श्री टौणा देव मंदिर

श्री टौणा देव का ऐतिहासिक भव्य मंदिर अष्टभुजाकार 55 फुट ऊंचा, 18 बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है। यह मंदिर सरकाघाट मुख्यालय से 7 किमी. की दूरी पर रमणीक एवं देव घाटियों के मध्य स्थित है…

विश्व में देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल प्रदेश में वर्ष भर मेलों का आयोजन होता रहता है। यहां की संस्कृति की अपनी ही पहचान है। ऐसा ही आस्था व श्रद्धा का धार्मिक स्थल है श्री टौणा देव, जहां हर वर्ष आषाढ़ के प्रथम सोमवार को परंपरागत वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। श्री टौणा देव का ऐतिहासिक भव्य मंदिर अष्टभुजाकार 55 फुट ऊंचा, 18 बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है। यह मंदिर सरकाघाट मुख्यालय से 7 किमी. की दूरी पर रमणीक एवं देव घाटियों के मध्य स्थित है। किंवदंतियों के अनुसार एक युवक सराजघाटी में नौकरी करता था तथा वह सराजघाटी की युवती के प्रेमपाश में बंध गया। युवती ने युवक को बताया कि टौणा देव भगवान उसके अंग-संग हैं। दोनों की शादी हो गई और युवती अपने साथ देव पिंडी को भी ले आई। उसने पिंडी को गुफा के अंदर रख दिया। युवती रोजाना पिंडी का दूध से स्नान कराकर पूजा करती थी और बचा हुआ दूध वहीं रख आती थी। एक दिन उसने सफेद नाग को दूध पीते हुए देखा। वह रोज दूध का कटोरा रख आती और नाग उसे खाली कर देता था। एक दिन गांव की औरतों ने इस रहस्य को जानना चाहा। जैसे ही वह दूध का कटोरा रख कर आई, तो गांव की औरतों ने चुपके से नाग को दूध पीते देख लिया। नाग की नजर भी औरतों के समूह पर पड़ी और नाग छिप गया। कहते हैं कि उस दिन के बाद नाग दूध पीने नहीं आया और युवती उदास रहने लगीं। एक दिन नाग देवता ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और कहा मैं अब इस स्थान को छोड़ गया हूं तथा देव नाले की घाटी में बस गया हूं, वहां मेरा मंदिर बनवाना। युवती ने अपने सपने की बात गांववासियों से की। गांव वाले देव का मंदिर बनाने के लिए इस शर्त पर राजी हुए कि नाग देव हमें अपना कोई चमत्कार दिखाएं। कहते हैं कि आषाढ़ मास के पहले सोमवार को भू-स्खलन के कारण निर्दिष्ट देव स्थली की काया ही पलट गई। गांववासियों ने देखा कि अब वहां एक रमणीय चौगान था, तालाब था, सात जगह पानी की धाराएं फूट पड़ी थीं। तालाब के किनारे देव भगवान की पिंडी भी प्रकट हो गई थी। इस अजूबे के उपरांत गांवासियों ने वहां देव भगवान का मेला आयोजितकिया।

– डी.आर. सकलानी, सरकाघाट