गणेश पुराण

देवसेना इतनी बुरी तरह विचलित हुई कि इंद्र को भी आश्चर्य हुआ। तब उसने अपने बचाव के लिए विष्णु जी से कहा, किंतु विष्णु जी ने इंद्र से कहा कि तुम कायर मत बनो और युद्ध करो। तुम भी अपनी माया का विस्तार करो और अपने शत्रु के प्रयोजन को नष्ट कर दो…

इंद्र भागने लगा और भागते-भागते उसने निमि की छाती में वज्र से आघात किया, लेकिन निमि ने भी उस प्रहार की चिंता न करते हुए एरावत की सूंड के ऊपर बार किया। थोड़ी देर के लिए एरावत नीचे को झुका, लेकिन फिर उठकर देवराज इंद्र को सुरक्षित स्थान पर ले गया और इसी बीच कुबेर और निमि का युद्ध होने लगा। निमि ने कुबेर को काट कर अर्थात उससे न उलझ कर एरावत पर प्रहार किया। उधर, एरावत घायल होकर नीचे गिरा तो कुबेर ने निमि के ऊपर बहुत तीव्र प्रहार किया और वह अचेत होकर नीचे गिर पड़ा तथा देवताओं में हर्ष और उल्लास छा गया। जब जंभासुर ने यह देखा तो वह क्रोधित हुआ। उसका मुख अग्नि में घी के पड़ने के बाद लाल रंग का हो रहा था। उसने सीधे इंद्र को ललकारा और दोनों में भयंकर युद्ध छिड़ गया। दोनों एक-दूसरे के प्राणों के प्यासे बनकर एक-दूसरे पर घातक प्रहार करने लगे। दोनों ने एक-दूसरे के विरुद्ध गांधर्व, मौसल, वाष्ट्र, आग्नेय, मेघ तथा शैल आदि अनेकानेक बाण छोड़े। जंभ ने राक्षसी माया से अपना शरीर दस योजन तक विस्तृत कर लिया। तब इंद्र ने महाशनि शक्ति के प्रयोग से राक्षसी माया का निराकरण किया और इसके उपरांत इंद्र ने जंभ पर नारसिंह शस्त्र से प्रहार किया, फिर गरुड़ शस्त्र से आघात किया, परंतु जंभ ने अपनी माया से सर्प का रूप धारण कर लिया और वह उस रूप में देवसेना को बुरी तरह डसकर काटने लगा। देवसेना इतनी बुरी तरह विचलित हुई कि इंद्र को भी आश्चर्य हुआ। तब उसने अपने बचाव के लिए विष्णु जी से कहा किंतु विष्णु जी ने इंद्र से कहा कि तुम कायर मत बनो और युद्ध करो। तुम भी अपनी माया का विस्तार करो और अपने शत्रु के प्रयोजन को नष्ट कर दो। इंद्र ने विष्णुजी के वचनों की सुनकर अपना नारायण अस्त्र क्रोधित होकर जंभ के ऊपर छोड़ा, लेकिन जब तक वह अस्त्र उसकी छाती में लगा, तब तक उसने लाखों गंधर्व और सर्प आदि सैनिकों को अपने मुंह में हड़प लिया, लेकिन अस्त्र लगते ही उसकी छाती से खून का फव्वारा फूटा और उसने किसी तरह वह युद्धस्थल छोड़ा, किंतु वह युद्ध से अलग नहीं हुआ। वह आकाश मार्ग में चला गया और वहां से देवताओं पर भारी शस्त्रों से आक्रमण करने लगा। नीचे धरती पर खून के फैलने से घोड़े, हाथी चलते-चलते चिपकने लगे, किंतु गीदड़ और भेडि़यों को हर्ष हुआ। जब देवों की सेना ने जंभ के इस आश्चर्यजनक पराक्रम को देखा कि छाती पर नारायण अस्त्र के प्रभाव के बावजूद वह युद्ध कर रहा है तो वे घबराए। फिर उन्होंने मिलकर अर्थात वरुण, कुबेर, अग्नि, यम और निऋर्ति ने दिव्यास्त्रों को छोड़ा पर वे भी विफल हो गए और विपरीत रूप में जंभासुर के अस्त्रों से देवसेना का बहुत नाश हुआ। जब उन्हें इस संकट से उबरने का कोई रास्ता नहीं मिला, तब फिर विष्णुजी ने ब्रह्मास्त्र छोड़ने के लिए कहा। इंद्र ने उसी समय मंत्रों से सिंचित ब्रह्मास्त्र को अपने धनुष बाण पर चढ़ाया और जंभासुर की ओर फेंका। उधर, राक्षस ब्रह्मास्त्र को अपनी ओर आता देखकर अपनी माया से अलग होकर पृथ्वी पर आ गया। फिर भी वह उससे नहीं बच पाया और उसका सिर कट कर नीचे गिर गया।