पर उपदेश कुशल बहुतेरे

मुरारी शर्मा के संपादकत्व में प्रतिबिंब के पोस्टमार्टम के बहाने टिप्पणी आवश्यक जान पड़ती है। हिमाचल प्रदेश में दिव्य हिमाचल दैनिक अपने जन्म से लेकर आज तक निरंतर साहित्य कला संस्कृति का पक्षधर तो है ही साथ में संवेदना, सत्य-न्याय, जल-जंगल-जमीन जंतुओं का रक्षक, जन आंदोलनों का समर्थक भी रहा है। प्रारंभ से साहित्य और विविध कलाओं हेतु पर्याप्त स्थान मिलता रहा है। इस पत्र के योगदान यानी प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं।

इसमें किसी को भी संदेह नहीं होना चाहिए कि हिमाचल में पुराने समय से लेकर अब तक बढि़या और स्तरीय लेखन हो रहा है। भले ही कुछ राजनीतिज्ञ लेखकों को यह दिखाई नहीं देता है। स्वयंभू राष्ट्रीय लेखक कहलाने वाले कुछेक लेखक बंधुओं के लिए हिमाचली भाषा में एक कहावत है कि एकी हाथा रा टूंडा, सैही पीछे सैही मूंडा यानी अपनी ही हांकते हैं। ऐसे महान लेखक पांच सौ की संख्या में छपने वाली पत्रिकाओं में संपादकों से निरंतर संपर्क में रह कर छपते हैं, फिर अपनी ही रचना पढ़कर इति श्री कर लेते हैं।  कोई-कोई बंधु कबीर हो जाना चाहते हैं किंतु  कबीर की तरह फक्कड़, दानवीर, सामाजिक समरसता के पक्षधर, चरित्रवान, सज्जन, ढोंग और पाखंड के विरोधी, सत्य और स्पष्ट वक्ता व्यवहार में होना नहीं चाहते। दो मुंहे लेखक लेखन में तो अति संवेदनशील दर्शाते हैं किंतु वास्तव में कसाई से भी क्रूर व्यवहार करते दिखते हैं। जब जन आंदोलन करने, जंगल-पहाड़-कृषि भूमि को बचाने हेतु सहभागिता निभाने की बात आती है तो ये टोपी में मुंह छुपा लेते हैं। ये कथित राष्ट्रीय लेखक दैनिक अखबारों में लिखने वालों को लेखक मानते ही नहीं।

लेखक कविताएं तो धार-पहाड़ बचाने की लिखते हैं किंतु धार-पहाड़ बचाने आगे नहीं आएंगे। कबीर की तरह प्रसिद्ध होना चाहेंगे, कबीर की बात करेंगे किंतु कबीर की तरह कर्म नहीं करेंगे। अंधा बांटे रेबड़ी फिर-फिर अपने को  दे। कुछ लोग अपने खेमे के लेखकों को प्रोमोट करते हैं। सही मायने में जो लेखक अपने लेखन व कर्म से संवेदना बचाने में लगे हैं, उनका नाम तक लेने में कुंडली मारने वाले साहित्यकार किसका भला कर पाएंगे ?

 लेखक का किसी साहित्यिक संस्था का मठाधीश होना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि साहित्यिक संस्था के माध्यम से साहित्य कला संस्कृति और जनपद में कोई कार्य तो करना चाहिए। हिमाचल में अच्छे लेखक-कवि और बुजुर्ग साहित्कार आज भी श्रेष्ठ लेखन कर रहे हैं। किंतु उनके प्रति सम्मान प्रदर्शित करने में, उनका आदर से नाम तक लेने में लेखक राजनीति करे तो इस स्थिति को क्या कहा जाए? जबकि श्रेष्ठ लेखन करने वाले हिमाचल के प्रत्येक जिला में मौजूद हैं। संवेदना की मरहम पट्टी को साहित्यकार लेखन और व्यक्तिगत कर्म में लाएगा तभी वह आईना बन सकेगा। जैसा आदर्श लेखन वैसा कर्म भी रहे। वरना क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा। प्रतिबिंब के अंतर्गत साहित्य, संस्कृति और समाज के अंर्तसंबंधों की पड़ताल आवश्यक है। भविष्य में भी साहित्य प्रकाशन के साथ पड़ताल जारी रहे तो पाठकों का कल्याण होगा। फीचर संपादक और संपादकीय टीम प्रतिबिंब के लिए प्रशंसा की सुपात्र है।

— कृष्ण चंद्र महादेविया,विकास कार्यालय पद्धर, मंडी, (हि.प्र)