तेरी लट से ही तो रात चुराई है।
सूरत तेरे मुखड़े का अनुयायी है।
मौसम तेरे सांसों से बनते हैं।
दिन और रात तेरे नयनों से चलते हैं।
फूल खिले हैं पत्तों की शहनाई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयायी है।
जब तू शबनम ऊपर रुक-रुक
चलती है।
धूप सुनहरी जैसे-जैसे ढलती है।
शांत समंदर में जितनी गहराई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयायी है।
मीठी वाणी तेरे लब की उल्फत है।
चांद सितारों की जग में शोहरत है।
कृतज्ञता में अंबर की ऊंचाई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयायी है।
झील किनारे किरणों वाला मेला है।
खेवनहार किश्ती साथ अकेला है।
हुसन तेरे की ऐसी रहनुमाई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयाई है।
लेकर भव्य अलौकिक शृंगार खुदाने,
उसमें डाला अंतरंग मनुहार खुदा ने।
तेरी चाहत से ही प्रीत बनाई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयायी है।
चौरासी लाख जून में ऐसा होता है।
कोई हंसता है, तो कोई रोता है।
बालम तेरी उल्फत का शौदाई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयायी है।
— बलविंदर बालम गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर