संघर्षों से उपजता है देर तक जिंदा रहने वाला साहित्य

सुरेश सेन निशांत

हमेशा जन के लिए लिखा जाता है और ऐसा साहित्य संघर्षों से उपजता है। इसलिए ऐसे साहित्य को किसी प्रोमोशन की जरूरत नहीं। भला कबीर का साहित्य किसी अकादमी विभाग या संस्था के कारण जिंदा रहा …? कदापि नहीं। वह जिंदा रहा जन के बीच …उनके मन में । सदियों के बाद आज भी हमारे जन के बीच कबीर ,तुलसी ,मीरा और जायसी आदि और भी संत कवि जिंदा हैं। जिन्हें जिंदा रखने में लोक और सिर्फ लोक का हाथ है। …कोई भी साहित्य भाषा अकादमी के लिए नहीं लिखा जाता । हां,भाषा अकादमी साहित्य को प्रोमोट करने वाली संस्था जरूर है। उसका दायित्व बनता है कि वह अच्छे साहित्य को नए-नए ढंग से प्रोमोट करे। जैसे कवि सम्मेलन, नाटकों का मंचन तथा जन्मशतियां मनाकर। परंतु हिमाचल भाषा अकादमी तथा भाषा संस्कृति विभाग ऐसा करने में चूक रहे हैं। कवि सम्मेलन तो हो रहे हैं, परंतु उनकी स्तरियता सवालों के घेरे में है। यही हाल जन्मशतियों का भी है। लोग कई बार पूछते हैं कि समग्र हिमाचल का प्रतिनिधित्व करने वाला साहित्य क्यों नहीं लिखा जा रहा है? इसके बारे में मैं कहूं तो यह धारणा भ्रामक है। अगर हम एसआर हरनोट, मुरारी शर्मा और बद्री सिंह भाटिया की कहानियों का अध्ययन करें तो हम पाएंगे कि इन लेखकों की रचनाएं हिमाचल का प्रतिनिधित्व करती हैं। पूर्व में सुंदर लोहिया का उपन्यास ‘धार की धूप’ और कहानी संग्रह ‘कोलतार’ भी हिमाचली लोक जीवन का प्रतिनिधित्व करती है। इन कहानीकारों का पूरे देश में नोटिस लिया जा रहा है तथा कवियों आत्मा रंजन,अजेय, यादविंदर शर्मा, नवनीत, गुरमीत बेदी आदि भी अपनी कविताओं में हिमाचली लोक जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं। जहां तक साहित्य के अध्ययन की बात है मैंने पाया कि कि लोग साहित्य पढ़ना चाहते हैं। बशर्ते कि कोई उन तक साहित्य पहुंचाने की कोशिश करे। मैं  प्रदेश में साहित्यिक पत्रिकाओं का वितरण करता हूं। इन पत्रिकाओं का वितरण करते हुए मैंने पाया है कि लोग पत्रिका पढ़ना चाहते हैं। मैं महीने में लगभग तीन सौ पत्रिकाएं वितरित करता हूं। अगर पाठक न होते तो इन पत्रिकाओं को कौन पढ़ता। हां, यह अलग बात है कि प्रदेश में जो लोग लिखते हैं उनमें से बहुत कम हैं जो साहित्य खरीद कर पढ़ते हैं। और रही हिमाचल विश्वविद्यालय की बात तो इसकी अकर्मण्यता का कोई जवाब नहीं। पिछले दिनों एक पत्रकार ने हिमाचल विश्वविद्यालय में  पढ़ रहे बच्चों से जब यह सवाल पूछा कि हिमाचल में कौन -कौन से कवि और लेखक हैं? तो दो तीन छात्रों के अलावा किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। इससे इस संस्थान की साहित्य के प्रति गंभीरता का पता चलता है।