क्या पीएम मोदी ‘बाहरी’ हैं?

क्या देश के प्रधानमंत्री को भी ‘बाहरी’ माना जा सकता है? यदि वह ‘बाहरी’ हैं, तो सांसद कैसे हैं? यदि सांसद के बाद प्रधानमंत्री भी हैं, तो ‘बाहरी’ कैसे हैं? ये गांधी परिवार की बौनी बुद्धि से उपजे सवाल हैं। प्रियंका गांधी औसत शिक्षा वाली महिला हैं, लिहाजा सोच भी उतनी ही सीमित और अधकचरी है। प्रधानमंत्री को उत्तर प्रदेश में ‘बाहरी’ करार देना एक विडंबनापूर्ण मुद्दा है। शायद प्रियंका ने खुद भारत का संविधान नहीं पढ़ा होगा। जरूरत भी क्या है? गांधी परिवार तो एक खास किस्म की राजशाही है। उसका काम संविधान को पढ़े बिना ही चलता रहा है। चेले-चांटे बहुत हैं, जो संविधान पढ़कर ‘राजपरिवार’ को बताएंगे। दरअसल अफसोस यह भी है कि यह परिवार भाषायी गहनता को भी नहीं समझता। उसे अपना इतिहास भी ज्ञात नहीं है कि आखिर उनके पूर्वज भी कहां से आए थे। हालांकि बुनियादी सवाल यह नहीं है। दरअसल नरेंद्र मोदी 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान कहा करते थे-गंगा मां ने बुलाया है। अब 2017 के चुनावों के दौरान उन्होंने कहा-यूपी ने मुझे गोद ले लिया है। यूपी ही मेरे माई-बाप हैं। इत्यादि। इन शब्दों के मर्म को समझने की जरूरत है। प्रधानमंत्री एक बार फिर अभिधा में नहीं बोले हैं। उन्होंने लक्षणा शब्दशक्ति का प्रयोग किया है। उनके कथन के भावनात्मक अर्थों को ग्रहण करना चाहिए। गांधी परिवार ने शब्दशक्तियों और काव्यशास्त्र को कभी पढ़ा हो, तो वे जानें कि प्रधानमंत्री के कहने के मायने क्या हैं। प्रियंका गांधी ने रायबरेली में एक जनसभा को संबोधित करते हुए सवाल किया था-क्या यूपी में अपने नौजवान नहीं हैं, जो बाहरी को गोद लेना पड़े? हमें नहीं चाहिए दत्तक बेटा…! हालांकि मुद्दा इतना गंभीर नहीं है कि उस पर टिप्पणी की जाए, लेकिन मूर्ख और अविवेकी व्यक्ति को एहसास दिलाना जरूरी है। हमारे संविधान के मुताबिक, हर भारतीय नागरिक, देश की सीमाओं के भीतर, कहीं भी जा सकता है, नौकरी या कारोबार कर सकता है, चुनाव लड़कर सांसद तक बन सकता है। यदि सांसद बनना संवैधानिक है, तो देश का प्रधानमंत्री भी बन सकता है। डा. मनमोहन सिंह कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के 10 सालों तक प्रधानमंत्री रहे। वह राज्यसभा में असम का प्रतिनिधित्व करते रहे, जबकि उनका मूल संबंध पंजाब से है। आज भी वह असम से ही राज्यसभा सांसद हैं। उन 10 सालों में गांधी परिवार को उनके ‘बाहरी’ होने का एहसास क्यों नहीं हुआ? गांधी परिवार के ही पूर्वज नेहरू परिवार कश्मीर से आए थे। नेहरू जी उत्तर प्रदेश से ही सांसद हुआ करते थे। किसी ने उन्हें ‘बाहरी’ करार नहीं दिया। राहुल-प्रियंका गांधी के ही दादाजी फिरोज गांधी महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश आए थे और रायबरेली को अपना चुनाव-क्षेत्र चुना था। उसी सीट से उनकी पत्नी इंदिरा गांधी चुनाव लड़ती रहीं और आज घर की बहू सोनिया गांधी उसी क्षेत्र से लोकसभा सांसद हैं। सोनिया का संदर्भ आया है, तो समूचा देश जानता है कि वह इटैलियन हैं। चूंकि वह बहू के तौर पर भारत आईं, तो देश के संविधान और कानून ने खुली बांहों से उनका स्वागत किया। वह देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। 2004 में तो उन्होंने प्रधानमंत्री बनने का दावा ही ठोंक दिया था। राष्ट्रपति और कुछ नेताओं ने संवैधानिक अड़चनें पैदा कर दीं, तो उनका मंसूबा धरा-धराया रह गया। सोनिया गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहीं। अपनी यूपीए सरकार के दौरान उन्हें राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया। इटली तो भारत के बाहर एक दूसरा ही देश है। वहां के मूल नागरिक पर इतना भरोसा कैसे किया गया? उन्हें बाहरी और विदेशी करार दिया-शरद पवार, संगमा, तारिक अनवर आदि ने। प्रधानमंत्री मोदी तो भारत के भीतर ही गुजरात से उत्तर प्रदेश आए और वाराणसी से सांसद चुने गए। बीते करीब पौने तीन साल से वह देश के प्रधानमंत्री हैं। उन्हें ‘बाहरी’ कैसे माना जा सकता है? प्रियंका जी! प्रधानमंत्री मोदी को कोसकर कांग्रेस-सपा गठबंधन को वोट मिलने वाले नहीं हैं। ‘बाहरी’ तो आप हैं। जब चुनाव आते हैं, तब एक टूरिस्ट की तरह रायबरेली और अमेठी में घुमक्कड़ी करने आ जाती हैं। अफसोस..! जनता फिर भी कांग्रेस के विधायक नहीं चुनती। कृपया प्रधानमंत्री को ‘बाहरी’ कहकर हमारे संविधान, चुनाव आयोग और लोकतंत्र का अपमान मत कीजिए।