अक्लेश का क्लेश

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

क्लेश कर कुल में, क्यों कुनबे को तोड़ा,

मक्खी समझ निकाला अमरू, कहीं का न छोड़ा।

बापू ने खुद कसी साइकिल, पुर्जा-पुर्जा जोड़ा,

श्रवण कलियुगी ने घमंड में, पुर्जा-पुर्जा तोड़ा।

हाथ मिलाया राहु से, दौड़ा सपने में घोड़ा।

रामू खासमखास बना, शिब्बू का हाथ मरोड़ा,

लल्लू-पंजू सगे बन गए, बापू का दिल तोड़ा।

खुद ही पैदा किए शत्रु अब, अटकाते सब रोड़ा,

राजा था अब रंक बन गया, पड़ा काल का कोड़ा।