खेत को सींचे प्रदेश का बजट

( राजेंद्र ठाकुर लेखक, ‘दिव्य हिमाचल’ से संबद्ध हैं )

हिमाचल के गठन के 69 साल गुजर जाने के बावजूद इस क्षेत्र में अभी तक हमें आधी ही सफलता मिल पाई है। 5.83 लाख हेक्टेयर (कुल कृषि क्षेत्र) की तुलना में हमारा कुल सिंचित क्षेत्र 2.67 लाख हेक्टेयर है। बाकी जमीन वर्षा पर निर्भर है…

हम पौधा लगाते हैं, समय-समय पर उसे पानी देते हैं, तभी वह बड़ा होता है। इसके उलट अगर हम मात्र करबद्ध होकर भगवान से प्रार्थना करते रहें कि हमारे पौधे बड़े हो जाएं, तो परिणाम नकारात्मक ही रहेगा। पौधे को पानी तो देना ही होगा, लेकिन इससे पहले पुख्ता सिंचाई व्यवस्था भी तो करनी होगी। कृषि प्रधान हिमाचल में विशाल जलसंपदा के बावजूद पहाड़ी क्षेत्र ज्यादा होने के चलते सिंचाई व्यवस्था करना वाकई एक दुष्कर काम है। तभी तो अभी तक हम मात्र 50 फीसदी ही सफल हो पाए हैं, जबकि कृषि योग्य जमीन का 50 फीसदी क्षेत्र अभी भी वर्षा पर निर्भर करता है। यही कारण है कि आज भी हिमाचली किसान वर्षा के लिए आसमान ताकने के लिए मजबूर है और उसकी दया पर निर्भर है। हालांकि ऐसा नहीं है कि हिमाचल में सिंचाई व्यवस्था की दिशा में प्रयास बिलकुल भी नहीं हुए हैं। अब तक हुए प्रयासों का लंबा इतिहास है। प्रदेश में जहां शाह नहर बड़ी सिंचाई परियोजना है, वहीं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं में सिरमौर की गिरि परियोजना, ऊना की वभौर साहिब परियोजना तथा मंडी की बल्ह घाटी व बलद्वाड़ा सिंचाई परियोजनाएं शामिल हैं। प्रदेश में अब तक कुल 2504 सिंचाई परियोजनाएं मुकम्मल की जा चुकी हैं। जिला कांगड़ा में सिद्धाथा व बिलासपुर में आनंदपुर हाइडल चैनल वे मध्यम सिंचाई योजनाएं हैं, जिन पर काम चल रहा है। उधर, केंद्र सरकार की मदद से वर्ष 1974 में शुरू की गई कमांड एरिया डिवेलपमेंट स्कीम के तहत अब तक तीन परियोजनाएं मुकम्मल की जा चुकी हैं, जबकि 12 पर काम जारी है। इसके अलावा प्रदेश में अनुमानित चार हजार कूहलें भी हैं।

कंपलीट की गई 2504 सिंचाई योजनाओं में 807 नलकूप भी हैं। स्प्रिंकलर्स सिंचाई सिस्टम ने भी प्रदेश में आरंभिक सफलता हासिल कर ली है। इन उपलब्धियों के बावजूद कई चिंताजनक बातें हैं। हिमाचल के गठन के 69 साल गुजर जाने के बावजूद इस क्षेत्र में अभी तक हमें आधी ही सफलता मिल पाई है। 5.83 लाख हेक्टेयर (कुल कृषि क्षेत्र) की तुलना में हमारा कुल सिंचित क्षेत्र 2.67 लाख हेक्टेयर है। बाकी जमीन वर्षा पर निर्भर है। हिमाचल में सिंचाई योजनाएं तो कई बनी, लेकिन सभी सफल नहीं हो पाईं। लिफ्ट इरीगेशन सिस्टम भी विफल रहा है। परंपरागत सिंचाई प्रणाली जैसे कूहलों (कई) का नष्ट हो जाना भी दुर्भाग्यपूर्ण है। स्प्रिंकलर्स इरीगेशन सिस्टम में भी काफी त्रुटियां हैं। कई अवसरों पर, विशेषकर सूखे के दौरान यह प्रणाली ठप हो जाती है। चैक डैम का निर्माण भी कई जगह त्रुटिपूर्ण है। शाह नहर हालांकि अब बन चुकी है, किंतु निर्माण के दौरान इस नहर ने हिमाचल के खूब पसीने छुड़वाए। अपने हिस्से की निर्माण राशि देने से पंजाब कई वर्षों तक आनाकानी करता रहा। इससे इसके निर्माण में बहुत देरी हो गई, जिससे नहर की निर्माण लागत कई गुना बढ़ गई। नहर के ट्रायल बार-बार फेल होने के कारण भी हिमाचल का खूब पसीना छूटा। इसके अलावा कुछ अन्य नहरें भी चिंता की लकीरें गहरी करती हैं। उदाहरण के तौर पर रामपुर (शिमला) के पंद्रहबीस क्षेत्र की पंचायत क्याव में स्थित सिंचाई नहर दो वर्षों से बंद पड़ी है। मरम्मत न हो पाने के कारण इसमें जलागमन नहीं हो पा रहा है और सैकड़ोें किसानों के खेत सूख चुके हैं।

इसी तरह बल्ह घाटी की राइट बैंक सिंचाई परियोजना को भी मरम्मत की दरकार है। समय पर बजट न मिल पाने के कारण सिंचाई सिस्टम कई बार फेल हो जाता है। उधर, भूमिगत जल का कम होते जाना भावी संकट की ओर संकेत करता है। इसके कारण नलकूपों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता, जिससे उनके सूख जाने का खतरा बढ़ जाता है। सिंचाई व्यवस्था की इन खामियों को दूर करके ही पुख्ता प्रणाली का विकास किया जा सकता है। उपाय के रूप में हमारी पहली नजर इजरायल पर टिकती है। इस क्षेत्र में उसके द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी विश्व भर में सर्वश्रेष्ठ आंकी जा रही है। इस देश से भारत के बढ़ते संबंध व उसकी हमारे देश में रुचि, ये दो ऐसे सकारात्मक संकेत हैं, जिनसे हिमाचल लाभ उठा सकता है। इजरायल से हिमाचल को प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिए तीव्र प्रयास करने होंगे। हिमाचल को नई सिंचाई परियोजनाओं की जरूरत है, जिनके निर्माण में इजरायल की विशेषज्ञता का लाभ उठाया जा सकता है। इसके अलावा वर्षा का जल संग्रहित करके चलने वाली परियोजनाओं को पुख्ता करना होगा। हिमाचल की सिंचाई शक्ति का हृस भी रोकना होगा। अभी तक हम अपनी सिंचाई शक्ति का 40 फीसदी ही सदुपयोग कर पा रहे हैं, हमारी शेष शक्ति का अनेक कारणों के चलते हृस हो रहा है। उदाहरण के रूप में कूहलों व नलकूपों के रास्ते कच्चे हैं, इसके चलते काफी मात्रा में पानी सप्लाई के दौरान ही नष्ट हो जाता है। अगर इन रास्तों को पक्का बना दिया जाए तो हानि को रोका जा सकता है, जिससे हमारे पास पर्याप्त पानी उपलब्ध होगा। बाड़बंदी करके, सिंचाई ढांचे का नवीकरण करके तथा बिजाई के तरीकों में परिवर्तन लाकर भी हम अपनी सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ कर सकते हैं।  इन सब उपायों के लिए एक बड़े बजट की जरूरत होगी। सरकार को इस क्षेत्र के लिए पर्याप्त बजट की व्यवस्था करनी चाहिए। तभी खेतों तथा बागानों तक पर्याप्त पानी की व्यवस्था हम कर पाएंगे।