शिवाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

ग्रहणकाल में भगवान शिव की विषपायी नीलकंठ की विशेष रूप से उपासना की जाती है। उनकी आराधना से ग्रहण के समस्त कुप्रभाव नष्ट होते ही हैं, व्यक्ति के लौकिक और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग भी खुलते हैं। ग्रहण की कालावधि में महामृत्युंजय मंत्र अथवा भगवान शिव के अतिप्रिय मंत्र -ॐ नमः शिवाय का जाप किया जाता है। देव आराधना का एक लोकप्रिय और प्रभावी तरीका उनके विविध नामों का जाप है। भक्त अपने इष्ट के 108 अथवा 1008 नामों का जाप करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। ग्रहण काल में भगवान शिव की उपासना उनके 108 नाम का जाप करके की जा सकती है। इन नामों का उल्लेख ‘शिवाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र’ में हुआ है। सूर्य ग्रहण अथवा चंद्र ग्रहण के दिन आप इस स्तोत्र का पाठ कर ग्रह  नक्षत्रों के कुप्रभावों से बच सकते हैं-

शिवो महेश्वरःशंभुःपिनाकी शशिशेखरः।

वामदेवो विरुपाक्षः कपर्दी नीललोहितः।।

शंकरःशूलपाणिश्च खट्वांगी विष्णुवल्लभः।

शिपिविष्टोऽम्बिकानाथःश्रीकण्ठो भक्तवत्सलः।।

भवःशर्वस्त्रिलोकेशः शितिकण्ठःशिवाप्रियः।

उग्रःकपालिःकामारिरन्धकासुरसूदनः।।

गंगाधरो ललाटाक्षःकालकालःकृपानिधि।

भीमः परशुहस्तश्च मृगपाणिर्जटाधरः।।

कैलासवासी कवची कठोरस्त्रिपुरांतकः।

वृषांको वृषभारूढो भस्मोद्धूलितविग्रहः।।

सामप्रियः स्वरमयस्त्रयीमूर्तिरनीश्वरः।

सर्वज्ञःपरमात्मा च सोमसूर्याग्निलोचनः।।

हविर्यज्ञमयःसोमःपंचवक्त्रः सदाशिवः।

विश्वेश्वरो वीरभद्रो गणनाथः प्रजापतिः।।

हिरण्यरेता दुर्धर्षो गिरीशो गिरिशोऽनघः।

भुजंगभूषणो भर्गो गिरिधन्वा गिरिप्रियः।।

कृत्तिवासा पुरारातिर्भगवान् प्रमथाधिपः।

मृत्युंजयः सूक्ष्मतनुर्जगद् व्यापी जगद्गुरुः।।

व्योमकेशो महासेनजनकश्चारुविक्त्रमः।

रुद्रो भूतपतिःस्थाणुरहिर्बुध्न्यो दिगम्बरः।।

अष्टमूर्तिरनेकात्मा सात्त्विकःशुद्धविग्रहः।

शाश्वतः खण्डपरशुरजपाशविमोचकः।।

मृडःपशुपतिर्देवो महादेवोऽव्ययःप्रभुः।

पूषदन्तभिदव्यग्रो दक्षाध्वरहरो हरः।

भगनेत्रभिदव्यक्तः सहस्त्राक्षःसहस्त्रपात्।

अपवर्गप्रदोऽनन्तस्तारकःपरमेश्वरः।।

एतदष्टोत्तरशतनाम्नामाम्नायेन सम्मितम्।

विष्णुना कथितं पूर्वं पार्वत्या इष्टसिद्धये।।

शंकरस्य प्रिया गौरी जपित्वा त्रैकालमन्वहम्।

नोदिता पद्मनाभेन वर्षमेकं प्रयत्नतः।।

अवाप सा शरीरार्द्धप्रसादाच्छूंलधारिणः।

यस्त्रिसंध्यं पठेच्छम्भोर्नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।।

शतरुद्रित्रिरावृत्त्या यत्फलं प्राप्यते नरैः।

तत्फलं प्राप्नुयादेतदेकवृत्त्या जपन्नरः।।

बिल्वपत्रैःप्रशस्तैर्वा पुष्पैश्च तुलसीदलैः।

तिलाक्षतैर्यजेद् यस्तु जीवन्मुक्तो न संशय।।

नाम्नामेषां पशुपतेरेकमेवापवर्गदम्।

अन्येषां चावशिष्टानां फलं वक्तुं न शक्यते।।

। इति श्रीशिवरहस्ये गौरीनारायणसंवादे शिवाष्टोत्तरशतदिव्य नामामृतस्तोत्रं संपूर्णम्।