स्वच्छता को मिले नई सोच का ‘स्टार्टअप’

( कंचन शर्मा लेखिका, शिमला से स्वतंत्र पत्रकार हैं )

‘रिकार्ट’ स्टार्टअप गुरुग्राम के 12 हजार घरों से कचरा उठाता है। इस तरह ‘रिकार्ट’ ने कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है। क्यों न हिमाचल के पढ़े-लिखे युवा बेरोजगार कूड़ा प्रबंधन को ‘स्टार्टअप’ अभियान के तहत एक व्यवसाय के रूप में देखें। यह कदम प्रदेश को कचरा-शून्य बनाने में कारगार सिद्ध होगा…

पर्वत राज हिमालय की गोद में बसा हिमाचल प्रदेश अपने असीम प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है, लेकिन साथ ही हमारा यह प्रयास भी होना चाहिए कि यह स्वच्छता के लिए भी जाना जाए। पर्यटक आज भी यहां ठोस व तरल कचरे की अव्यवस्था को देखकर हैरत में पड़ जाते हैं। हालांकि स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत हिमाचल वर्ष 2019 तक शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रयासरत है। महिला मंडलों के अभियान में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए महिला मंडल प्रोत्साहन योजना आरंभ की गई है, जिसके अंतर्गत निर्मल ग्राम पुरस्कार दिए जा रहे हैं। यूं तो स्वच्छता के मामले में हिमाचल प्रदेश उत्तर भारत की शान के रूप में उभरा है। प्रदेश का मंडी जिला स्वच्छता के मानदंडों पर नंबर एक बना है। स्वच्छ भारत मिशन में हिमाचल देश के बड़े राज्यों में सबसे पहले ओपन डेफिकेशन पहाड़ी राज्य घोषित हुआ था। स्वच्छता मिशन के अलावा हिमाचल ने पर्यावरण संरक्षण में भी शानदार कार्य किया। यहां पेड़ कटान के साथ प्लास्टिक की थैलियां प्रतिबंधित हैं। हिमाचल के जिला किन्नौर का रक्षम गांव साफ-सफाई के चलते प्रदेश के गांवों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुका है। इसके बावजूद प्रदेश अभी कचरा शून्य प्रदेश बनने की मुहिम से दूर है। प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध के बावजूद औद्योगिक पैकेजिंग, फूड पैकेजिंग, जैविक व अजैविक कचरा तथा ई-कचरे की भरमार है, जो इधर-उधर बिखरे हुए स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ाता हुआ प्रतीत होता है। हिमाचल हर दिन 50 टन कचरा पैदा कर रहा है, जबकि अभी तक सभी जिलों में ठोस कचरा प्रबंधन के तकनीकी प्रबंध नहीं हैं। यूं भी पर्यावरण प्रदूषण में कूड़ा-कर्कट इत्यादि की बड़ी भूमिका है। कूड़े का वर्गीकरण करना अत्यावश्यक है।

कचरा प्रबंधन में यह एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, जिसे आधुनिक पढ़ा-लिखा व संभ्रात वर्ग भी अनदेखा कर रहा है। मसलन कूड़ा-कचरा भी कई प्रकार है, जैसे जैविक-अजैविक, प्लास्टिक, धातु, शीशे, ई-कचरा वगैरह। कूड़े का वर्गीकरण प्रायः घरों में ही हो जाना चाहिए। उसमें से कुछ कचरे की खाद बनाई जा सकती है, कुछ को जमीन में गाढ़ देना सुरक्षित होगा और कुछ हिस्सा ऐसा भी है जो सीधे संपत्ति में परिणत किया जा सकता है। बिना वर्गीकरण किए कचरे को भूमि में दबाने से एक ओर जहां मिट्टी की उर्वरकता खराब होती है, वहीं भूमिगत जल स्रोत भी दूषित होते हैं। ऐसा कूड़ा जलाने से वायु प्रदूषण भी बढ़ता है। हमारे दर्शन-धर्म-भक्ति के ग्रंथ शरीर, मन, वाणी, कर्म की निर्मलता पर बड़ा जोर देते हैं। महात्मा गांधी भी सबसे पहले जब सफाई के प्रति ग्रामीण और शहरी दोनों के ‘सामान्य बोध’ तक का सर्वेक्षण करते हैं तो पाते हैं कि व्यक्तिगत सफाई में हम भारतीयों का जवाब नहीं, लेकिन सामाजिक सफाई के सिलसिले में सबसे गए गुजरे हैं। नगरपालिका जगह-जगह कचरा डालने के लिए कूड़ेदान रखती भी है, फिर भी लोगों की आम मानसिकता सड़क-फुटपाथ पर कचरा डालने की है। कूड़ेदानों के पास लावारिस, भूखे, मुंह मारते पशुओं के लिए यह स्थिति घातक व जानलेवा सिद्ध हो रही है, क्योंकि आमतौर पर इस कूड़े में कांच के टुकड़े, फूड पैकेजिंग का प्लास्टिक, ई-कचरा व अन्य जहरीले रसायन पशुओं का ग्रास बन रहे हैं। कचरे से मुक्ति पाने के लिए हमें स्वीडन को मिसाल के तौर पर लेना चाहिए। स्वीडन में कचरा प्रबंधन के लिए रिहायशी इलाकों के दायरे में ही रिसाइकिलिंग स्टेशन हैं। लोग भी जागरूक हैं तथा घरों में ही कचरे का वर्गीकरण कर लिया जाता है। 50 प्रतिशत कचरे को रिसाइकिलिंग कर दोबारा इस्तेमाल किया जाता है।

50 प्रतिशत कचरा जलाकर ऊर्जा पैदा की जाती है। कचरे से बिजली पैदा करने के लिए स्वीडन हर साल स्वीडन दूसरे देशों से सात लाख टन कचरे का आयात करता है। इस तरह से स्वीडन एक कचरा शून्य देश की श्रेणी में आकर एक उदाहरण पेश करता है। यहां ‘रिकार्ट’ स्टार्टअप का उदाहरण देना भी जरूरी है। गुरुग्राम में ‘रिकार्ट’ घरों में बेकार पड़ी चीजों को खरीदता है, इसके प्लास्टिक, गत्ता, धातु बायोमीट्रिक कचरे को अलग-अलग करके रिसाइकिल प्लांट को बेच देता है, ताकि यह फिर से इस्तेमाल किया जा सके। ‘रिकार्ट’ गुरुग्राम के 12 हजार घरों से कचरा उठाता है। इस तरह से ‘रिकार्ट’ न केवल कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में एक मिसाल कायम कर रहा है, अपितु अनेक बेरोजगार लोगों को रोजगार भी दे रहा है। क्यों न हिमाचल के पढ़े-लिखे युवा बेरोजगार कूड़ा प्रबंधन को ‘स्टार्टअप’ अभियान के तहत एक व्यवसाय के रूप में देखें। यह कदम प्रदेश को कचरा-शून्य बनाने में कारगार सिद्ध होगा। औद्योगिक, प्रौद्योगिकी व विज्ञान के समय में भी हम अभी तक कचरा शून्य धरती नहीं बना पा रहे हैं, तो उसका स्पष्ट कारण है कि हम लोगों ने न तो राष्ट्रीय सफाई को जरूरी गुण माना और न ही इसका विकास किया। जनमानस में अपने अधिकारों के लिए तो सजगता है, मगर कर्त्तव्यों के नाम पर सब अंगूठा ही दिखाते हैं। अकेले सरकार या नगरपालिका ही प्रदेश को कचरा शून्य बनाने के लिए काफी नहीं, अपितु सभी संस्थाएं, क्लब, केंद्र, सामान्य जन स्वच्छता को जरूरी गुण मानकर उसका विकास करें। इस बात का हमेशा ख्याल रखा जाए कि संविधान में अगर हमें अधिकार दिए गए हैं, तो उसमें कुछ हमारे कर्त्तव्य भी हैं, जिनका निर्वाह करना हमारा धर्म है। यूं भी एक प्रसिद्ध पंक्ति है, ‘स्वच्छता भगवान की ओर पहला कदम है’ और पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि हिमाचल की जनता द्वारा प्रभावी रूप से इसका अनुसरण किया गया तो कुछ ही वर्षों में स्वच्छ भारत अभियान से हिमाचल प्रदेश कचरा शून्य प्रदेश बनकर दैवीय, पवित्र व आदर्श स्थल में बदल जाएगा।

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