढ़ते सैलाब को देखते अब दियोटसिद्ध आने वाले श्रद्धालुओं के लिए शाहतलाई में भी बड़े स्तर पर रात्रि ठहराव के प्रबंधों की योजना का मास्टर प्लान में तैयार किया है

वीकेंड पर बढ़ रही भीड़

प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में वीकेंड टूरिज्म हर साल रफ्तार पकड़ रहा है। शिमला, कुल्लू-मनाली, कसौली पर्यटकों की खास पसंद बनकर उभरे हैं। इन क्षेत्रों में वीकेंड पर चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा व दिल्ली के लोग परिवार सहित घूमने के लिए पहुंचते हैं।

मनमाने दाम से आहत

नववर्ष की पूर्व संध्या पर होटल एडवांस्ड बुकिंग पर चलते हैं। पर्यटकों का आरोप रहता है कि इस दौरान जिनकी अग्रिम बुकिंग नहीं होती, ऐसे में कुछ होटल व गेस्ट हाउसेज  व्यवसायी मनमाने टैरिफ वसूल करते हैं। पर्यटन सीजन के दौरान भी सड़कें दुरुस्त नहीं होती हैं। पर्यटन स्थलों में लूट का आलम दिखता है। प्रशासन निर्देश तो देता है, मगर इसकी अनुपालना करवाने के लिए कोई भी एजेंसी गंभीरता से आगे नहीं आती। यही नहीं, ट्रैवल एजेंट्स से लेकर गाइड्स व पर्यटन स्थलों में फास्ट फूड बेचने वालों के खिलाफ पर्यटकों की शिकायतें आम रहती हं। सबसे बड़ी दिक्कत पार्किंग की रहती है, जिसे लेकर पर्यटक हर सीजन में शिकायत करते नहीं थकते।

दस फीसदी बढ़ी आमद

हिमाचल में पिछले वर्ष एक लाख 75 हजार 410 पर्यटक आमद दर्ज की गई थी, जबकि विदेशी पर्यटकों का आंकड़ा चार लाख था। पर्यटन विभाग के अधिकारियेां के मुताबिक इस साल सितंबर तक ही पिछले वर्ष के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा आमद दर्ज की गई थी।

पर्यटन क्षमता का सर्वे नहीं

हिमाचल में प्रमुख पर्यटन स्थलों की पर्यटक क्षमता क्या है, इसका सर्वे कभी भी नहीं हुआ। इन स्थलों पर कितने वाहन आवाजाही कर सकते हैं। इसे लेकर भी किसी एजेंसी ने सर्वे नहीं किया। मिसाल के तौर पर टूरिस्ट सीजन के दौरान शिमला व मनाली में हर दिन घंटों ट्रैफिक जाम रहता है। मगर इसकी दुरुस्ती के लिए कोई पुख्ता वैकल्पिक व्यवस्था नहीं बन सकी।

पार्किंग की किचकिच

शिमला राजधानी होने की वजह से वन-वे ट्रैफिक की मांग भी दरकिनार कर दी गई है, जो पर्यटक यहां आते हैं, वे पार्किंग की दिक्कतों को लेकर तौबा कर उठते हैं। यहां तक कि जो बाईपास प्रस्तावित हैं, उन्हें भी सिरे नहीं चढ़ाया जा सका है।

गेस्ट हाउस में सैलानी नहीं

हिमाचल में 1800 से भी ज्यादा पीडब्ल्यूडी, वन, आईपीएच व अन्य सरकारी बोर्ड व निगमों के गेस्ट हाउसेज चल रहे हैं। मुख्य तौर पर इनका स्थापन अधिकारियों व विभागाध्यक्षों के फील्ड टूअर्ज के दौरान रहने की सुविधाओं के मद्देनजर किया गया था। मिसाल के तौर पर वन विभाग की इंस्पेक्शन हट्स आज भी दूरदराज के जंगलों में स्थित है। अभी तक ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, न ही ऐसी कोई तैयारी है कि इन्हें पर्यटकों के लिए खोल दिया जाए। इतना जरूर है कि ईको टूरिज्म के जरिए कई विश्राम गृहों को इससे जोड़ा जा रहा है, जिससे पर्यटक भी इनमें रहने का लाभ उठा सकते हैं।

रेस्ट हाउस सरकारी फौज के हवाले

हिमाचल में हर साल डेढ़ से पौने दो करोड़ पर्यटक धार्मिक व सामान्य पर्यटन स्थलों में पहुंच रहे हैं। प्रदेश में विदेशी पर्यटकों की आमद साढ़े चार लाख पार कर चुकी है। इतने पर्यटकों की आमद को देखते हुए हिमाचल में होटल नाकाफी हैं। यदि पर्यटक सीजन के दौरान विश्राम गृहों को विकल्प के तौर पर पर्यटकों के लिए खोल दिया जाए तो यह काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। मगर ऐसा होता नहीं है। टूरिस्ट सीजन में राजनेताओं व अफसरों के रिश्तेदार बड़ी संख्या में हिमाचल घूमने आते हैं। ऐसे में रेस्ट हाउसेज ज्यादातर इसी वर्ग के लिए बुक रहते हैं।

सूत्रधार :  सुनील शर्मा

सहयोग— मस्तराम डलैल, जितेंद्र कंवर, रमेश पहाडि़या, पवन कुमार शर्मा, शैलेष शर्मा,  राकेश कथूरिया, राकेश गौतम