हिमाचली पुरुषार्थ

पहाड़ जैसे हौसले ने अनिल को दिलाया मेडल

नायब सूबेदार अनिल की छाती पर सजे तमगे ने प्रदेश का सीना चौड़ा कर दिया है। उनके अनुसार देश के लिए जीने-मरने की कसम खाई है, तो फिर दुश्मन को कैसे देश की तरफ देखने दें। उनका पहाड़ सा हौसला बताता है कि उनके दिल में देश प्रेम की लहरें कितनी जोर से हिलोरें ले रही हैं…

भारतीय सेना में हिमाचली जवानों ने सरहदों को अपने खून से सींचा है। देखा जाए तो देश के लिए सबसे ज्यादा शहादत हिमाचली युवाओं ने ही दी है। अब तक की चाहे कोई भी लड़ाई हो, हिमाचली सूरमाओं ने अपना बलिदान देकर देश की रक्षा की है। इस बार हम जिक्र उस जांबाज का कर रहे हैं, जिसने अपनी जान की परवाह न करते हुए आतंकवादियों से लोहा लिया। भारतीय सेना में आतंकवादियों के छक्के छुड़ाने पर बिझड़ी के नायब सूबेदार को दूसरी बार सेना मेडल से नवाजा गया है। गणतंत्र दिवस समारोह दिल्ली में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अनिल कुमार को मेडल देकर सम्मानित किया था। आंतकवादियों को ढेर करने पर उन्हें यह सम्मान दिया गया। नायब सूबेदार अनिल की छाती पर सजे तमगे ने प्रदेश का सीना चौड़ा कर दिया है। उनके अनुसार देश के लिए जीने-मरने की कसम खाई है, तो फिर दुश्मन को कैसे देश की तरफ देखने दें। उनका पहाड़ सा हौसला बताता है कि उनके दिल में देश प्रेम की लहरें कितनी जोर से हिलोरें ले रही हैं। बिझड़ी में कैप्टन जगत राम के घर 27 जुलाई, 1978 को जन्मे अनिल कुमार की दो बहनें व एक भाई हैं।

अनिल कुमार की प्रारंभिक शिक्षा बिझड़ी, उच्च शिक्षा केंद्रीय विद्यालय ऊधमपुर में हुई। वर्ष 1997 में बारहवीं कक्षा में पढ़ाई करते वक्त ही वह भारतीय सेना में भर्ती हो गए। भर्ती के पांच वर्ष बाद वर्ष 2002 में उनकी शादी हमीरपुर जिला के वरोहा गांव की रमा धीमान से हुई। उसका एक बेटा अक्षित धीमान व एक बेटी असीमा धीमान हैं। नायब सूबेदार अनिल कुमार के पिता ने बताया कि उसके बेटे को शुरू से ही भर्ती होने का शौक था, क्योंकि उसकी परवरिश सैन्य माहौल में हुई थी। अनिल कुमार को वर्ष 1997 में भर्ती होने के बाद सेना मुख्यालय बंगलूर में ज्वाइनिंग देने के बाद नौ पैरा स्पेशल फोर्स के लिए चुना गया। अभी सेना में भर्ती हुए महज छह वर्ष हुए थे कि उनकी तैनाती वर्ष 2003 में जम्मू-कश्मीर के पुंछ रजौरी में हुई। वहां पर उन्होंने दो आतंकवादियों को मार गिराया। नायब सूबेदार अनिल कुमार की वीरता और अदम्य साहस को देखते हुए सेना कमांडर ने उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया। सेना में अपनी सेवाएं जारी रखते हुए उन्होंने एक बार फिर 2 मई, 2016 को जम्मू के कुपवाड़ा में दो आंतकवादियों को मार गिराया था। भारतीय सेना ने उन्हें एक बार फिर सेना मेडल देने का निर्णय लिया और 26 जनवरी, 2017 को सेना मेडल से सम्मानित किया। इसके चलते परिवार में खुशी का माहौल है।

नायब सूबेदार अनिल कुमार वर्तमान में जम्मू सेक्टर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सेना के इस जांबाज के होते दुश्मन की हिम्मत नहीं कि वह देश की तरफ आंख उठा कर देखे। पूरे देश को अपने ऐसे जांबाजों के ऊपर गर्व है, जो देश को अपनी जान से भी ज्यादा समझते हैं। नायब सूबेदार अनिल के जीवन से प्रदेश के नौजवान भी प्रेरणा लेंगे ताकि वे भी देश की रक्षा का प्रण लेकर सरहदों की हिफाजत के लिए सेना में भर्ती हों। हिमाचल तो वैसे भी सैन्य पृष्ठभूमि वाला प्रदेश है। हमारे पूर्वजों ने देश हित के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं की और अब नायब सूबेदार अनिल कुमार भी उन्हीं के पदचिन्हों पर चल रहे हैं। आज  भारत माता को ऐसे ही बेटों की जरूरत है, जो उसकी तरफ आंख उठाने वालों को दुनिया से ही उठा दें।

-प्रवीण ढटवालिया, बड़सर

हिमाचली पुरुषार्थ

देश के लिए जसवंत का जुनून

अपने जख्मों की परवाह किए बगैर उन्होंने सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले में एक आतंकी को मार गिराया और अपने बाकी साथियों की रक्षा की, जबकि जसवंत सिंह के बाजुओं और टांग में गोलियां लगी हुईं थी। ऐसे लोगों की वजह से ही हमारा देश आजाद है और हम चैन की नींद सोते हैं। जसवंत जैसे जवानों की वजह से ही आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं होते…

 जोगिंद्रनगर क्षेत्र की पंडोल पंचायत के बोहला गांव में पिता जय सिंह और माता सुती देवी के घर 17 जुलाई, 1975 को जन्मे जसवंत सिंह ने सेना में नाम कमाया है।  अपने जख्मों की परवाह किए बगैर उन्होंने सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले में एक आतंकी को मार गिराया और अपने बाकी साथियों की रक्षा की, जबकि जसवंत सिंह के बाजुओं और टांग में गोलियां लगी हुईं थी। ऐसे लोगों की वजह से ही हमारा देश आजाद है और हम चैन की नींद सोते हैं। जसवंत जैसे जवानों की वजह से ही आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं होते। बचपन से ही सेना में जाने का जूनून सवार था। इसी लिए भर्ती होने के लिए दिन- रात मेहनत की। प्रातः व सायं दोनों समय दौड़ना व अन्य शारीरिक गतिविधियों को अंजाम दिया, जिसकी बदौलत सेना में फर्स्ट डोगरा में 22 फरवरी, 1994 को भर्ती हुए। भर्ती होने के लिए चौथे प्रयास में सफलता प्राप्त हुई जिससे पूर्व तीन बार किसी न किसी वजह से भर्ती न हो पाए, लेकिन हिम्मत नही हारी। आखिर सफलता हाथ लगी और सेना में फर्स्ट डोगरा में भर्ती हो गए।

वैसे तो घर में सभी का सहयोग सेना में जाने के लिए मिला, लेकिन सेना में भर्ती के लिए पिता का प्रोत्साहन सबसे अधिक रहा। 18 सितंबर, 2016 को वह अपने अन्य सैन्य साथियों के साथ रात 12 बजे अपनी डयूटी समाप्त कर अपने कैंप में वापिस आया व प्रात लगभग 4.30 बजे अचानक गोलियों की आवाज सुन कर महसूस हुआ कि आंतकवादियों ने शिविर पर हमला कर दिया है। फिर क्या था सभी साथियों ने बंदूकें उठाईं व आंतकवादियों का डट कर सामना किया। लेकिन जहां कुछ साथियों ने शहादत का जाम पिया, वहीं उसे भी दोनों बाजुओं व दायीं टांग पर गोलियां लगीं, लेकिन जसवंत ने हिम्मत नही हारी व एक आंतकवादी को मार गिराया। उसके पश्चात उन्हें घायल अवस्था मंे श्रीनगर लाया गया, जहां 4-5 दिन उपचार के पश्चात दिल्ली ले जाया गया। दिल्ली के आरआर अस्पताल में उनका लगभग 5 माह तक उपचार चला व अब वह घर आ गए हैं।

अभी  जसवंत सिंह लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक अपने को स्वस्थ मानते हैं व अभी बैसाखियों के सहारे ही चल पाते हैं जबकि बाजू भी पूरी तरह ठीक नही है। जसवंत सिंह आज के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं व युवाओं को सेना में अधिक से अधिक भर्ती होने व देश की आन, बान व शान के लिए आगे आने का संदेश देते हैं। जसवंत सिंह का कहना है कि यदि युवा डर कर आगे नही आएंगे व भर्ती नही होंगे, तो देश की रक्षा कौन करेगा व देशवासी कैसे सुरक्षित रह पांएगे।

जसवंत सिंह का कहना है कि देश में अन्य प्रदेशों की अलग रेजिमेंट होने के साथ-साथ हिमाचल की अपनी अलग से रेजिमेंट होनी चाहिए ताकि हिमाचल के युवाओं को भी सेना में भर्ती के अधिक अवसर प्राप्त हो सकें। वह इन दिनों जम्मू-कश्मीर के उड़ी सेक्टर में तैनात हैं। जसवंत की इस बहादुरी ने प्रदेश को गौरव प्रदान किया है

-हरीश बहल, जोगिंद्रनगर