उनमें (भक्तों में) जाति, विद्या, रूप, कुल, धन और क्रियादिका भेद नहीं है।
यतस्तदीयाः।।
क्योंकि (भक्त सब) उनके (भगवान के) ही हैं।
वादो नावलम्ब्यः।।
(भक्त को) वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।
बाहुल्यावकाशादनियतत्वाच्च।।
क्योंकि (वाद-विवाद में) बाहुल्य का अवकाश है और वह अनियत है।
भक्तिशास्त्राणि मननीयानि तदुद्बोधक-कर्माण्यपि करणीयानि।।
(प्रेमा भक्ति की प्राप्ति के लिए) भक्ति शास्त्र का मनन करते रहना चाहिए और ऐसे कर्म भी करने चाहिए जिनसे भक्ति की वृद्धि हो।