विषैली होती राजनीति

( देव गुलेरिया, योल कैंप, धर्मशाला )

हम उन शहीदों-नेताओं को सलाम करते हैं, जिन्होंने देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवाया। हमें आजादी तो मिली, लेकिन  ‘आजाद’ शब्द से धीरे-धीरे हम अनभिज्ञ होते गए। लोकतंत्र का गठन हुआ, हमें अपने मत का अधिकार मिला, अपने प्रतिनिधि चुनकर संसद-विधानसभाओं में भेजने का अधिकार मिला, ताकि हम अपनी समस्याओं को सरकार के समक्ष रखें, उनका निदान पा सकें, लेकिन भोलीभाली जनता को प्राप्त क्या हुआ? चुने हुए प्रतिनिधि सिर्फ व्यक्तिगत लाभ के प्रति व्यस्त हो गए। आज राजनीति किस दिशा में अग्रसर है? भाषा लगातार विषैली होती जा रही है। बाहुबल, धन का उपयोग, झूठे वादों के सपने और एक-दूसरे पर लांछन लगाकर चुनाव जीतने का यह अंदाज हमारे लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध होने का संदेश दे रहा है। अतः जनता को अपने इस अधिकार के प्रति जागरूक होना अति आवश्यक हो गया है। इसलिए समाज के बुद्धिजीवियों-समाजसेवियों तथा सरकार को इसके प्रति उचित कदम उठाने होंगे, जागरूकता अभियान चलाकर जनता को उसके अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना होगा। साफ, ईमानदार, कर्मठ उम्मीदवारों को चुनकर संसद-विधानसभाओं में भेजना होगा, ताकि इनकी गरिमा बनी रहे। जनता को चुनावी प्रचार में हर नेता के व्यवहार पर नजर रखनी होगी और मतदान के वक्त अनैतिक लोगों के खिलाफ मताधिकार का उपयोग करना चाहिए।