हिमाचली पुरुषार्थ

बहुआयामी सफलता के अविनाश

पहली कक्षा से लेकर सुपर चाइल्ड स्पेशलिस्ट बनने तक के सफर में कभी दूसरा स्थान देखा ही नहीं। संस्कृति के श्लोक बोलने की प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल कर राष्ट्रपति से सम्मान हासिल है, वहीं संगीत के क्षेत्र में एक ऐसा बांसुरी वादक कि संगीत पे्रमी बस सुनते ही रह जाएं…

उम्र महज 41 वर्ष…और उपलब्धियांे की संख्या इतनी कि किसी भी आंखें खुली की खुली रह जाएं। पहली कक्षा से लेकर सुपर चाइल्ड स्पेशलिस्ट बनने तक के सफर में कभी दूसरा स्थान देखा ही नहीं। संस्कृति के श्लोक बोलने की प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल कर राष्ट्रपति से सम्मान हासिल है, वहीं संगीत के क्षेत्र में एक ऐसा बांसुरी वादक कि संगीत पे्रमी बस सुनते ही रह जाएं। यहां बात हो रही है देश्ा के तीसरे और हिमाचल प्रदेश के पहले सुपर चाइल्ड स्पेशलिस्ट बनने का गौरव हासिल करने वाले हमीरपुर जिला के बड़सर तहसील के तहत पड़ने वाले दांदड़ू निवासी और बिलासपुर के दामाद डा. अविनाश शर्मा की। इनके द्वारा हासिल उपलब्धियां देखकर किसी की भी आंखें चुंधिया सकती हैं। यही नहीं, अब उनके चार रिसर्च पेपर अमरीका में आयोजित होने वाली ग्लोबल कान्फ्रेंस ऑफ मायोसिटीस के लिए मंजूर हुए हैं। 5 से 8 मई तक होने वाली इस मीटिंग में भाग लेने के लिए डा. अविनाश मई महीने में अमरीका के लिए रवाना हो जाएंंगे।

22 अप्रैल, 1976 को दांदड़ू गांव के एसआर शर्मा व पुष्पा शर्मा के घर जन्मे डा. अविनाश बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे। प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से हासिल की। क्योंकि पिता एसआर शर्मा आईटीबीपी में बतौर सेक्शन आफिसर दिल्ली में तैनात थे इसलिए आगे की शिक्षा के लिए परिवार के साथ दिल्ली आ पहुंचे। दिल्ली के आरके पुरम स्थित केवी पब्लिक स्कूल से वर्ष 1993 में बारहवीं की परीक्षा बेहतरीन अंकों के साथ उत्तीर्ण की। डा. अविनाश की शादी बिलासपुर के पंजगाई क्षेत्र के वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर दास गौतम की पुत्री एकता शर्मा से 2002 में हुई। एकता भी कमीशन के थ्रू आज लेक्चरर के पद पर कांगड़ा जिला के रैत में बायोलॉजी विषय की प्रवक्ता हैं। क्योंकि घर में पूजा-पाठ का माहौल था, ऐसे में संस्कृत पर भी पकड़ अच्छी थी। इसी वर्ष आकाशवाणी दिल्ली द्वारा संस्कृत श्लोक पर आयोजित संगोष्ठी में पहला स्थान हासिल कर तत्कालीन राष्ट्रपति के हाथों सम्मान हासिल किया। विज्ञान विषय में रुचि थी। इसी वर्ष एमबीबीएस की परीक्षा पास कर आईजीएमसी शिमला में अध्ययन शुरू कर दिया। 1998 में एमबीबीएस करने के बाद 1999 में कमीशन पास किया और बड़सर स्थित अस्पताल में चिकित्सक के रूप में पहली नियुक्ति हुई।

लेकिन डा. अविनाश का सफर अभी लंबा था। ऐसे में उन्होंने बाल चिकित्सा की पढ़ाई कर 2007 में आईजीएमसी में सेवाएं देना शुरू किया। इसके बाद रामपुर के खनेरी में भी कार्यरत रहे। करीब तीन साल की जॉब के बाद टांडा मेडिकल कालेज में रजिस्ट्रार के पद पर नियुक्त हुए। 2009 से 2012 तक यहां रहे और फिर 2013 में कांगड़ा के लिए स्थानांतरित हुए, लेकिन इस दौरान उन्होंने आगे की पढ़ाई भी जारी रखी और 2014 में सुपर चाइल्ड स्पेशलिस्ट की पढ़ाई के लिए पीजीआई चंडीगढ़ चले गए। जिसके बाद उन्होंने दिन-रात एक करके इस डिग्री को हासिल करने में सफलता हासिल की। अपने विषय में सुपर स्पेशियलिटी की डिग्री हासिल करने वाले वह हिमाचल प्रदेश के पहले चिकित्सक हैं। जबकि इस डिग्री को हासिल करने के बाद वह इस क्षेत्र में देश के तीसरे चिकित्सक बने हैं। डा. अविनाश के छोटे भाई आशीष शर्मा भी बाल चिकित्सा में एमडी हैं।

-कुलभूषण चब्बा, बिलासपुर

जब रू-ब-रू हुए…

कठिन परिस्थितियां ही ले जाती हैं आगे…

एक सुपर स्पेशलिस्ट होने में आपके कलाकार मन का कितना योगदान रहा?

मन और दिमाग का संयोग ही आगे बढ़ने में सदैव काम करता है। कला मानव ह्ृदय को सामाजिकता की ओर ले जाती है। वैसे मैं कोई बड़ा कलाकार नहीं हूं।

क्या कला के प्रति आपका रुझान आज भी बरकरार है?

अपने मनोरंजन के लिए रुझान स्वाभाविक है। मेडिसन व्यावसाय है परंतु कला सामाजिक जीवन का एक उत्कृष्ट पहलू है।

आपके जीवन में मनोरंजन का क्या स्थान है?

मनोरंंजन जीवन के लिए उतना ही जरूरी है, जितना भोजन व जल। बस केवल उचित समय का ध्यान जरूरी है।

चाइल्ड सुपर स्पेशलिस्ट बनने तक आपके जीवन के कौन से सिद्धांत परिष्कृत हुए?

कठिन परिश्रम तथा आत्मबल ही सर्वाेपरि है।

क्या जो सोचा, वही मिला या अभी सीढि़यां बाकी हैं?

अभी तो आगाज है। सेवा का मौका तो इसके बाद ही ज्यादा एवं विस्तृत रूप से मिलेगा। असली ध्येय तो मानव मात्र की सेवा से है, जो मेरे विषय में शिशु समाज से संबंधित होगी।

संस्कृत भाषा के प्रति आपका अनुग्रह क्या आज भी बरकरार है। इस दिशा में  आगे चलकर कुछ करना चाहते हैं?

संस्कृत भाषा से लगाव अभी है, लेकिन फील्ड बदल गई है। ऐसे में अभी तक इस क्षेत्र में कुछ नया करने की संभावना नहीं है।

और संगीत…

संगीत तो जीवनदायी खुशबू है। समयानुसार चलता रहेगा। हां, संस्कृति से लगाव यथावत रहेगा।

क्या पहाड़ी में किसी गायक या लेखक के मुरीद हैं?

कोई विशेष नहीं।

हिमाचली परिस्थितियों में रहकर चाइल्ड सुपरस्पेशलिस्ट बनना कितना कठिन हो जाता है?

वास्तव में कठिन परिस्थितियां ही मानव को आगे ले जाती हैं। परंतु हिमाचली लोग इन परिस्थितियों को अपने पक्ष में कर लेते हैं।

हिमाचली क्षमता और संभावना को आगे बढ़ाने के लिए क्या जरूरी है?

दृढ़ निश्चय एवं कठिन परिश्रम।

हिमाचली चिकित्सा संस्थानों में कोई एक  बदलाव, जो अति आवश्यक है?

पारदर्शिता बनाए रखना।

हिमाचल के युवा डाक्टरों को कोई संदेश।

आगे बढ़ने के लिए सदैव प्रयासरत रहें तथा कठिन परिश्रम व आत्मबल को सर्वाेपरि मानें।

जब अब बतौर हिमाचली गर्वान्वित महसूस करते हैं।

बतौर हिमाचली गौरान्वित होना स्वाभाविक ही है। मां और मातृभूमि  स्वर्ग के समान हैं।