यौगिक परंपरा में शिव को भगवान की तरह नहीं देखा जाता। वह एक ऐसे प्राणी थे, जिनके चरण इस धरती पर पड़े और जो हिमालय क्षेत्र में रहे। यौगिक परंपराओं के स्रोत के रूप में, मानव चेतना के विकास में उनका योगदान इतना जबरदस्त है कि उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। हजारों साल पहले, हर उस तरीके की खोज की जा चुकी थी, जिससे मानव तंत्र को परम संभावना में रूपांतरित किया जा सकता है। इसकी जटिलता अविश्वसनीय है…
सबसे पहले योगी
दूसरे स्तर पर, जब हम शिव कहते हैं, तो हम एक विशेष योगी की बात कर रहे होते हैं, वे जो आदियोगी या पहले योगी हैं, और जो आदिगुरु या पहले गुरु भी हैं। आज हम जिसे यौगिक विज्ञान के रूप में जानते हैं, उसके जनक शिव ही हैं। योग, इस जीवन की मूलभूत रचना को जानने और इसे इसकी परम संभावना तक ले जाने का विज्ञान और तकनीक है। योग विज्ञान का पहला संचार कांतिसरोवर के किनारे हुआ जो हिमालय में केदारनाथ से कुछ मील दूर पर स्थित एक बर्फीली झील है। यहां आदियोगी ने इस आंतरिक तकनीक का व्यवस्थित विवरण अपने पहले सात शिष्यों को देना शुरू किया। ये सात ऋषि आज सप्तर्षि के नाम से जाने जाते हैं। ये सभी धर्मों के आने से पहले हुआ था। लोगों के द्वारा मानवता को बुरी तरह विभाजित करने वाले तरीके तैयार किए जाने से पहले, मानव चेतना को ऊपर उठाने के सबसे शक्तिशाली साधनों को सिद्ध किया और फैलाया जा चुका था। तो शिव शब्द ‘वह जो नहीं है’ और आदियोगी दोनों की ही ओर संकेत करता है, क्योंकि बहुत से तरीकों से ये दोनों पर्यायवाची हैं। किसी को योगी कहने का मतलब है कि उसने ये अनुभव कर लिया है कि सृष्टि वह खुद है। अगर आपको इस सृष्टि को अपने भीतर एक क्षण के लिए भी समाना है, तो आपको शून्य बनना होगा। सिर्फ शून्यता ही सब कुछ अपने भीतर समा सकती है। जो शून्य नहीं, वह सब कुछ अपने भीतर नहीं समा सकता। एक बरतन में समुद्र नहीं समा सकता। योग शब्द का अर्थ है मिलन। योगी वह है जिसने इस मिलन का अनुभव कर लिया है। भारतीय संस्कृति द्वंद्व से भरी है, इसलिए हम एक पहलू से दूसरे पहलू पर आते-जाते रहते हैं। एक पल हम परमतत्त्व शिव की बात करते हैं, तो अगले ही पल हम उन योगी शिव की बात करने लगते हैं, जिन्होंने हमें योग भेंट किया।
यह अफसोस की बात है कि शिव का परिचय ज्यादातर लोगों को भारत में प्रचलित कैलेंडरों के जरिए ही हुआ है, जिसमें उन्हें भरे-भरे गाल वाले नीलवर्णी व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है। उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि कैलेंडर कलाकारों को इस चेहरे से अलग कुछ सूझा ही नहीं। अगर आप कृष्ण बनाने को कहेंगे, तो कलाकार उसके हाथ में एक बांसुरी थमा देंगे। राम बनाने को कहेंगे, तो उसके हाथ में धनुष दे देंगे। और अगर आप शिव बनाने को कहेंगे तो सिर पर चांद रख देंगे, बस काम हो गया! जब भी ऐसे कैलेंडर को देखता हूं, मैं यह सोचता हूं कि मैं कभी भी एक चित्रकार के सामने नहीं बैठूंगा। फोटो मैं कोई परेशानी नहीं क्योंकि जैसे आप हैं वैसी तस्वीर आ जाती है। पर शिव जैसे एक योगी के गाल इतने भरे कैसे हो सकते हैं? अगर आप उन्हें बहुत दुबला-पतला दिखाते तो ठीक होता, पर एक भरे हुए गालों वाले शिव-यह कैसे हो सकता है? यौगिक परंपरा में शिव को भगवान की तरह नहीं देखा जाता। वह एक ऐसे प्राणी थे, जिनके चरण इस धरती पर पड़े और जो हिमालय क्षेत्र में रहे। यौगिक परंपराओं के स्रोत के रूप में, मानव चेतना के विकास में उनका योगदान इतना जबरदस्त है कि उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। हजारों साल पहले, हर उस तरीके की खोज की जा चुकी थी, जिससे मानव तंत्र को परम संभावना में रूपांतरित किया जा सकता है। इसकी जटिलता अविश्वसनीय है। ये प्रश्न करना, कि उस समय क्या लोग इतने जटिल काम कर सकते थे? कोई मायने नहीं रखता, क्योंकि योग किसी विचार प्रक्रिया या सभ्यता की उपज नहीं है। योग भीतरी बोध से आया है। उनके आसपास क्या हो रहा था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। योग उनके भीतर से बाहर आने वाला प्रवाह था। उन्होंने बहुत ही विस्तार से हमें बताया कि मानव तंत्र के हर बिंदु का मतलब क्या है और उसमें छुपी संभावना क्या है? जो भी कहा जा सकता था, वह उन्होंने इतने सुंदर और कुशल तरीकों से कहा कि आप आज भी उनके द्वारा कही गई एक भी चीज नहीं बदल सकते। आप पूरा जीवन उसका अर्थ निकालने में बिता सकते हैं।
-सद्गुरु जग्गी वासुदेव
श्रीरुद्राष्टकम्
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्मवेद स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥ 1॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ 2॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा ॥ 3॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ 4॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ 5॥
कलातीत कल्याण कल्पांतकारी सदा सज्जनानंददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मंमथारी ॥ 6॥
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ 7॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ 8॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥
शिवरात्रि पूजन विधि
पौराणिक कथाओं के अनुसार महा शिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे।
फाल्गुनकृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः॥
श्री शिव अष्टोत्तरशत नामावली
देवताओं की उपासना की विविध पद्धतियों में एक प्रभावकारी और प्रिय पद्धति 108 नामों की उपासना है। भगवान शिव के एक 108 के प्रारंभ में ॐ और अंत में नमः पर उनके नाम मंत्र बन जाते हैं। इन मंत्रों से साधक और गृहस्थ, दोनों उनकी उपासना करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन इन 108 नामों को विशेष फलदायी माना जाता है-
ॐ शिवाय नमः। ॐ महेश्वराय नमः। ॐ शंभवे नमः। ॐ पिनाकिने नमः।
ॐ शशिशेखराय नमः। ॐ वामदेवाय नमः। ॐविरूपाक्षाय नमः। ॐ कपर्दिने नमः।
ॐ नीललोहिताय नमः। ॐ शंकराय नमः। ॐशूलपाणये नमः। ॐ खट्वांगिने नमः।
ॐ विष्णुवल्लभाय नमः। ॐ शिपिविष्टपाय नमः। ॐ अम्बिकानाथाय नमः। ॐ श्रीकंठाय नमः।
ॐ भक्तवत्सलाय नमः। ॐ भवाय नमः। ॐ शर्वाय नमः। ॐ त्रिलोकेशाय नमः।
ॐ शितिकंठाय नमः। ॐ शिवाप्रियाय नमः। ॐ उग्राय नमः। ॐ कपालिने नमः।
ॐ कामारये नमः। ॐ अन्धकासुरसूदनाय नमः। ॐ गंगाधराय नमः। ॐ ललाटाक्षाय नमः।
ॐ कालकालाय नमः। ॐ कृपानिधये नमः। ॐ भीमाय नमः। ॐ परशुहस्ताय नमः।
ॐ मृगपाणये नमः। ॐ जटाधराय नमः। ॐ कैलासवासिने नमः। ॐ कवचिने नमः।
ॐ कठोराय नमः। ॐ त्रिपुरांतकाय नमः। ॐ वृषांकाय नमः। ॐ वृषभारुढाय नमः।
ॐ भस्मोद्धूलितविग्रहाय नमः। ॐ सामप्रियाय नमः। ॐ स्वरमयाय नमः। ॐ त्रिमुर्तये नमः।
ॐ अनीश्वराय नमः। ॐ सर्वज्ञाय नमः। ॐ परमात्मने नमः। ॐ सोमसुर्याग्निलोचनाय नमः।
ॐ हविषे नमः। ॐ यज्ञमयाय नमः। ॐ सोमाय नमः। ॐ पंचवक्त्राय नमः।
ॐ सदाशिवाय नमः। ॐ विश्वेश्वराय नमः। ॐ वीरभद्राय नमः। ॐ गणनाथाय नमः।
ॐ प्रजापतये नमः। ॐ हिरण्यरेतसे नमः। ॐ दुर्धर्षाय नमः। ॐ गिरीशाय नमः।
ॐ गिरिशाय नमः। ॐ अनघाय नमः। ॐ भुजंगभुषणाय नमः। ॐ भर्गाय नमः।
ॐ गिरिधन्वने नमः। ॐ गिरिप्रियाय नमः। ॐकृत्तिवाससे नमः। ॐ पुरारातये नमः।
ॐ भगवते नमः। ॐ प्रमथाधिपाय नमः। ॐ मृत्युंजयाय नमः। ॐ सूक्ष्मतनवे नमः।
ॐजगद्व्यापिने नमः। ॐ जगद्गुरवे नमः। ॐ व्योमकेशाय नमः। ॐ महासेनजनकाय नमः।
ॐ चारुविक्त्रमाय नमः। ॐ रुद्राय नमः। ॐ भूतपतये नमः। ॐ स्थाणवे नमः।
ॐअहिर्बुध्न्याय नमः।ॐ दिगम्बराय नमः। ॐअष्टमूर्तये नमः। ॐ अनेकात्मने नमः।
ॐसात्विकाय नमः। ॐ शुद्धविग्रहाय नमः। ॐ शाश्वताय नमः। ॐ खंडपरशवे नमः।
ॐ अजाय नमः। ॐ पाशविमोचनाय नमः। ॐ मृडाय नमः। ॐ पशुपतये नमः।
ॐ देवाय नमः। ॐ महादेवाय नमः। ॐ अव्ययाय नमः। ॐ हरये नमः।
ॐ पुष्पदन्तभिदे नमः। ॐ अव्यग्राय नमः। ॐ दक्षाध्वरहराय नमः। ॐ हराय नमः।
ॐभगनेत्रभिदे नमः। ॐ अव्यक्ताय नमः। ॐ सहस्त्राक्षाय नमः। ॐ सहस्त्रपदे नमः।
ॐ अपवर्गप्रदाय नमः। ॐ अनंताय नमः। ॐ तारकाय नमः। ॐ श्री परमेश्वराय नमः।
।। इति श्री शिव अष्टोत्तरशत नामावली श्री कपालेश्वर चरणार्पणमस्तु।।
शिवरात्रि पूजन विधि
निशितकाल पूजा : रात्रि 12 .26 मिनट से 1.14 मिनट तक
प्रथम प्रहर : सायं 6.38 मिनट से रात्रि 9.48 मिनट तक
द्वितीय प्रहर : रात्रि 9.45 मिनट से रात्रि 12.51 मिनट तक
तृतीय प्रहर : रात्रि 12.51 मिनट से रात्रि 3.57 मिनट तक
चतुर्थ प्रहर : रात्रि 3.57 मिनट से सुबह 7.04 मिनट तक