एकसाथ तीन पिचों पर हिमाचल

प्रतिष्ठा के तीन सवाल एक साथ हिमाचल से रू-ब-रू। धर्मशाला में देश का सबसे बड़ा मुकाबला आस्ट्रेलिया से, शिमला विधानसभा के बजट सत्र का सरकार से और भोरंज उपचुनाव का आर-पार से। राजनीति खुद को बटोर कर किसी एक पर केंद्रित कर भी ले, लेकिन नागरिक समुदाय खुद को शिमला से भोरंज या क्रिकेट के मैदान तक देख रहा है। एक से बढ़कर एक पिच और माहौल की तल्खियों के बीच अपने-अपने खिलाड़ी का खेल। एक लघु अंतराल के बाद बजट सत्र के प्रश्नों के बीच सरकार का दमखम देखा जाएगा, तो भोरंज उपचुनाव के तेवर भाजपा और कांग्रेस की तलाशी लेते रहेंगे। मिजाज में नेताओं का आक्रोश बंदूकें ताने खड़ा है और आरोपों की गोलियां बरस रही हैं। भाजपा की आक्रोश रैली ने माहौल को इस कद्र सुलगा दिया कि अब बात बजट सत्र के बाहर भी नीति और नीयत की हो रही है। सरकारी शराब यूं तो हर चुनाव में बिकती है, लेकिन इस बार भोरंज उपचुनाव ने तो पूरे प्रदेश की बिक्री पर ही पंजा लड़ा दिया। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने आबकारी नीति और शराब की बिक्री में मुख्यमंत्री के जंवाई राजा का नाम क्या घसीट दिया कि अब सियासत घिसटने लगी। इसका सीधा अर्थ समझें, तो मालूम होगा कि भाजपा पूरी शिद्दत से पंजाब के घातक मुद्दों का आयात कर रही है। यह दीगर है कि वहां यही मुद्दे कांग्रेस ने उठाए और अकाली-भाजपा सरकार का शिकार किया। यह आश्चर्य का वीणावादन है, जो भोरंज उपचुनाव में अलाप बदल रहा है। यह समझने की जरूरत पैदा हो गई या मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने भाजपा के सियासी दृश्य से प्रेम कुमार धूमल को खारिज करने का आखिरी तीर चला दिया। यानी भोरंज उपचुनाव से कोई दिशा अगली सरकार के गठन की तय होती है, तो नेतृत्व की पोशाक बदल जाएगी। यह कहना सरल नहीं, लेकिन कठिनता यह है कि यहां राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा। हालांकि लाभांश की दृष्टि से भाजपा के नक्षत्रों में भोरंज की विरासत और धूमल का प्रभाव एक साथ विराजित है, फिर भी इस बार समीकरणों की नई अधेड़बुन की परख होगी। देखना यह भी होगा कि भोरंज उपचुनाव का कितना असर बजट सत्र की कार्यवाही पर पड़ेगा या यह भी कि बजट सत्र किस तरह इसे महसूस करता है। यह इसलिए भी कि सरकार के अंतिम बजट सत्र से कुछ तो गर्मी भोरंज ने चुरा ली और यह भी कि चुनावी गर्मी में सदन के मुद्दे पिघल जाएंगे। यह दीगर है कि इन दोनों मुकाबलों के बीच, धर्मशाला में क्रिकेट भी एक साथ खेल और सियासत से मुखातिब है और यह इसलिए भी कि हमीरपुर के सांसद अनुराग ठाकुर का असर पूरे मैदान में छाया है। भारत के पूर्व कप्तानों सुनील गावस्कर व कपिल देव की कमेंट्री को पूरा विश्व सुनकर यह अंदाजा तो लगा ही पाएगा कि धर्मशाला में आई रौनक के पीछे किसका खेल रहा और इस जन्नत में असली नजारा है किसका। यकीनन अनुराग ठाकुर ने क्रिकेट का एक मक्का यहां ढूंढा और पहले टेस्ट मैच की वजह से स्टेडियम ने हिमाचल का सूचकांक ऊंचा कर दिया। बेशक इसी स्टेडियम की बुनियाद को मालूम है कि सियासत यहां से दूर नहीं और कब-कब इसके करीब रही। यह मात्र मैदान नहीं अनुराग ठाकुर के आरोहण की सीढ़ी रही और जिसने इस युवा को राजनीति इतनी सिखा दी कि हमीरपुर संसदीय सीट का एक नया इतिहास बन गया। क्रिकेट की सियासत में भी धर्मशाला स्टेडियम की भूमिका और रंगत में अनुराग ठाकुर की बढ़त का एक तकाजा, बीसीसीआई के उच्च पद तक जाता है और लुढ़कने की शिकायत भी। ऐसे में धर्मशाला की पिच अगर विशुद्ध खेल का मूल्यांकन कर रही है, तो भारत की जीत को हजारों दुआएं। बजट सत्र में हिमाचल के हित और सुशासन की कसौटियां तय हो रही हैं, तो हजारों दुआएं और अगर भोरंज उपचुनाव सही चेहरा ढूंढ पाया तो भी हजारों दुआएं साथ देंगी। कहना न होगा कि हिमाचल में एक साथ तीन पिचों पर खेल जारी है और हर किसी की अहमियत में प्रदेश का योगदान भी रहेगा। शिमला में विधानसभा सत्र की निर्णायक पारी से दूर नहीं भोरंज में सियासत की पारी, लेकिन सबसे बढ़कर धर्मशाला में भारत की पारी ही होगी, क्योंकि वहां हम देश के कारण अपने होने का एहसास भी तो कर रहे हैं।