रंगों के फायदे अनेक

गुलाबी रंग  कुछ उत्तेजना देने वाला, हल्का, पाचन करने वाला और शीतल है। गर्भवती स्त्रियों के रोगों में लाल की जगह गुलाबी रंग देना चाहिए। प्रसूत रोग, गर्भाशय की पीड़ा, सिर दर्द, मुंह में छाले आदि में इसका आश्चर्यजनक लाभ होता है…

पीले रंग के गुण

पीला रंग पाचक और शोधक है। यह रसों को पचाता है और शारीरिक विकारों का शोधन करता है। विशुद्ध पीले रंग की बोतलें अकसर प्राप्त नहीं होतीं। उनमें कुछ लाल रंग की झलक होती है। विदेशों में सूर्य-चिकित्सकों ने इस कार्य के लिए खासतौर से पीले रंग की बोतलें बनवाई हैं, पर वे हिंदोस्तान में हमें अभी तक प्राप्त नहीं हुईं, विदेशों में इनका मूल्य बहुत है और मार्ग-व्यय सहित यहां आकर दाम महंगा पड़ता है। इसलिए सूर्य-चिकित्सक आमतौर से लाल झलक लिए हुए नारंगी बोतलों का ही प्रयोग कर लेते हैं। यह भी अच्छी हैं। इनके द्वारा तैयार किए हुए जल में कुछ उष्णता का गुण बढ़ जाता है। पीला रंग पेट की खराबी के लिए बहुत अच्छा है। कुछ दिन के लगातार सेवन से अमाशय और आंतों की खराबियां दूर हो जाती हैं। मुख, नाक या गुदा द्वारा रक्त जाने, कंठमाला, मधु, प्रमेह, बहरापन, चर्म रोग एवं कुष्ठ रोगों में पीले रंग से बहुत फायदा होता है। बैठे रहने के कारण जिन लोगों को भोजन ठीक प्रकार हजम नहीं होता, वे पीले रंग का गुण आजमाकर संतोष लाभ कर सकते हैं। दस वर्ष से कम उम्र के बच्चों को लाल रंग की अपेक्षा पीला रंग ही देना चाहिए, क्योंकि यह अधिक गर्म न होते हुए भी लाल रंग के सब गुण रखता है। छोटे बच्चों को अधिक गर्मी की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए उन्हें पीला या नारंगी रंग ही देना उचित है। जाड़े में आने और फसली बुखारों के लिए पीला पानी अच्छा है। नजला और हिस्टीरिया में भी इसके द्वारा बहुत लाभ होता है।

मिश्रित रंग

लाल, पीले, नीले रंगों के आपस में मिलने अन्य अनेक रंग बनते हैं। इन  अनेक मिले हुए रंगों के गुण वहीं होंगे, उसमें मिले हुए मूल रंगों के हैं। कई रंगों के मिलने से जो रंग बना है, उसमें यह देखना चाहिए कि कौन सी अधिक है। उसी के अनुसार मिश्रित रंग का गुण समझना चाहिए। मान लीजिए कि किसी कांच का रंग बैंगनी है, उसके रंग में नीलापन अधिक है और लाल कम है तो वह थोड़ी सी गर्मी लिए हुए शीतल होगा, किंतु यदि लाल रंग अधिक कम हो तो उसे शीतलता लिए हुए गर्म समझना चाहिए। विभिन्न रंगों के क्या-क्या गुण होते हैं, इसका कुछ थोड़ा-सा परिचय इस प्रकार है। नारंगी रंग – नारंगी रंग कब्ज को दूर करने वाला है। इस रंग का सूर्य की किरणों का जल पीने से आंतें ठीक होकर अपना काम पूर्ववत करने लगती हैं, परंतु स्मरण रखना चाहिए, इसका अधिक तादाद में पी जाना लाभ के स्थान में हानि कर सकता है। जो लोग दिनभर बैठे रहते हैं और घूमने-फिरने का अन्य प्रकार का कोई शारीरिक परिश्रम नहीं करते, उनके लिए नारंगी रंग का सेवन करते रहना बड़ा उपयोगी है। 12 वर्ष से कम आयु वाले बालकों को लाल रंग नहीं दिया जाता क्योंकि उनके स्वभाव में स्वयमेव गर्मी और चंचलता अधिक होती है। जिन रोगों में लाल रंग देने का विधान है, उनमें बालकों को हमेशा नारंगी रंग ही देना चाहिए। नारंगी रंग के कुछ दिन के लगातार सेवन से खून खराबी, चर्म रोग और कुष्ठ रोग अच्छे हो जाते हैं। किन्हीं-किन्हीं को इसके सेवन से दस्त चलने लगते हैं, उन्हें इसकी मात्रा कम कर देनी चाहिए। अनेक चिकित्सकों ने इस रंग का उपयोग शीत ज्वर, नजला, छाती की जलन, अपच, पेट का दर्द, मिरगी, फेफड़े के रोग आदि पर किया है और उससे अद्भुत लाभ पाया है। बैंगनी रंग- यह शीतल और भेदक है। जब शरीर में गर्मी अधिक बढ़ जाए या ज्ञान-तंतुओं में उत्तेजना हो, तब इस रंग का उपयोग बड़ा लाभप्रद होता है। सन्निपात, प्रलाप, बहुमूत्र तथा प्रमेह रोग में इसके द्वारा अद्भुत लाभ होता है।

गुलाबी रंग – यह कुछ उत्तेजना देने वाला, हल्का, पाचन करने वाला और शीतल है। गर्भवती स्त्रियों के रोगों में लाल की जगह गुलाबी रंग देना चाहिए। प्रसूत रोग, गर्भाशय की पीड़ा, सिर दर्द, मुंह में छाले आदि में इसका आश्चर्यजनक लाभ होता है।

गहरा नीला – यहां गहरा नीला कहने से हमारा मतलब उस रंग से है, जो कुछ कालापन लिए हुए हैं। लाल या पीली झलक उसमें बिलकुल न होनी चाहिए। गहरा नीला रंग एक प्रकार का टॉनिक है, ताकत देना इसका प्रधान गुण है। प्रमेह आदि के कारण या बहुत दिनों की बीमारी की वजह से लोग बहुत कमजोर हो गए हों, उनके लिए गहरे नीले रंग का उपयोग बहुत मुफीद है। क्षय रोगों में जब कि रोगी की दशा दिन-दिन गिरती ही जाती है, गहरा नीला रंग देना चाहिए। इससे रोगी को बड़ी मदद मिलती है और उसका हृस रुक जाता है।