जल, जंगल और जमीन पर ज्यादतियां

(सूबेदार मेजर (से.नि.) केसी शर्मा, गगल)

भावी पीढि़यों के लिए भी पर्यावरण स्वच्छ रहे, इसके लिए हमें आज जल, जंगल और जमीन की संभाल करनी होगी। हैरानी यह कि आज हम इन तीनों की बेकद्री पर उतारू हैं। पीने के स्वच्छ जल के नाम पर लंबे अरसे से बाजार में पानी बोतलों में बिकता देखा जाता रहा है। अब तो यह बोतलबंद पानी एक फैशन सा बन चुका है, जिसे स्वच्छ जल की गारंटी भी माना जाता है। इससे पहले हम सदियों से पेयजल के लिए प्राकृतिक स्रोतों पर आश्रित रहे हैं और यह पानी पीने के लिए हर लिहाज से स्वच्छ होता था। दुखद यह कि हमने अब तक अधिकतर प्राकृतिक जल स्रोतों का अस्तित्व मिट्टी में मिला दिया है। यही वजह है कि हमें अब पेयजल के लिए बोतलबंद पानी पर निर्भर होना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, आज वाटर प्योरिफायर्स का एक बड़ा बाजार खड़ा हो चुका है। ये हालात इसलिए बने, क्योंकि हमने अपने जल स्रोतों को सलीके से इस्तेमाल नहीं किया। दूसरी ओर कई देशों में अब हवा में भी इतना जहर घुल चुका है कि यहां लोगों को स्वच्छ वायु भी पैसों से खरीदनी पड़ रही है। मानवीय लालच की जो मार जंगलों पर पड़ी है, वह भी किसी से छिपी नहीं है। जमीन को भी इनसान ने अपने लाभ के लिए हर तरह के रसायनों से भर दिया है। अतः जीवन की मूल आवश्यकताओं यानी जल, जंगल और जमीन तीनों की पवित्रता प्रभावित हुई है। अगर हम अपनी आने वाली पीढि़यों के बारे में जरा भी संजीदा हैं, तो हमें जल, जंगल और जमीन से हो रही इन ज्यादतियों पर विराम लगाना होगा।