नारद भक्ति सूत्र

नास्ति तेषु जातिविद्यारूपकुलधनक्रियादिभेदः।।

उनमें (भक्तों में) जाति, विद्या, रूप, कुल, धन और क्रियादिका भेद नहीं है।

यतस्तदीयाः।।

क्योंकि (भक्त सब) उनके (भगवान के) ही हैं।

वादो नावलम्ब्यः।।

(भक्त को) वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

बाहुल्यावकाशादनियतत्वाच्च।।

क्योंकि (वाद-विवाद में) बाहुल्य का अवकाश है और वह अनियत है।

भक्तिशास्त्राणि मननीयानि तदुद्बोधक-कर्माण्यपि करणीयानि।।

(प्रेमा भक्ति की प्राप्ति के लिए) भक्ति शास्त्र का मनन करते रहना चाहिए और ऐसे कर्म भी करने चाहिए जिनसे भक्ति की वृद्धि हो।