भस्मासुर रथ के फटे कपड़े को रखते हैं पूजा घर में

लोग रथ पर टूट पड़ते हैं और उसे तोड़ देते हैं। इसके बाद रथ के चारों ओर लपेटा सफेद कपड़ा लूट लेते हैं। कपड़े को लूटने, चीरने व फाड़ने का दृश्य देखते  ही बनता है। लूटे गए वस्त्र को लोग प्रसाद रूप में घर ले जाते हैं और पूजा-गृहों में रखते हैं…

स्कंध पुराण

स्कंद पुराण के अनुसार वृक नामक असुर ने कठोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न कर अमरत्व का वरदान पाया था। इससे मदांध होकर वह निरकुंश हो गया था। पुराण के अनुसार यह असुर जगदंबा पार्वती पर आसक्त हो गया और अपने आराध्य देव शिवजी को ही मारने दौड़ पड़ा। शिव उसकी बदनियति देखकर बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास जा पहुंचे। पीछे-पीछे वृकासुर भी पहुंच गया। इस विकट स्थिति में भगवान विष्णु ने त्रिभुवन सुंदरी मोहिनी का रूप धारण किया। कुमारी मोहिनी को देख वृकासुर मोहित हो गया और उसे प्रणय सूत्र में बांधने की इच्छा जताई। विमोहित कामातुर वृकासुर को मोहिनी ने अपने साथ नृत्य करने को कहा। वृकासुर ने इसे स्वीकार लिया। नृत्य करते समय मोहिनी जिस गति, चाल, मुद्रा, भावभंगिमा व अंग-प्रत्यंगों का चालन करती थीं, वृकासुर भी वैसे ही करता। तभी मोहिनी ने दोनोें हाथ अपने सिर पर रखे। वृकासुर ने भी ऐसा ही किया। बस क्या था कि वह भस्म हो गया, क्योंकि शिव ने उसे अमरत्व का वर देते समय कहा था कि तू जिसके सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा, साथ ही तू किसी अन्य के हाथों से नहीं मरेगा, परंतु अपने सिर पर हाथ रखने से मरेगा। यही वृकासुर बाद में भस्मासुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस पौराणिक प्रसंग को रथ-रथणी जातरा में एक लोकनाट्य के रूप में पेश किया जाता है। जातरा के दिन चंबा के श्रीलक्ष्मीनाथ मंदिर के परिसर में मोहिनी की एक बड़ी मूर्ति सजाकर पालकी में स्थापित की जाती है। यही विष्णु रूपी रथणी है। इसी प्रकार नगर के श्रीहरि राम मंदिर में भस्मासुर का रथ सजाया जाता है। रथ की पूजा के बाद बकरे की बलि दी जाती है। सूर्यास्त से पहले श्रीलक्ष्मीनाथ मंदिर में रथणी की पालकी तथा श्रीहरि राम मंदिर में भस्मासुरी रथ चलते हैं और नगर के मध्य में चौगान के पास चौराहे पर एक-दूसरे से मिलते हैं। इस मिलन के बाद रथणी को ऐतिहासिक चंपावती मंदिर ले जाया जाता है और भस्मासुर के रथ को नगर में घुमाकर चौगान लाया जाता है। लोग रथ के चारों ओर इकट्ठे होकर वृकासुर के भस्म होने का मंचन देखते हैं। यही लोग रथ पर टूट पड़ते हैं और उसे तोड़ देते हैं। इसके बाद रथ के चारों ओर लपेटा सफेद कपड़ा लूट लेते हैं। कपड़े को लूटने, चीरने व फाड़ने का दृश्य देखते  ही बनता है। लूटे गए वस्त्र को लोग प्रसाद रूप में घर ले जाते हैं और पूजा-गृहों में रखते हैं।

 लोक नाट्य ‘ करियाला ’

हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान के द्योतक हमारे  दुर्लभ लोक नाट्य, जो किसी समय मनोरंजन के साधन हुआ करते थे, आज लुप्त हो गए हैं।