नोटबंदी की विकास-दर !

बीते साल की तीसरी तिमाही की विकास-दर के आंकड़े सामने हैं। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सात फीसदी विकास-दर का अनुमान है। पूरे वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान जीडीपी की बढ़ोतरी दर 7.1 फीसदी आंकी गई है, जो बीते वर्ष 2015-16 के दौरान 7.9 फीसदी अनुमानित थी। गिरावट या कमी बेहद चौंकाने वाली या नकारात्मक नहीं है। नोटबंदी के बावजूद जीडीपी की विकास-दर सात फीसदी के करीब आंकी गई है। जाहिर है कि नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत खतरनाक कुप्रभाव नहीं डाले हैं। हालांकि अर्थशास्त्रियों समेत आईएमएफ के आकलन थे कि नोटबंदी के कारण भारतीय जीडीपी की आर्थिक विकास-दर 6.5 फीसदी के करीब तक लुढ़क सकती है। कृषि और विनिर्माण के क्षेत्रों में, जहां लाखों लोग और मजदूर काम करते हैं, भारी गिरावट देखने को मिल सकती है। लेकिन तीसरी तिमाही के आंकड़े कुछ और ही बयां करते हैं। मसलन-इस कालखंड में कृषि की औसत दर 0.8 फीसदी से बढ़कर 4.4 फीसदी बताई जा रही है। विनिर्माण के क्षेत्र में भी 10.6 से घटकर 7.7 फीसदी की दर हुई है। यह ऋणात्मक संकेत नहीं है। हालांकि माइनिंग के क्षेत्र में भी गिरावट देखी गई है, लेकिन कंस्ट्रक्शन 2.8 फीसदी से 3.1 फीसदी बढ़ता हुआ दिख रहा है। किसी भी अर्थव्यवस्था में ये क्षेत्र बेहद महत्त्वपूर्ण होते हैं। हालांकि ऐसी रपटें आती रही हैं कि नोटबंदी के कारण करीब दो-तीन करोड़ लोग बेरोजगार या बेकाम हो गए हैं। उत्तर प्रदेश में बनारसी साड़ी, जूते, चमड़े के उद्योगों में भारी मंदी के ब्यौरे सामने आए हैं। आम तौर पर व्यापारियों और बुनकरों की शिकायतें रही हैं कि धंधा 40 से 70 फीसदी तक कम हो गया है। कुछ कारोबारी और शिल्पकार तो मजदूरी करने को विवश हुए। ऐसे ही कई आकलन देश भर के उद्योगों के सामने आए हैं, लेकिन कृषि जैसे क्षेत्र पर करीब 70 फीसदी आबादी आश्रित है, उसकी विकास-दर 4.4 तक वाकई चौंकाने वाली है। इसी के साथ गौरतलब यह है कि आठ बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर जनवरी में 3.4 फीसदी रही है, जो पांच महीने का न्यूनतम स्तर है। इन उद्योगों में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली शामिल हैं। इनकी वृद्धि दर जनवरी, 2016 में 5.7 फीसदी थी। अब वृद्धि दर अगस्त, 2016 के बाद सबसे कम है। इसके बावजूद उद्योग जगत का मानना है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही है। इसके बावजूद निवेश को वापस रास्ते पर लाने और नोटबंदी से प्रभावित मांग को गति देने के लिए सुधारों की जरूरत है। फिक्की वाले उद्योगपतियों का कहना है कि आर्थिक वृद्धि के अगले वित्त वर्ष में पूरी तरह पटरी पर आने की उम्मीद है। केंद्रीय बजट ने जो संकेत दिए हैं, वे उत्साहजनक हैं और उससे घरेलू अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी। दरअसल सवाल नोटबंदी का है। अर्थव्यवस्था के इन आंकड़ों के आधार पर आकलन किया जा रहा है कि नोटबंदी का कारोबार और उद्योगों पर बहुत उल्टा असर नहीं पड़ा है। ये आकलन स्वीकार्य नहीं हैं। दिलचस्प है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी नोटबंदी मुख्य मुद्दा नहीं बन सकी। हालांकि मायावती और राहुल गांधी सरीखे कुछ नेता लगातार इस मुद्दे को उठाते रहे, लेकिन यह ऐसा मुद्दा नहीं बन सका, जो जनादेश के लिए निर्णायक साबित होता। नोटबंदी के बाद महाराष्ट्र और ओडिशा में स्थानीय निकाय और पंचायतों के चुनाव हुए। महाराष्ट्र में तो भाजपा को एकतरफा शानदार जीत हासिल हुई है और ओडिशा में भाजपा नंबर दो पर रही है, जहां उसका कोई जनाधार ही नहीं है। यदि सत्तारूढ़ बीजद की सीटें बहुत कम हुई हैं, तो वह हासिल भाजपा का रहा है। महाराष्ट्र और ओडिशा में कांग्रेस का सूपड़ा सा साफ हो गया है। आखिर ये रुझान क्यों हैं? क्या नोटबंदी ने आम आदमी को बुरी तरह प्रभावित नहीं किया? अब अर्थव्यवस्था के आंकड़े भी साबित कर रहे हैं कि वे नोटबंदी से निष्प्रभावी रहे। व्याख्याएं सामने आएंगी कि ऐसे आकलन क्यों हैं, क्योंकि माना नहीं जा सकता कि नोटबंदी के दुष्प्रभाव न पड़े हों। उद्योग जगत का भी मानना है कि जीडीपी की सात फीसदी विकास दर रहने के मद्देनजर यह आशंका दूर हुई है कि नोटबंदी से आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई थीं। बहरहाल वित्त सचिव शक्तिकांत दास ने यह घोषणा भी कर दी है कि जीएसटी का पहली जुलाई से लागू होना तय है। जीएसटी से जीडीपी में 1.70 फीसदी की बढ़ोतरी होने की भी उम्मीद है।