महाराष्ट्र को भाजपा पसंद है

महाराष्ट्र, खासकर आर्थिक राजधानी मुंबई, को भाजपा का ही साथ पसंद है। देश की सबसे अमीर मुंबई महानगरपालिका, जिसका बजट करीब 37,000 करोड़ रुपए है, के चुनाव में असली जीत भाजपा की हुई है। शिवसेना के साथ गठबंधन टूटने और नोटबंदी दुष्प्रचार की छाया में 10 नगर निगमों के चुनाव हुए थे। भाजपा उनमें से 8 में विजयी रही है। हालांकि 84 वार्डों में जीत के साथ शिवसेना सबसे बड़ी पार्टी रही, लेकिन उसका विस्तार 75 के बाद ही हुआ है। भाजपा ने पहले 31 वार्डों में जीत के बाद अब 82 में परचम लहराया है, लिहाजा उसकी बढ़ोतरी करीब 300 फीसदी की है। भाजपा की जीत इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसने मुंबई के अलावा अमरावती, नासिक, पुणे में कांग्रेस और एनसीपी-मनसे की सत्ताओं को ध्वस्त किया है। भाजपा ने कांग्रेस-एनसीपी से पांच बड़े शहर छीने हैं और अपनी सत्ता स्थापित की है। नागपुर में नतीजे एकतरफा रहे, जहां शिवसेना के खाते में ‘शून्य’ है, जबकि भाजपा ने बंपर जीत हासिल की है। यह जीत इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि यहां आरएसएस का मुख्यालय है। चूंकि मुंबई महानगरपालिका में शिवसेना सबसे बड़ी पार्टी है, बेशक कांग्रेस, एनसीपी, मनसे से सांठगांठ कर वह अपना ‘मेयर’ चुन सकती है, लेकिन जनादेश के मायने साफ हैं कि महाराष्ट्र और मुंबई को भाजपा का ही साथ पसंद है। भाजपा ने कांग्रेस को मृतप्रायः कर दिया है और एनसीपी, मनसे का सूपड़ा सा साफ हो गया है। इन नतीजों के बाद शिवसेना को पुनर्विचार करना चाहिए कि केंद्र और विधानसभा में भाजपा के साथ गठबंधन बरकरार रखे या दशकों पुराना रिश्ता तोड़ दे। जनादेश ने यह भी साफ कर दिया है कि भाजपा के बिना शिवसेना का वजूद भी बौना है। शिवसेना मुंबई और ठाणे में ही भाजपा से बढ़त ले सकी है, लेकिन मुंबई में तो मात्र दो आंकड़ों का अंतर है। लेकिन यहां भी सत्ता के लिए उसे किसी और के समर्थन की दरकार रहेगी। सवाल है कि क्या इन नतीजों के मद्देनजर ‘भगवा गठबंधन’ जारी रहेगा? या शिवसेना उन दलों का साथ लेगी, जिनके विरोध में पार्टी का उदय हुआ और बाल ठाकरे ने भी ‘कांग्रेसमुक्त’ महाराष्ट्र का सपना संजोया था? महत्त्वपूर्ण यह है कि चुनाव से पूर्व और दौरान शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने नोटबंदी समेत कई योजनाओं को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की तीखी आलोचनाएं की थीं, लेकिन स्पष्ट हो गया कि देश की आर्थिक राजधानी ने नोटबंदी समेत मोदी सरकार के अन्य नीतिगत फैसलों को स्वीकार किया है। इसके अलावा, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का राजनीतिक कद भी ऊंचा हुआ है। जो विरोधी फड़णवीस केब्राह्मण होने के कारण उन्हें चुनौतियां दे रहे थे, अब उन्हें खामोश होकर मुख्यमंत्री के तौर पर फड़णवीस का नेतृत्व कबूल करना पड़ेगा। जो महाराष्ट्र में भाजपा की लगातार चुनावी हार के आकलन कर रहे थे, उन्हें भी अपने पूर्वाग्रह छोड़ कर पुनरावलोकन करने चाहिए। महाराष्ट्र की यह जीत भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘संजीवनी’ सी है। चूंकि उत्तर प्रदेश चुनाव में फिलहाल तीन चरण मतदान शेष है, क्या महाराष्ट्र जनादेश का संदेश उत्तर प्रदेश में सुना जाएगा? क्या उत्तर प्रदेश में मतदान की मानसिकता अब बदल सकती है? महाराष्ट्र में उत्तर प्रदेश की काफी आबादी काम करती है, क्या उसके मद्देनजर उत्तर प्रदेश में भाजपा को एकतरफा चुनावी फायदा होगा? बहस यह भी छिड़ सकती है कि चुनाव के दौरान मतदाता को प्रभावित करने वाले क्रिया-कलाप, कोई लोकलुभावन घोषणा, चुनावी नतीजों की घोषणा जरूरी है या उसे भी आचार संहिता के तहत गोपनीय रखा जाए? चुनाव आयोग की शुचिता पर भी बहस संभव है। महाराष्ट्र का यह जनादेश उत्तर प्रदेश के मतदाता को भी कुछ प्रभावित कर सकता है। बहरहाल हमें 11 मार्च तक इंतजार करना चाहिए। लेकिन जिस जगह कांग्रेस का जन्म हुआ और 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की शुरुआत हुई थी, उसी स्थान पर आज कांग्रेस की यह हार बेहद गंभीर है, ऐतिहासिक पतन की तरह है। क्या कांग्रेस कुछ सबक लेना चाहेगी?