सरसता की तरफ भी बढ़ें कदम

आशा शैली

हिमाचल में जो आज लिखा जा रहा है और जो पूर्व में लिखा गया है उस सब में हिमाचली लेखिकाएं कहां खड़ी हैं, यह देखना वैसे तो समीक्षकों का काम है, परंतु यदि प्रश्न उठ ही खड़ा होता है तो हमें अपनी सीमाओं को निरखने परखने से भी परहेज नहीं करना चाहिए। भारत के अन्य राज्यों की तरह आज साहित्य के हर क्षेत्र में हिमाचली लेखिकाओं ने अपने लिए स्थान सुनिश्चित किए हैं। कहानी, कविता, उपन्यास, लघुकथा, नाटक, व्यंग्य, समीक्षा, शोध-प्रबंध, लेख-निबंध एवं पत्रकारिता आदि कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जो आज की हिमाचली लेखिका की कलम की पकड़ से बचा हो।  यही नहीं, आलोचना के क्षेत्र में भी आज बहुत सी रचनाकार महिलाएं रचना के गुण-दोष का निष्पक्ष निरूपण कर रही हैं, इतिहास खंगाल रही हैं। हिमाचल का महिला लेखन वर्तमान समय में एक सुखद दौर से गुजर रहा है। हिमाचल का भाषा एवं कला संस्कृति विभाग और कला संस्कृति अकादमी समय-समय पर सर्वेक्षण करती रहती है। ईस्वी सन् 1990 में भाषा विभाग ने एक प्रयोग किया था जिसके तहत प्रदेश की चर्चित-अचर्चित 53 लेखिकाओं को निमंत्रण देकर पालमपुर बुलाया गया था। इस आयोजन में 35 प्रतिभागी लेखिकाएं ही पहुंच पाई थीं और उनकी रचनाओं ने यह सिद्ध कर दिया था कि हिमाचल में भी साहित्य का अमूल्य कोष नारी के आंचल में सिमटा पड़ा है। डा. सरोज परमार, श्रीमती सुदर्शन पटियाल, डा. अमिता शर्मा, रेखा वशिष्ठ,  शबनम शर्मा, सरिता शर्मा, श्रीमती सुदर्शन डोगरा, आशा शैली, उषा महता ‘दीपा’, सरोज सांख्यान, सत्या पुरी, सुनीता गौतम, डॉ. मधुबाला, निशा राघव, सुश्री कांता शर्मा, उर्मिला लता, सुनीता कुमारी, डा. मनोरमा शर्मा, सुमन रैणा, डा. कीर्ति भटिया, मीना शर्मा, जयवंती डिमरी आदि लेखिकाओं ने साहित्य पटल पर अपनी मजबूत भागीदारी दर्ज की है। आकाशवाणी और दूरदर्शन में भी हिमाचली लेखिकाओं को उचित स्थान प्राप्त हुआ है, परंतु यदि कुछ नहीं मिला वह है हिमाचली समीक्षक के यहां स्थान । यहां भी कुछ मठाधीश किस्म के संपादक प्रदेश के महिला लेखन को स्तरीय होने पर भी नाक सिकोड़ कर एक ओर रख देते हैं। हमें महिलाओं की रचना धर्मिता को नजरअंदाज करने वालों को ही नकारना होगा। हां, मेरा यह भी मानना है कि हिमाचली लेखिकाओं को सरस गीतों की ओर भी मुड़ना चाहिए। महिला वर्ग द्वारा लेखन की मुख्यधारा में जुड़ने के प्रयासों को सार्थक दिशा देकर उन्हें सफलता की ओर बढ़ाना होगा। यही हमारा ध्रुव संकल्प होना चाहिए।

-लेखिका, त्रैमासिक पत्रिका ‘शैल सूत्र’ की संपादिका हैं। प्रकाशन के क्षेत्र में, ‘आरती प्रकाशन’ की संस्थापिका हैं, कहानी, कविता, गीत, गजल, शोध लेख, बाल साहित्य, उपन्यास, संस्मरण आदि हर विभिन्न विधाओं पर 22 पुस्तकें प्रकाशित। देश के विभिन्न राज्यों में साहित्यिक सम्मानों से नवाजा गया है।