लेखन की दीर्घ परंपराओं से जुड़ें

रेखा वशिष्ट

हिमाचल के साहित्यिक परिदृश्ष्य में यहां के महिला लेखन को अलग से रेखांकित करने का प्रयास नहीं के बराबर हुआ है। यह इसलिए भी कि कभी इसकी आवश्यकता ही नहीं समझी गई। पिछले लगभग चालीस वर्षों से हिमाचल में जो कुछ भी लिखा जा रहा है, मैं भी उससे किसी न किसी तरह से जुड़ी हुई हूं। इसलिए यह कह सकती हूं कि अभी तक महिलाओं द्वारा लिखी गई रचनाओं के पृथक अवलोकन या मूल्यांकन की कोई प्रासंगिकता ही नहीं थी। पिछले लगभग दस वर्षों की बात न करें तो उससे पहले महिला लेखक थीं ही कितनी? अंगुलियों पर नाम गिनाए जा सकते हैं। इस कालखंड में सक्रिय महिला लेखकों में मौलिकता भी है, परिपक्वता भी। परंतु दुर्भाग्य से उनके पास सोशल मीडिया द्वारा उपलब्ध करवाया गया विस्तृत पाठकवर्ग और मार्केटिंग टेक्टिक्स नहीं थीं। ये सभी लेखिकाएं अपने पुरुष साथियों के बीच, उनके साथ, उन्हीं की तरह एक व्यक्ति या एक लेखक की तरह उपस्थित हैं। वे किसी भी तरह से ‘महिला लेखन’ जैसी विशेष विद्या या आंदोलन से प्रेरित नहीं हैं और न ही प्रदेश में उसका प्रतिनिधित्व करती हैं। इस पूरे प्रसंग में हिमाचल का महिला लेखन अत्यंत सीमित अर्थों में केवल वह लेखन है, जो हिमाचल में रहते हुए यहां की महिलाएं लिख रही हैं। इसके सामूहिक मूल्यांकन के लिए कम से कम जितनी रचनाओं की अपेक्षा रहती है, उतनी मात्रा में न तो रचनाएं और न ही लेखिकाएं उपलब्ध हैं। बीता हुआ दशक हिमाचल में महिला लेखन की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह बहुत ही उर्वर समय रहा है। पहली बार एक साथ इतनी महिला रचनाकार दम-खम के साथ आगे आई हैं और इन्होंने अपने लिए एक व्यापक पाठक वर्ग तैयार किया है। जिस क्षेत्र में पहले पुरुषों का वर्चस्व या नई पीढ़ी की उत्साहित महिला लेखकों ने वहां केवल दस्तक ही नहीं दी, अपितु स्वयं को स्थापित करने का भरसक प्रयास किया है। हिमाचल में हो रहे महिला लेखन को समझने और मूल्यांकित करने के लिए यह जानना आवश्यक है कि महिलाएं क्या लिख रही हैं? उनके विषय और सरोकार क्या हैं? क्या वे मुख्यधारा के महिला लेखन की ही एक कड़ी हैं या फिर प्रदेश या स्थानीयता उन्हें अलग पहचान देती है। हिमाचल में जो अपेक्षाकृत नया लेखन है, उसे इसी चुनौती से जूझना पड़ेगा कि सूचनाओं की रेलमपेल में कोई ऐसा ‘स्पेस’ ढूंढा जाए या बचाकर रखा जाए, जहां मौलिकता पनप सके या प्रतिमा की ईमानदार कौंध नजर आ सके। महिला लेखन पर कितने ही आक्षेप हैं- कि यह अनुभवों के बहुत सीमित दायरे-घर, परिवार, स्त्री-पुरुष संबंधों के बीच ही घूमता है, कि इसमें ओजस्विता कम है और भावुक अतिरेक अधिक। इसमें या तो प्रतिरोध की चीख-पुकार होती है या आम संतप्त मुद्राएं। मैं मानती हूं कि ‘सृजन’ लिंग भेद नहीं जानता। पुरुष या महिला होने का अंतर लेखन की आत्मा को नहीं केवल उसकी काया को प्रभावित या व्याख्यावित कर सकता है। सदियों की चुप्पी के बाद जब भी किसी को जुबान मिलेगी तो पहले जो भीतर की घुटन और अंधेरा है, उसे बहने दिया जाएगा परंतु धीरे-धीरे वह व्यक्ति उस सामान्य मनःस्थिति में आ जाएगा, जिसे संतुलन कह सकते हैं। हिमाचल की महिला लेखकों के समक्ष जो चुनौतियां हैं, उनके प्रति वे सजग हैं। वे निजी और लेखन की गरिमा में कहीं न्यून नहीं हैं। आवश्यकता इस बात की है कि वे अपनी अपार संभावनाओं को नियोजित करके लेखन की दीर्घ परंपरा से जुड़ें। समय नष्ट किए बिना साहित्य लेखन के दुर्गम क्षेत्र की गंभीर अपेक्षाओं को समझते हुए इसमें प्रवेश करें।

-लगभग 31 वर्षों तक हिमाचल के विभिन्न कालेजों में अंग्रेजी और भाषा का अध्यापन। दो वर्ष घुमारवीं कालेज में प्राचार्र्या। 1986 में ‘अपने हिस्से की धूप’ के लिए हिमाचल भाषा संस्कृति अकादमी पुरस्कार, साहित्य में योगदान के लिए राज्य के चंद्रधर शर्मा गुलेरी शिखर सम्मान, कहानी संग्रह ‘पिआनो’ के लिए अकादमी पुरस्कार, ‘हाथ’ कहानी के लिए 1990 में कथा पुरस्कार।