हारा हुआ राजा

(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर)

महफिल सजी अनीति की, बदबू, बेड़ा गर्क,

विष्ठा पर चिपका दिया है, चांदी का वर्क।

अब्दुला है परखा हुआ, शातिर धोखेबाज,

आतंकी की पैरवी, नहीं आ रहा बाज।

नहीं पड़ रही घास जो, बोले उल्टे बोल,

पांव लटकते कब्र में, बोलों को तो तोल।

कीड़ा है मस्तिष्क में, चढ़ा मानसिक रोग,

तेरे किए कुकर्म हैं, देश रहा है भोग।

अपनी मां को चाहता, तू करना नीलाम,

नागफनी बोई सदा, खाना चाहे आम।

तांडव करते हैं युवा, बतलाता मासूम,

रावत रगड़ेंगे उन्हें, रहे नशे में झूम।

हारा तू, विक्षिप्त तू, कैसी हक की बात?

फैलाते आतंक वो, सुबह-शाम, दिन-रात।

पट्टी बांधे मारता, तू कद्दू में तीर,

हिम्मत है तो छीन ला, पाक अधिकृत कश्मीर।

तुझे पाक के नाम पर, बड़ा उमड़ता प्यार,

खाली कर कश्मीर को, वहीं जता अधिकार।