सांप का प्रतीक और अध्यात्म

सांप ही वह पहला प्राणी है, जिसको इस पृथ्वी पर होने वाले मामूली-से-मामूली बदलावों का अंदाजा हो जाता है, क्योंकि उसका सारा शरीर धरती से लगा होता है। उसके कान नहीं होते; वह बिलकुल बहरा होता है, इसलिए वह अपने पूरे शरीर को कान की तरह इस्तेमाल करता है। सचमुच में वह अपने कान धरती से लगाए होता है। मान लीजिए कैलिफोर्निया में भूकंप आने वाला है, तो वेलियंगिरि पहाड़ों के सांपों को 30-40 दिन पहले ही इसकी जानकारी हो जाती है। हमारी धरती को ले कर सांप की बोधशक्ति इतनी ज्यादा तेज है…

आध्यात्मिक रहस्यों और सांपों को कभी अलग नहीं किया जा सकता। दुनिया में जहां कहीं आध्यात्मिक रहस्य की खोजबीन की गई है या उसका अनुभव किया गया है, जैसे, मेसोपोटामिया, क्रेट, इजिप्ट, कंबोडिया, वियतनाम और जाहिर है भारत की प्राचीन संस्कृतियों में, वहां सांप हमेशा मौजूद रहे हैं। इसका एक पहलू है कि इसे एक प्रतीक के रूप में लिया जाता है, योग में कुंडली मार कर बैठा हुआ सांप कुंडलिनी का प्रतीक माना जाता है। इसे प्रतीक माने जाने का कारण यह है कि चेतना और क्षमता के स्तर पर आकाशीय प्राणियों (जैसे, यक्ष, गंधर्व) को इंसानों से बेहतर माना जाता है। जब भी इन प्राणियों ने अस्तित्व के इस आयाम में प्रवेश किया, तो उन्होंने हमेशा एक सांप का रूप धारण किया। पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राचीन और पौराणिक कथाओं में इसकी चर्चा की गई है। भारत में शिव के नागभूषण होने की कहानी से लेकर ऐसी अनगिनत कहानियां हैं। आध्यात्मिक रहस्यवाद, बोध का एक खास पहलू है और सांप में यह क्षमता देखने को मिलती है। इसीलिए शिव के माथे पर तीसरी आंख के खुलने को, जिसको बोध की एक ऊंची अवस्था मानी जाती है, सांप की मौजूदगी द्वारा दिखाया जाता है। सांप आम तौर पर जमीन पर रेंगता है, लेकिन शिव ने इसे अपने सिर के ऊपर रखा, इससे वह यह बता रहे हैं कि कुछ मामलों में सांप मुझसे बेहतर है। पुराणों में नरक में नागलोक होने की बात कही गई है सांपों के एक पूरा समाज की कल्पना है, जिसमें सिर्फ सांप ही नहीं बल्कि सर्पवंश के मनुष्य भी शामिल हैं। उनको नागा कहा जाता है; उन्होंने इस राष्ट्र की संस्कृति और दूसरी कई संस्कृतियों को संवारने का काम किया है। इतिहास में झांकने पर मालूम होता है कि कंबोडिया में अंगकोर के महान मंदिर नागाओं की संतान ने ही बनाए हैं। वे भारत से गए, वहां के स्थानीय लोगों से शादी की और एक राज्य स्थापित किया। नागाओं में राजकाज रानियों के हाथ में होता था, राजा के हाथ में नहीं, क्योंकि वे मातृ सत्ता वाले परिवार थे। बाद में, भारत के एक ब्राह्मण राजा कौंडिन्य ने वहां जाकर नागाओं की रानी को हरा दिया। ऐसे इनसान अभी भी मौजूद हैं, जिनका सांपों से बढ़ा गहरा नाता है। मैं भी उनमें से एक हूं, मैं नागा नहीं हूं, लेकिन मेरे जीवन को सांपों से अलग नहीं किया जा सकता। मेरी जिंदगी के हर महत्वपूर्ण वक्त पर सांप हमेशा मौजूद रहे हैं। सांप बहरा होता है, पर सबकुछ भांप लेता है। अगर कोई इनसान ध्यानशील हो जाता है, तो उसकी तरफ खिंचने वाला पहला प्राणी सांप ही होता है। इसीलिए चित्रों में साधु-संतों के इर्द-गिर्द आपको सांप नजर आते हैं। सांप की बोधशक्ति इतनी तेज होती है कि जिन पहलुओं को जानने के लिए इनसान बेचैन और बेताब रहता है, सांप उनको बड़ी आसानी से जान लेता है। ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा के समय जब हम विशुद्धि चक्र की प्राण-प्रतिष्ठा कर रहे थे, तब वहां चार सौ लोग इकट्ठा हुए थे और उन सबके बीच से किसी तरह रेंगता हुआ, एक सांप हमारे पास पहुंच जाता था। हमने जाने कितनी बार उसको उठा कर दूर जंगल में छोड़ा होगा, लेकिन बस आधा घंटा होते-होते वह वापस चला आता था। वह प्राण-प्रतिष्ठा से दूर नहीं रहना चाहता था। सांप ही वह पहला प्राणी है, जिसको इस पृथ्वी पर होने वाले मामूली-से-मामूली बदलावों का अंदाजा हो जाता है, क्योंकि उसका सारा शरीर धरती से लगा होता है। उसके कान नहीं होते; वह बिलकुल बहरा होता है, इसलिए वह अपने पूरे शरीर को कान की तरह इस्तेमाल करता है। सचमुच में वह अपने कान धरती से लगाए होता है। मान लीजिए कैलिफोर्निया में भूकंप आने वाला है, तो वेलियंगिरि पहाड़ों के सांपों को 30-40 दिन पहले ही इसकी जानकारी हो जाती है। हमारी धरती को ले कर सांप की बोधशक्ति इतनी ज्यादा तेज है। सर्प सेवा किसी संबंध में बंधे किन्हीं भी दो व्यक्तियों द्वारा किसी भी दिन की जा सकती है। शक्तिशाली नाग मंत्रों के साथ की जाने वाली इस पूजा से व्यक्ति के आपसी संबंधों में उलझनें और द्वंद्व दूर होते हैं और उनमें मजबूती और मधुरता आती है। यह सेवा गर्भवती महिलाओं के लिए और संतान के इच्छुक लोगों के लिए विशेष सहायक है, क्योंकि यह मजबूत शारीरिक गठन में मदद करती है। अगर गर्भावस्था के दौरान महिला हर महीने सर्प सेवा करती है तो यह उसके व उसके बच्चे के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती है।

-सद्गुरु जग्गी वासुदेव