पंढरीनाथ मंदिर

इंदौर शहर में  पुलिस थाने के सामने पंढरीनाथ मंदिर है। यह मंदिर विट्ठल (विष्णु) भगवान का मंदिर है। बहुत कम लोगों को पता होगा कि यह नाम  कैसे पड़ा और कौन हैं यह पंढरीनाथ। भगवान विष्णु, जिन्हें भक्त पंढरीनाथ, पांडुरंग, विट्ठल, विठोबा, विठू और न जाने कितने नामों से पुकारते हैं। मंदिर में विराजित भगवान पंढरीनाथ की काले पत्थर की स्वयंभू मूर्ति बेहद आकर्षक, चिकनी एवं कलात्मक है। इसकी ठोड़ी में लगे हीरे की चमक सड़क से भी नजर आती है। पंढरपुर की मूर्ति बालू रेत से बनी है और खुरदरी है। सदियों से भक्तों द्वारा माथा टेकने के कारण मूर्ति को क्षति पहुंची। इसके चलते भगवान को चांदी के पैर लगाए गए हैं। इंदौर के मंदिर का निर्माण महाराजा मल्हारराव होलकर द्वितीय के शासनकाल (1811-1833) के मध्य हुआ। मंदिर का गुंबद गोलाकार है और चार खंभों पर टिका है एवं शिखर नगर शैली का है। शिखर के कीर्तिमुख पर पीतल का कलश स्थापित है। वर्तमान में मंदिर का भीतरी भाग पीले रंग और बाहरी भाग को गेरुए और गुलाबी रंग से पोता गया है। मंदिर के गर्भगृह में पंढरीनाथ, विष्णु की प्रतिमा के साथ रुकमणि और गोपाल की छोटी मूर्ति भी स्थापित है। प्रवेश द्वार के दायीं और गणेश जी और बायीं ओर कार्तिकेय की मूर्ति है। यहां अपनाई गई शैली 19वीं सदी में स्थापित कला का उत्तम नमूना है।  इंदौर में मंदिर के साथ-साथ कई छतरियों में भी इस शैली को अपनाया गया है।  कहते हैं कि जीरापुर  के जगीरदार विसाजी लांभाते बहुत धार्मिक थे। उनकी भगवान पंढरीनाथ में गहरी आस्था थी। प्रतिवर्ष आषाढ़ी एकादशी पर पंढरपुर की वारी तीर्थ यात्रा में शामिल होने का उनका नियम रहा। उनकी इस वारी की विशेषता यह थी कि सालभर की कमाई और पत्नी के लिए बनवाए गहने वह पंढरपुर पहुंचकर जरूरतमंदों में बांट देते थे। इससे उनकी पत्नी बहुत दुःखी थी। यह बात महाराजा मल्हार राव होलकर द्वितीय तक पहुंची। उन्होंने विसाजी को कारावास में डलवा दिया। इधर वारी का नियम चूक जाने से विसाजी अन्न जल त्याग कर पंढरीनाथ को पुकारते और क्षमा मांगते रहे। आषाढ़ी एकादशी को ब्रह्म मुहूर्त में भगवान पंढरीनाथ ने उन्हें सपने में दर्शन दिए और कहा तुम नहीं आ सके तो क्या हुआ, मैं आ गया हूं। कारावास के पास बहने वाली नदी में मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं। मुझे यहां से निकालो। खुदाई में भगवान पंढरीनाथ की यह मूर्ति निकली। आज भी जागीरदार लांभाते परिवार को मंदिर में पहली पूजा अभिषेक का मान हासिल है।