प्रतिष्ठा प्रतीकों के प्रदर्शन पर लगे नकेल

प्रो. एनके सिंह

प्रो. एनके सिंह लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

यदि मोदी साफ-सुथरा प्रशासन लाना चाहते हैं, तो उन्हें कार्यालयों में दिखावे और तड़क-भड़क भरी संस्कृति पर नकेल कसनी होगी। अधिकारियों, विधायकों और सांसदों को अहंकारी दृष्टिकोण के बजाय विनम्रता और सेवाभाव का नजरिया विकसित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। योगी द्वारा अधिकारियों और विधायकों को पढ़ाया गया यह पाठ कि विनम्र बनो और जनता से दुर्व्यवहार मत करो, एक अच्छी पहल दिखती है…

अभी हाल ही में घटित होने वाले तीन प्रकरण भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में ‘गेमचेंजर’ साबित हुए हैं। यथास्थिति के टूटने का पहला उदाहरण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से देखने को मिला, जो कि नेतृत्व के प्रभाव या राष्ट्रीय महत्त्व के किसी कार्य की शुरुआत के संदर्भ में लगभग अप्रासंगिक सी हो चुकी थी। राष्ट्रीय स्तर पर एक के बाद एक शिकस्त झेलते हुए डूबता जहाज बन चुकी कांग्रेस पार्टी के लिए पंजाब के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंदर सिंह तिनके का सहारा बनकर सामने आए हैं। मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के बाद अमरेंदर सिंह ने पहला फैसला सभी विधायकों, मंत्रियों और नौकरशाहों की गाडि़यों पर लाल बत्तियों को प्रतिबंधित करने का लिया। यहां मैं इस बात को नहीं समझ पाया कि वह न्यायाधीशों को इस फैसले की परिधि में लेकर क्यों नहीं आए। संभवतः इसके पीछे का कारण न्यायाधीशों के प्रति सम्मान की भावना या उनका भय रहा होगा। जनता की सेवा के लिए चुनकर आने वाले जनसेवक कुर्सी तक पहुंचते ही अहंकार में चूर हो जाते हैं। इस अहंकार पर चोट करने के लिए अमरेंदर सिंह की खुलेमन से तारीफ की जानी चाहिए। जब मोदी ने इस तरह का फैसला नहीं लिया था, तो उस वक्त मुझे कुछ हताशा हुई थी। उसके बाद जब सनकी और झूठे अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता में आकर इस तरह की सकारात्मक पहल नहीं की, तो मेरा उन पर से भी विश्वास उठ गया।

हालांकि सत्ता में आने से पहले मोदी ने इस तरह का कोई फैसला नहीं लिया था, लेकिन केजरीवाल ने तो बाकायदा घोषणा की थी कि वह छोटे घर में रहेंगे और उनकी जीवन शैली भी सादगी भरी होगी। बाद में तो पूरा माजरा ही बदल गया और मुख्यमंत्री बनने के पश्चात वह खुद के गुणगान में डट गए। उनकी तस्वीरों वाले विज्ञापनों को जारी करने के लिए जनता के करोड़ों रुपए खर्च कर डाले। इतना ही नहीं, यह खर्च उन राज्यों में भी किया गया, जो कि उनके अधिकार क्षेत्र में आते ही नहीं थे। इसे लेकर अब अरविंद केजरीवाल एक बार फिर से मुसीबत में फंस गए हैं। साल 2015-16 के विज्ञापनों को सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के खिलाफ पाए जाने के बाद आम आदमी पार्टी को 97 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि चुकाने को कहा गया है। दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने इसके लिए आदेश भी जारी कर दिया है। इसके विपरीत कैप्टन अमरेंदर सिंह ने अपने कार्यकाल की एक शानदार शुरुआत की है। दूसरे प्रकरण में शिवसेना के एक सांसद ने एयर इंडिया के एक अधिकारी की सार्वजनिक रूप से चप्पल से पिटाई कर डाली। अधिकारी का कसूर बस इतना था कि उस सांसद महोदय ने कामर्शियल श्रेणी का टिकट मांगा था और उन्हें इकोनॉमी श्रेणी का टिकट दिया गया। जो व्यक्ति संसद सरीखे गरिमामय सदन का सदस्य है और अपने संसद क्षेत्र की जनता की नमाइंदगी कर रहा है, क्या उससे इस तरह के अमर्यादित व्यवहार की अपेक्षा की जा सकती है? मेरे विचार में तो उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए था और अगर सभी एयरलाइंस ने उनका बहिष्कार कर दिया है, तो बसे बिलकुल सही फैसला माना जाएगा। यह प्रकरण दर्शाता है कि किस तरह से हमारे आज के कुछ विधायी सदस्य खुद को कानून से भी ऊपर मानने लगे हैं और अपने प्रतिष्ठा प्रतीकों के नशे में किस हद तक चूर हैं।

यह मामला कैप्टन अमरेंदर सिंह की कार्रवाई से ठीक उलट व्यवहार को दर्शाता है। तीसरे प्रकरण में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी के साथ एक नए युग की शुरुआत हुई है। चौबालीस वर्ष के ओजस्वी नेता योगी ने मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद पहले ही दिन पांच अहम और साहसिक ऐलान किए। राज्य में अब कोई भी महिला परेशानी नहीं झेलेगी, गऊ माता की रक्षा की जाएगी, सांप्रदायिक दंगों पर विराम लगाया जाएगा, भ्रष्टाचार को खत्म किया जाएगा और बिना भेदभाव किए राज्य के विकास को तेज गति से आगे बढ़ाया जाएगा। इन घोषणाओं के बाद सैकड़ों पुलिसकर्मियों को निर्धारित भूमिका के भीतर काम पर लगाया गया। योगी के आदेशानुसार राज्य भर की सड़कों पर जो गड्डे पड़ चुके हैं, उन्हें बरसात से पहले तीन महीनों के अंदर भरा जाएगा। योगी की बात करें, तो भगवा कुर्ते और धोती के अलावा उनका दूसरा प्रतिष्ठा प्रतीक ही क्या है? जब पुलिस वालों ने कल्पना भी नहीं की थी कि राज्य का मुख्यमंत्री पुलिस थाने में आकर किसी तरह का निरीक्षण कर सकते हैं, तो उस समय योगी ने वहां जाकर कामकाज का औचक निरीक्षण किया और स्टाफ को ड्यूटी सही ढंग से करने के लिए भी सतर्क किया। योगी आदित्यनाथ ने महिलाओं की सुरक्षा और युवाओं को रोजगार देने के लिए जो प्रतिबद्धता जाहिर की है, वह भी सराहनीय है। लेकिन इसके इतर हमारे देश में मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक ऐसा तबका भी है, जो सीधे-सीधे जनहित से संबंध रखने वाले फैसलों को भी कठघरे में खड़ा करके छाती पीटना शुरू कर देता है।

यहां तक कि उनके जल्द निर्णय लेने और सुशासन के अंदाज के खिलाफ भी मीडिया में कुछ लोगों ने विलाप शुरू कर दिया। योगी एक ऐसी शख्सियत हैं, जो शब्दों के साथ खेलने के बजाय सीधा-सपाट फैसला लेना ज्यादा पसंद करते हैं। उन्हें किसी तरह के रुतबे या प्रतिष्ठा की कोई चाह नहीं है। वह सीधे समस्या की जड़ तक जाकर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से उसका समाधान करने का प्रयास करते हैं। चूंकि विरोधियों को तो आलोचना का कोई बहाना चाहिए, इसलिए अब उनकी आलोचना यह कह कर की जा रही है कि सचिवालय को स्वच्छ बनाने के लिए यहां पान के सेवन पर प्रतिबंध या पुलिस थानों को गंदा करने वाली गतिविधियों पर रोक संबंधी निर्णयों के लिए उन्होंने मंत्रिमंडल की सलाह नहीं ली। अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबंध के फैसले पर भी खूब हो-हल्ला मचाया गया। इन बूचड़खानों पर प्रतिबंध से कबाब की कमी को इस तरह से पेश किया जा रहा है, मानों आपदाओं का कोई पहाड़ टूट पड़ा हो, लेकिन ये डिजाइनर पत्रकार यह नहीं बताएंगे कि 126 बूचड़खानों में से महज एक के पास लाइसेंस था। अधिकांश लोग कार्य की चिंता करते हैं और दिखावे की परवाह नहीं करते, लेकिन कुछ नेता चुने जाने के बाद विशेषाधिकारों की तरफ दौड़ते हैं और उनका दिखावा करना शुरू कर देते हैं। यदि मोदी साफ-सुथरा प्रशासन लाना चाहते हैं, तो उन्हें कार्यालयों में दिखावे और तड़क-भड़क भरी संस्कृति पर नकेल कसनी होगी। अधिकारियों, विधायकों और सांसदों को अहंकारी दृष्टिकोण के बजाय विनम्रता और सेवाभाव का नजरिया विकसित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। योगी द्वारा अधिकारियों और विधायकों को पढ़ाया गया यह पाठ कि विनम्र बनो और जनता से दुर्व्यवहार मत करो, एक अच्छी पहल दिखती है। लग रहा है कि ताजी हवा बहनी शुरू हो गई है।

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