छपे हुए शब्द की सत्ता सदैव रहेगी…

दीनू कश्यप

साहित्य कभी भी राज्यों के नाम पर नहीं होता है। साहित्य तो सीधे -सीधे भाषाओं, बोलियों और उप-बोलियों की धाराओं से जन्म लेता है। भाषा भी सामूहिक समाजों के भीतर से सृजित होती है। अगर माना जाए तो साहित्यकार एक आईना बनाने वाला कुशल कारीगर होता है, अब यह उस आदमी (पाठक) पर निर्भर करता है कि वह उसमें अपनी छवि देखना पसंद करता है या नहीं। इस भूमंडलीयकरण के दौर में सैकड़ों ज़ुबानें, हजारों बोलियां ओझल हो चुकी हों और आपसी संवाद के लिए सूचना तकनीक नित नए साधनों का अंबार लगा रही हों तो निश्चय ही छपे हुए शब्द के लिए स्पेस निरंतर सिकुड़ता जा रहा है। लेकिन व्यक्तिगत तौर पर पूरा विश्वास है कि छपे हुए शब्द की सत्ता हमेशा बरकरार रहेगी। भाषा अकादमियों या अन्य सरकार द्वारा पोषित साहित्यिक संस्थानों की कार्यप्रणाली में निरंतर गिरावट आई है। हिमाचल में भाषा विभाग या अकादमी द्वारा साहित्यिक आदान-प्रदान के तहत दूसरे राज्यों के लेखक यहां आते रहे हैं तथा हमारी लेखक बिरादरी बाहर के राज्यों में जाती रही है। किन्नौर के कविता शिविर, जोगिंद्रनगर (मंडी) के कहानी शिविर की यादें शेष हैं। अब ऐसी कोई योजना वर्षों से संभव नहीं हो पाई, जाने क्यों? हिमाचल अकादमी या भाषा विभाग बनने के बाद से यशवंत परमार जयंती, पहाड़ी बाबा कांशीराम जयंती, चंद्रधर गुलेरी जयंती तथा यशपाल जयंती के समारोह रस्मी तौर पर मनाए जाते रहे हैं और इन पर पत्र वाचन का काम घिसे- पिटे ढंग से विगत तीन दशकों से चार पांच तथाकथित विद्वान करते रहे हैं। इस उबाऊ सिलसिले को अब बंद किया जाना चाहिए। पहाड़ी बाबा कांशीराम जयंती पर हिमाचली बोलियों में सृजन कार्य कर रहे वरिष्ठ लेखकों पर बातचीत हो। गुलेरी और यशपाल जयंती पर समकालीन उपन्यास, कहानी व कविता और आज लिख रहे रचनाकारों पर मूल्यांकन और बातचीत का सिलसिला शुरू होना चाहिए। पठन-पाठन की इस मुहिम में लेखक संगठन और अन्य संस्थाएं अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करें, तो बात कुछ हद तक बन सकती है। इसमें विश्वविद्यालय व अन्य शैक्षणिक संस्थाएं अपनी अहम भूमिका निभा सकती हैं। आज विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में कई भारतीय साहित्यकारों की रचनाओं को शामिल किया गया है। शैक्षणिक संस्थाओं को चाहिए कि ऐसे रचनाकारों से विद्यार्थियों का सीधा संवाद करवाकर आने वाली पीढि़यों में पठन -पाठन की रुचि जागृत की जा सकती है। वर्ष 2012 में कुल्लू राजकीय महाविद्यालय द्वारा कथाकार विजयदान देथा, काशीनाथ सिंह व उदयप्रकाश के रचना संसार पर एक अच्छी शुरूआत की गई थी। इस संगोष्ठी में दिल्ली से भारत भारद्वाज, डा. संजीव कुमार, प्रख्यात नाटककार व साहित्य मर्मज्ञ अवतार साहनी विशेष रूप से आमंत्रित थे। आयोजन में डा. उरसेम लता, डा. मही योगेश, रत्नेश त्रिपाठी, डा. निरंजन देव, डा. अंजू चौहान, डा. लेखराज, रक्षा, बुद्ध राम, मेधा आदि महाविद्यालय के अध्यापकों और विद्यार्थियों ने भाव-भाषा, कहानी और आज की समस्याएं तथा विषय वस्तु आदि पर खुला व गहन विचार विमर्श किया। इस प्रकार के आयोजनों को प्रदेश के विभिन्न भागों में करने से पुस्तकों को पढ़ने-पढ़ाने का सिलसिला तो बढ़ेगा ही तथा छपे हुए शब्द की सत्ता भी बरकरार रह सकेगी।