स्वच्छता के सपनों पर संवेदनहीनता का पलीता

अमृत महाजन लेखक, नूरपुर, कांगड़ा से हैं

किसी अभियान का ऐलान करना एक बात है और उसे अंजाम तक पहुंचाना दूसरी बात। यह एक वास्तविकता है कि भारत में लोग तब तक अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते, जब तक उन्हें कानून का डर न हो। इसीलिए बहुत से लोगों पर आज भी साफ-सफाई के संस्कार ढूंढे नहीं मिलते। इस तरह से तो देश 2019 तक भी स्वच्छ होने से रहा…

भारत को स्वच्छ बनाने के लिए इसके प्रयासों में तेजी लाने तथा स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित करने हेतु प्रधानमंत्री मोदी ने दो अक्तूबर, 2014 को स्वच्छ भारत अभियान का शुभारंभ किया। इस मिशन का उद्देश्य महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि के रूप में 2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को प्राप्त करना है। शुरुआत के वक्त से ही यह अभियान चर्चाओं का विषय रहा है। 2019 के साफ-सुथरे भारत के सपने अभी से देखे जा रहे हैं, लेकिन ऐसा न हो कि बाकी अभियानों की तरह इसका अंजाम भी निराशाजनक ही हो। ऐसा लगता है कि संपूर्ण भारत को स्वच्छ बनाने के लिए पहले से ही कोई कार्य रूपरेखा या कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई थी। मंत्रियों तथा अधिकारियों ने बहुत लंबे-लंबे तथा कीमती झाड़ू पकड़कर चुनिंदा स्थानों पर सफाई करने की चेष्टा की, लेकिन अधिकांश झाड़ुओं की तिलियां भी जमीन को नहीं छू पाईं। अच्छा होता अगर ये नेता पहले से चयनित तथा साफ किए गए स्थान के बजाय किसी शहर या गांव की गली में पड़े कूड़े के ढेर को उठाते। शुरू से ही यह अभियान कम तथा फोटो सेशन अधिक लगा। हां, इसी बहाने झाड़ू बेचने वालों को कुछ लाभ अवश्य हो गया। यहां इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि भारत को निर्मल तथा स्वच्छ रखने का जिम्मा केवल प्रशासन का ही नहीं है। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार आम नागरिक हैं, जिन्हें इस शुभ कार्य की शुरुआत अपने ही घर से करनी होगी।

सर्वप्रथम हर नागरिक को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनका घर, मोहल्ला साफ-सुथरा है या नहीं, लेकिन यह प्रशासन के सहयोग के बिना संभव नहीं है। समस्या यह है कि हम अपने घर तथा गली के कूड़े-कर्कट को आखिर डालें तो कहां डालें। क्या प्रशासन ने इसके लिए पर्याप्त मात्रा में कूड़ेदानों का प्रबंध किया है, उन कूड़ेदानों से कचरा निकालने के लिए सफाई कर्मचारियों का प्रबंध किया है। क्या शहर, गांव के कचरे को फेंकने के लिए कोई डंपिंग साइट उपलब्ध है और उसे समाप्त करने के लिए किसी संयंत्र का प्रबंध किया है। अगर नहीं, तो भाषण भर देने से निर्मल भारत का सपना कभी साकार नहीं होने वाला। किसी अभियान का ऐलान करना एक बात है, उसे अमल में लाकर अंजाम तक पहुंचाना दूसरी बात। अगर वास्तव में समूचे भारत को स्वच्छ बनाना है तो अधिकारियों तथा नेताओं को शहर तथा गांव की गलियों, चौराहों में जाना होगा, जहां गंदगी के अंबार लगे हैं। महीनों से किसी सफाई कर्मचारी ने इनकी ओर देख तक नहीं। केवल सड़कों तथा बाजारों में झाड़ू लेकर फोटो खिंचवाने से यह अभियान सफल नहीं होगा। नगर परिषद के हर पार्षद तथा गांव के वार्ड मेंबर को अपने-अपने वार्ड का दौरा करना होगा, वहां की वास्तविकता को देखना होगा और चरणबद्ध तरीके से सफाई का प्रबंध करना होगा और लोगों को जागरूक करना होगा। यह भी एक वास्तविकता है कि भारत में लोग तब तक अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते, जब तक उन्हें कानून का डर न हो। इसीलिए बहुत से लोगों पर आज भी साफ-सफाई के संस्कार ढूंढे नहीं मिलते। इस तरह से तो भारत स्वच्छ होने से रहा।

हैरानी की बात है कि यूएई देश का जन्म कुछ ही दशक पहले यानी 1971 में हुआ, लेकिन इस शहर को दुनिया का सबसे स्वच्छ तथा सुंदर शहर कहा जाता है। इसका कारण है कि भारी दंड का भय। लोग दंड के भय से कचरा फैलाने की सोच भी नहीं सकते। आलम यह कि अब तो सजा के डर से वहां के लोगों की मानसिकता ही बदल चुकी है, उन्हें भाषण देने या अभियान चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। दुबई में स्थान-स्थान पर कूड़ेदानों का प्रबंध है। कोई सड़क, गली, बाजार, सड़क या दुकान ऐसी नहीं होगी, जहां कूड़ेदान का प्रबंध न हो। शिमला हिमाचल की राजधानी है, जिसे सबसे सुंदर पर्यटन स्थल और पहाड़ों की रानी कहा जाता है, लेकिन वहां की वास्तविकता कुछ और ही है। राजधानी में कई स्थानों पर गंदगी के अंबार लगे हैं। अगर छोटे से शहर नूरपुर की बात की जाए, तो इसके गली-मोहल्लों की हालत इतनी बदतर है कि वहां से गुजरना मुश्किल हो जाता है। प्रशासन ने अरसा पहले पर्चे बांटकर फरमान जारी किया है कि यहां के निवासी अपना कूड़ा शहर से गुजरने वाले ट्रैक्टर ट्राली में डालें। लेकिन यह नहीं बताया कि लोग अपने घरों तथा गली का कूड़ा-कर्कट ट्रैक्टर तक कब और कैसे पहुंचाएं। इस सबके लिए कोई ठोस नीति बनानी होगी। अतः भारत के हर शहर, हर गांव को निर्मल तथा स्वच्छ बनाने के लिए सतत तथा निरंतर प्रयास करना होगा। एक दिन झाड़ू लेकर सड़कों पर फोटो फोटो सेशन का हिस्सा बनने के बजाय पूरे समर्पण के साथ हर नागरिक, सत्ता तथा प्रशासन को प्रयास करना होगा, तभी हम निर्मल भारत की तस्वीर की कल्पना कर सकते हैं।