क्यों नहीं हैं ब्रह्मा के मंदिर

सारे प्राचीन मंदिर सिर्फ शिव के ही थे, क्योंकि उन लोगों ने मंदिर आध्यात्मिक प्रक्रिया के लिए बनाया, किसी के कल्याण या अपनी बेहतरी के लिए मंदिर नहीं बनाया गया था। अगर आप संपन्न होना चाहते हैं, तो जमीन को जोतिए, उसमें हल चलाइए, बीज डालिए और संपन्न हो जाइए। अगर आप खुद को मिटाना चाहते हैं, तो आप मंदिर जाइए…

देश में ब्रह्मा के दो मंदिर हैं। एक गुजरात में और एक तमिलनाडु में। सृष्टि रचते समय ब्रह्मा ने एक गलती की, वह बिना कोई शर्त रखे हर चीज बनाते गए। रचना करते समय उन्होंने आपके सामने कोई शर्त नहीं रखी। चूंकि यह जीवन आपको दिया जा चुका है, तो फिर अब कौन परवाह करता है? यह दुनिया आभार से नहीं, बल्कि लालच से भरी है। इसलिए किसी ने भी ब्रह्मा के मंदिर बनाने के बारे में नहीं सोचा। थोड़ा बहुत किसी में जो आभार था, उसकी वजह से दो मंदिर बन गए। एक समय ऐसा था जब सारा भारतवर्ष, यह पूरी संस्कृति केवल आध्यात्मिक कल्याण की ओर उन्मुख थी, तब मंदिर निर्माण के विज्ञान ने मंदिर बनाने के लिए शिव को ही चुना। समय के साथ लगभग हजार बारह सौ साल पहले लोगों का एक ऐसा समूह आया, जो सिर्फ अपने कल्याण को लेकर सोचता था। उनके लिए शिव उपयोगी नहीं थे, इसलिए उन्होंने विष्णु को चुना। इस तरह से पिछले एक हजार साल में हर जगह विष्णु के बहुत सारे मंदिर बनाए गए। कुछ विष्णु भक्त इस हद तक चले गए कि ये लोग पुराने बने मंदिरों में जाते और वहां से शिवलिंग को उठाकर बाहर फेंक देते और उनकी जगह विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर देते। देश में ऐसे कई विशाल मंदिर हैं, जहां पूरा मंदिर शिव का है, लेकिन वहां मूर्ति विष्णु की लगी है। आप जानते हैं कि कुछ बाहरी लोग आए और हमारे मंदिरों को तोड़कर चले गए, लेकिन हमारे यहां के लोग कहीं ज्यादा चालाक थे। आखिर मंदिर क्यों तोडऩा? भगवान ही बदल दो न। तो उन लोगों ने यही किया। यहां तक कि जब गौतम बुद्ध आए और वह लोकप्रिय होना शुरू हुए, तो शुरू में इन लोगों ने उनके साथ तर्क और बहस करनी चाही। इन लोगों ने चाहा कि उन्हें शास्त्रार्थ में हराकर अपने मन की करें। लेकिन फिर उन लोगों ने उनके साथ बहस या तर्क नहीं किया, क्योंकि बुद्ध इन चीजों से परे थे और उनसे तर्क करने वाले लोग भी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर बुद्ध के पास कौन सी शक्ति है। चूंकि बुद्ध किसी ईश्वर की उपासना नहीं करते थे, न शिव की, न विष्णु की और न ही ब्रह्मा की, फिर भी वह दैवीय शक्ति से परिपूर्ण लगते थे। उनके आलोचकों को यह समझ ही नहीं आ रहा था कि बुद्ध के पास शक्ति आखिर आ कहां से रही है। जब बुद्ध बेहद लोकप्रिय हो गए तो वैष्णवों ने कहा कि विष्णु के दस अवतारों में से बुद्ध भी एक अवतार हैं। उनकी दलील थी कि इस बार ईश्वर आपको भ्रमित करने आया है, वह आपकी परीक्षा ले रहा है कि उसके प्रति आपकी भक्ति अचल है या नहीं। इसलिए वह आपको भ्रमित करने आया है, लेकिन वह भी है विष्णु ही। आप इस छलावे में मत आइए। ईश्वर आपकी परीक्षा ले रहा है। इस युक्ति में दोनों ही तरफ जीत थी। आप किसी भी तरह से जाएं, जीत आपकी ही होगी। तो मंदिर इस तरह से बनाए गए। जितने भी प्राचीन मंदिर हैं, वे सब शिव मंदिर हैं, क्योंकि उस समय मंदिर आपके कल्याण के लिए नहीं होते थे। तब मंदिर आपके लिए एक ऐसे अवसर के रूप में होते थे, जहां जाकर आप खुद को विसर्जित कर सकें, मिटा सकें। एक बार जब बाहरी धर्मों का आना शुरू हुआ, तो उन्होंने कहना शुरू किया, ‘आप लोग खुद को मिटाने और मरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हमारा ईश्वर आपकी रक्षा करेगा, वो आपको पैसा देगा, आपको सेहत देगा, आपका कल्याण करेगा।’  इन बातों के जवाब में भारत में वैष्णववाद या वैष्णव संप्रदाय का जन्म हुआ। उनका कहना था, ‘हमारा ईश्वर भी आपकी रक्षा करेगा, आपकी देखभाल करेगा, आपका कल्याण करेगा, आपका सारा काम करेगा।’ और फिर पिछले एक हजार सालों में उन्होंने कई सारे विष्णु मंदिर बनाए। वर्ना सारे प्राचीन मंदिर सिर्फ शिव के ही थे, क्योंकि उन लोगों ने मंदिर आध्यात्मिक प्रक्रिया के लिए बनाया, किसी के कल्याण या अपनी बेहतरी के लिए मंदिर नहीं बनाया गया था। अगर आप संपन्न होना चाहते हैं, तो जमीन को जोतिए, उसमें हल चलाइए, बीज डालिए और संपन्न हो जाइए। अगर आप खुद को मिटाना चाहते हैं, तो आप मंदिर जाइए। लेकिन उन लोगों ने बाहरी लोगों से तरकीब सीखी और उसके बाद उन्होंने दूसरों से कहीं ज्यादा चालाकी से इसका इस्तेमाल किया। इस युक्ति ने काम किया। यह युक्ति हमेशा काम करती है।

सद्गुरु जग्गी वासुदेव