ऋषि शृंगी गुफा

अपने भक्त की ऐसी अनदेखी पर इंद्र देव राजा रोमपद पर क्रुद्ध हुए और उन्होंने पर्याप्त वर्षा नहीं की। अंग देश में नाम मात्र की वर्षा हुई। इससे खेतों में खड़ी फसल मुरझाने लगी। फिर राजा को विद्वानों ने बताया कि केवल ऋषि शृंगी ही उन्हें इससे निजात दिला सकते हैं…

भारतवर्ष की भूमि ऋषि-मुनियों की भूमि है। इन्हीं महानतम ऋषियों में से एक शृंगी ऋषि भी थे, जिन्होंने लंबे अरसे तक तप किया और अपने तपोबल से समाज कल्याण के कार्य किए। ऋषि शृंगी गुफा हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में सरांहा से 18 किमी. दूर सड़क के किनारे स्थित है। यह गुफा काफी बड़ी है और इसका रास्ता अनंत है। गुफा में प्रवेश करने पर 50 मीटर का  रास्ता तय करने पर नीचे की तरफ एक स्थान है, माना जाता है कि ऋषि यहां बैठ कर तपस्या करते थे। उस स्थान पर शिव परिवार की मूर्तियां स्थापित हैं तथा गुफा की दीवारों पर विभिन्न देवताओं की तस्वीरों की चित्रकारी नक्काशी द्वारा की गई है। गुफा के बारे में मान्यता है कि इसका रास्ता अंदर ही अंदर कई भागों में बंट जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शृंगी ऋषि की जीवन गाथा भी रोचक है। माना जाता है कि ऋषि विभंडक ने किसी जमाने में कठोर तप किया। उनके इस तप से देवराज इंद्र सहित सभी देवगण भयभीत हो गए और उनके तप को भंग करने के लिए उन्होंने अप्सरा उर्वशी को भेजा। उर्वशी ने उन्हें मोहित कर दिया, जिसके फलस्वरूप शृंगी ऋषि की उत्पत्ति हुई। जन्म के समय शृंगी ऋषि के माथे पर एक सींग था अतः उनका यह नाम पड़ गया। उसी समय नन्हे बालक को छोड़कर उर्वशी इंद्रलोक चली गई। उसके इस कृत्य से विभंडक ऋषि काफी क्रोधित हुए तथा उन्हें अपनी भूल का आभास हुआ। तभी वह अपने पुत्र को महिलाओं व समाज से दूर रखने के उद्देश्य से वीरान स्थान पर ले गए व उस से कठोर तप करवाया। इसी के साथ एक ऐसी मान्यता भी जुड़ी है कि अयोध्या के राजा दशरथ की एक पुत्री थी, जिसका नाम शांता था। वह आयु में अपने भाइयों से काफी बड़ी थी। ऐसी मान्यता है कि एक बार अंगदेश के राजा रोमपद और उनकी रानी वर्षिणी अयोध्या आए। उनके कोई संतान नहीं थी। बातचीत के दौरान राजा दशरथ को जब यह बात मालूम हुई तो उन्होंने कहा, मैं मेरी बेटी शांता आपको संतान के रूप में दूंगा।  रोमपद और वर्षिणी बहुत खुश हुए। उन्हें शांता के रूप में संतान मिल गई। उन्होंने बहुत स्नेह से उसका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सभी कर्त्तव्य निभाए। एक दिन राजा रोमपद अपनी पुत्री से बातें कर रहे थे। तब द्वार पर एक ब्राह्मण आया और उसने राजा से प्रार्थना की कि वर्षा के दिनों में वह खेतों की जुताई में शासन की ओर से मदद प्रदान करें। राजा को यह सुनाई नहीं दिया और वह पुत्री के साथ बातचीत करते रहे। द्वार पर आए नागरिक की याचना न सुनने से ब्राह्मण को दुख हुआ और वह राजा रोमपद का राज्य छोड़कर चले गए। वह इंद्र के भक्त थे। अपने भक्त की ऐसी अनदेखी पर इंद्र देव राजा रोमपद पर क्रुद्ध हुए और उन्होंने पर्याप्त वर्षा नहीं की। अंग देश में नाम मात्र की वर्षा हुई। इससे खेतों में खड़ी फसल मुरझाने लगी। फिर राजा को विद्वानों ने बताया कि केवल ऋषि शृंगी ही उन्हें इससे निजात दिला सकते हैं। ऋषि शृंगी का विवाह शांता से हुआ और इन्होंने ही राजा दशरथ की पुत्र कामना के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया था। – संजय राजन,सरांहा