गालीबाज इमाम

शर्मनाक है कि भारत में आज भी ऐसे इमाम हैं, जो देश के चुने हुए प्रधानमंत्री के खिलाफ 25 लाख रुपए का फतवा जारी करते हैं और एक टीवी चैनल पर लाइव बहस के दौरान भाजपा प्रवक्ता प्रेम शुक्ला को ‘बहन की गाली’ देकर चले जाते हैं। हमें गाली को स्पष्ट करना पड़ा, क्योंकि हम यह साफ करना चाहते हैं कि इमाम जैसे पवित्र पद पर आसीन एक शख्स कितना अभद्र, अशालीन, अमर्यादित और गालीबाज है! दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाती भीड़ पर पुलिस के डंडों की प्रतिक्रिया में भाजपा के एक कथित नेता ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सिर काट कर लाने वाले को 11 लाख रुपए इनाम देने का ऐलान किया। इस पर संसद के दोनों सदनों में खूब हंगामा मचाया गया। ये दोनों स्थितियां शर्मनाक और दंडनीय हैं। हालांकि भाजपा ने उस ऐलानकर्ता नेता से पार्टी के किसी भी तरह के संबंधों का खंडन किया है। भारत सरीखे लोकतांत्रिक देश में प्रधानमंत्री पर फतवा और निर्वाचित मुख्यमंत्री के खिलाफ सुपारी…! वाकई दुर्भाग्यपूर्ण और अनैतिक, असामाजिक है। सवालिया तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और ‘गालीबाज इमाम’ के आपसी संबंध भी हैं। उस इमाम ने ममता को अपनी ‘बहन’ माना है। ममता जब केंद्र में रेल मंत्री थीं, तब भी इसी इमाम का एक उल्लेख बेनकाब हुआ था। सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ फतवेबाज और सार्वजनिक तौर पर गालीबाज यह इमाम क्या इमामियत के काबिल भी है? क्या उसे इमाम के पद पर बरकरार रहना चाहिए? क्या कोई इमाम इस हद तक बोल सकता है-‘हिंदोस्तान मोदी के बाप का है क्या?’ दरअसल यह ‘भस्मासुर’ खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पाला था। इमाम नूरूर रहमान बरकती कोलकता की टीपू सुल्तान मस्जिद में इमामियत करते हैं। जब उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ फतवा दिया था, तब मंच पर ममता की तस्वीर और नारों वाले पोस्टर थे, मंच पर ही इमाम की बगल में बैठे तृणमूल कांग्रेस के तीन सांसद तालियां बजा रहे थे, तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की? आज उसी इमाम ने सरेआम भद्दी और अश्लील गाली दी है, तो न इमाम एसोसिएशन कोई कार्रवाई कर रही है और न ही मुख्यमंत्री ने किसी कानूनी कार्रवाई के संकेत दिए हैं। लेकिन 11 लाख रुपए की ‘सुपारी’ देने वाले नौजवान नेता योगेश वार्ष्णेय के खिलाफ केस दर्ज करा दिया गया है। इसी ‘सुपारी’ के बदले में इमाम बरकती ने 22 लाख रुपए का इनाम देने का ऐलान किया है। इमाम ने उस कथित भाजपा नेता का सिर काट कर लाने की इच्छा जाहिर की है। यह क्या हो रहा है? भारत कोई ‘केला गणतंत्र’ नहीं है। यह जुबान निंदनीय या दंडनीय ही नहीं है, बल्कि मुस्लिम समाज को इमाम बरकती का बहिष्कार कर देना चाहिए। पश्चिम बंगाल सरकार को इमाम से हटा कर बरकती को जेल की सलाखों के पीछे फेंक देना चाहिए। ऐसे ‘धर्मगुरु’ हिंदोस्तान को नहीं चाहिए। इमाम ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ फतवा नोटबंदी के दौर में दिया था। उसने प्रधानमंत्री को हटाकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को देश का प्रधानमंत्री बनाने का भी बयान दिया था। इस तरह इमाम के साथ ममता भी कसूरवार हैं। वह सियासी बयान या फतवा बुनियादी तौर पर गैर-कानूनी, गैर-लोकतांत्रिक, गैर-संघीय और गैर-राष्ट्रीय, गैर-इस्लामी था। इमाम की तर्ज में ही कहा जाए, तो क्या यह लोकतंत्र बरकती के बाप का है? गौरतलब यह है कि केंद्र में वाजपेयी सरकार के दौरान ममता रेल मंत्री थीं, तब उन्होंने हज के लिए बरकती के नाम की सिफारिश की थी और वह हज करने भी गया था। जाहिर है कि सरकारी मदद भी मिली होगी! हैरत है कि बरकती कहने को इमाम है, लेकिन इतना असहिष्णु है कि सरेआम टीवी चैनल पर भाजपा प्रवक्ता को गाली देता है। भाजपा को आप नापसंद कर सकते हैं, उसकी नीतियों की आलोचना कर सकते हैं, उसके विकासवादी एजेंडे पर सवाल उठा सकते हैं, लेकिन सरेआम गाली देना तो ‘जंगलीपन’ है। क्या इस्लाम में ऐसे इमामों को भी इजाजत दी गई है? फतवा मजहबी मामलों में ही दिया जाता है, लेकिन बरकती का फतवा और गाली दोनों ही सियासी हैं। क्या ऐसे इमाम को बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिए? क्या उसका सामाजिक और सार्वजनिक बहिष्कार नहीं करना चाहिए? ममता बनर्जी को इस संदर्भ में जरूर बोलना चाहिए, क्योंकि यह मुद्दा वैचारिकता का नहीं, अराजकता का है।