( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )
थमा दिया बम हाथ में, छुड़ा दिया स्कूल,
जो पड़ोस के साथ हैं, वो हैं इसकी भूल।
पीछे दर से झांकता, किसका पंजा, हाथ,
जुड़ा हुआ आतंक से, अब्दुल देता साथ।
अब्बू-अम्मी अकल पर, पत्थर पड़ गए आज,
युवा सगे नापाक के, नहीं आ रहे बाज।
स्वर्ग प्रांत कश्मीर की, चूर हो गईं चूल,
मलिक, गिलानी शर्म कर, तुम हो इसका मूल।
कौन खजाने खोलता, छिपकर भितरघात,
तुम भी आखिर बिक चुके, भिखमंगों को मात।
पत्थर लेकर आ गए, पढ़ने चले नमाज,
मां का चीर हरण किया, तुम्हें न आई लाज।
हारा राजा रावण है, सहता है अवसाद,
चूहे पत्थर फेंकते, उनका हक है याद।
फौजी जो भी कह रहे, सुनो लगाकर ध्यान,
पेंट न गीली हो कहीं, बन जाओ इनसान।