आजादी से अब तक

( बाल मुकुंद ओझा, जयपुर (ई-पेपर के मार्फत) )

आजादी के 70 वर्षों बाद आज हमारा देश अपने देशवासियों की अंतरात्मा को झकझोर रहा है। एक वह भी वक्त था, जब देश की समृद्धि को कई उपमाएं दी गई थीं। जिस देश में दूध-दही की नदियां बहती थीं, जिसे सोने की खान कहा जाता था। सत्यमेव जयते जिसका आदर्श वाक्य था। महापुरुषों और ग्रंथों ने सत्य की राह दिखाई थी। भाईचारा, प्रेम और सद्भाव हमारे वेद वाक्य थे। सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में नैतिकता थी। बुराई के विरुद्ध अच्छाई का बोलबाला था। आजादी की आधी से अधिक सदी बीतने के बाद हमारे कदम लड़खड़ा रहे हैं। सत्यमेव जयते से हमने किनारा कर लिया है। अच्छाई का स्थान बुराई ने ले लिया है और नैतिकता पर अनैतिकता प्रतिस्थापित हो गई है। ईमानदारी केवल कागजों में सिमट गई है और भ्रष्टाचार से पूरा समाज आच्छादित हो गया है। आजादी के बाद निश्चय ही देश ने प्रगति और विकास के नए सोपान तय किए हैं। पोस्टकार्ड का स्थान ई-मेल ने ले लिया है। इंटरनेट से दुनिया नजदीक आ गई है, मगर आपसी सद्भाव, भाईचारा, प्रेम, सच्चाई से हम कोसों दूर चले गए हैं। समाज में बुराई ने जैसे मजबूती से अपने पैर जमा लिए हैं। लोक कल्याण की बातें गौण हो गई हैं। जन साधारण इसके लिए हमारी राजनीतिक व्यवस्था को पूरी तरह से उत्तरदायी मानता है, जिसने जनतांत्रिक मूल्यों को प्रदूषित किया है। शासन व्यवस्था में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले प्रताडि़त किए जा रहे हैं। रक्षक ही भक्षक बन गए हैं। ऐसे में देशवासियों के जागने का समय आ गया है। भ्रष्टाचार और समाज को गलत राह पर ले जाने वाले लोगों को उनके गलत कार्यों की सजा देने के लिए आमजन को जागरूक होने की महत्ती जरूरत है। देश को बचाने के लिए कमर कसनी होगी।