औद्योगिक विकास का पहिया बने बजट

कर्म सिंह ठाकुर

(लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं)

सरकार उद्यमियों को जितना मर्जी प्रलोभन दे, लेकिन जब तक नियमों की धरातलीय पहुंच सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक प्रदेश उद्योगों की स्थापना का सुनहरा अध्याय नहीं लिख सकता। इस संदर्भ में यदि प्रदेश सरकार सफलता हासिल कर लेती है, तो प्रदेश की माली हालत तो सुधरेगी ही, बढ़ती बेरोजगारों की फौज से भी निजात मिलेगी…

हिमाचल प्रदेश में औद्योगिकीकरण के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। इस क्षेत्र के विकास से स्वरोजगार बढ़ेगा, बेरोजगारों व पढ़े-लिखे युवाओं को रोजगार मिलेगा, वहीं दूसरी ओर प्रदेश की खस्ता आर्थिक स्थिति को नई सांस मिलेगी। गत वर्ष मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने बंगलूर, अहमदाबाद तथा दिल्ली में उद्योगपतियों के साथ विशेष बैठकों का आयोजन किया, ताकि प्रदेश में नवीन निवेश के जरिए औद्योगिकीकरण को बढ़ाया जा सके। इसके साथ प्रदेश सरकार ने युवा उद्यमियों और निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए ‘स्टार्टअप प्रोग्राम’ शुरू किया है, जिसके अंतर्गत एकल खिड़की स्वीकृति, नए उद्यमियों की सुविधा के लिए स्टांप शुल्क एवं भूमि उपयोग हस्तांतरण शुल्क में कटौती तथा 300 से अधिक हिमाचलियों  को रोजगार देने वाली नवीन औद्योगिक इकाइयों सेे पांच वर्षों तक केवल एक प्रतिशत विद्युत शुल्क वसूले जाने जैसी सुविधाओं की सौगात सरकार द्वारा दी जा रही है।

प्रदेश में बद्दी, बरोटीवाला तथा नालागढ़ (बीबीएन) क्षेत्र ही अब तक औद्योगिक इकाइयों को आकर्षित करने में सफल रहा है। इसके अलावा प्रदेश में अन्य क्षेत्रों में औद्योगिकीकरण की अपार संभावनाएं होने के बावजूद अलगाववाद की स्थिति बनी हुई है। किसी भी उद्योग की स्थापना के लिए भूमि, कच्चा माल, कुशल कर्मचारी, उचित परिवहन सुविधा, सरकार की उद्यमियों को प्रोत्साहन देने की प्रवृत्ति का होना अति आवश्यक होता है। प्रदेश के नए उद्यमियों के लिए भूमि के चयन पर धारा-118 बहुत भारी पड़ रही है। धारा-118 के तहत प्रदेश में कोई भी गैर हिमाचली व्यक्ति बिना सरकार की अनुमति से कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त नहीं कर सकता। यह एक्ट 1974 से प्रदेश में लागू है। बहुत से उद्यमी प्रदेश में निवेश करने के इच्छुक होने के बावजूद धारा-118 के झंझट व राजनीति के चक्करों में नहीं पड़ना चाहते, क्योंकि धारा-118 इतनी जटिल व पेचीदगी भरी है कि एक फाइल को लगभग 20 टेबलों से गुजरना पड़ता है। कई वर्षों तक भूमि की अनुमति के लिए सरकारी कार्यालयों में ऐसी अनेक फाइलें लंबित पड़ी हैं। यदि अनुमति मिल भी जाती है, तो एनजीटी के नियम भारी पड़ जाते हैं। तदोपरांत प्रदेश में यातायात में सड़क मार्ग ही एकमात्र सहारा हैं, जिनसे उद्यमियों को कच्चे माल का आयात करना महंगा पड़ता है। उत्पादन प्रक्रिया संपन्न होने के बाद जब उद्यमी अंतिम उत्पादों का निर्यात करते हैं, तो भारी लागत के कारण उनके लाभ भी प्रभावित होते हैं। प्रदेश के कालेजों से निकलने वाले युवा प्राचीनतम शिक्षा पद्धति के कारण अपने हुनर से आधुनिक औद्योगिकीकरण की मांग को पूरा करने में असमर्थ हैं। इसीलिए हिमाचल में स्थापित उद्योगों में हिमाचली छिटपुट ही दिखते हैं। सबसे बड़ी समस्याओं में उद्योगों की स्थापना से संबंधित फाइलों को डील करने वाले कर्मचारी व अधिकारी वर्ग की लचीली व भ्रष्ट प्रवृत्ति प्रदेश के औद्योगिकीकरण में बाधा बनी हुई है। सरकार उद्यमियों को जितना मर्जी प्रलोभन दे, लेकिन जब तक नियमों की धरातलीय पहुंच सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक प्रदेश उद्योगों की स्थापना का सुनहरा अध्याय नहीं लिख सकता।

हिमाचली अर्थव्यवस्था में लघु उद्योग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ये हिमाचली परिस्थितियों के अनुकूल हैं, क्योंकि इनमें भारी-भरकम उद्योग लगाने जितने तामझाम नहीं करने पड़ते। थोड़े से निवेश से लघु उद्योग को खड़ा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इन उद्योगों के मार्फत हम उन उत्पादों को नया जीवन दे सकते हैं, जो सीधे-सीधे पहाड़ी अस्मिता को स्पर्श करते हैंं। इनका सबसे बड़ा लाभ यह कि इनका पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। उद्यमी जब निवेश करता है तो वह अपने विशेषज्ञों द्वारा सर्वेक्षण करके नफे-नुकसान का  आकलन कराने के बाद ही निवेश का निर्णय लेता है। प्रदेश में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के उद्यमी औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने के इच्छुक तो हैं, लेकिन सरकार द्वारा 45 दिनों की सीमा में क्लीयरेंस देने का वादा कई महीनों तक धरातलीय पहुंच सुनिश्चित करने में विफल रहता है।

यही कारण है कि सरकार के भरसक प्रयासों के बावजूद उद्यमियों को आकर्षित करने में प्रदेश के अधिकारी व नेता असफल रहे हैं। अब आवश्यकता है कि इंडस्ट्रियल एडवाइजरी काउंसिल की स्थापना की जाए, जिसमें कुशल, ईमानदार, अनुभवी अधिकारी वर्ग द्वारा औद्योगिकीकरण के मार्ग मंे आने वाली समस्याओं का गहन चिंतन किया जाए तथा उद्यमियों को 45 दिनों में उद्योगों को स्थापित करने की प्रतिबद्धता को पूरा किया जाए। इस संदर्भ में यदि प्रदेश सरकार सफलता हासिल कर लेती है तो प्रदेश की माली हालत तो सुधरेगी ही, बढ़ती बेरोजगारों की फौज से भी निजात मिलेगी।

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-संपादक