चुनावी किश्तियों पर सवार आकांक्षाएं

नीलम सूद लेखिका, पालमपुर से हैं

बीते लंबे समय से दो राजनीतिक परिवारों के अहं एवं एक-दूसरे को भ्रष्ट साबित करने की लड़ाई  निरंतर जारी रहने से विकास कार्यों पर से मौजूदा सरकार का ध्यान हटा है। उसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ा है, वहीं दूसरी तरफ जेपी नड्डा का राज्य की राजनीति से बाहर होना भी किसी से छिपा नहीं है…

चुनावी वर्ष है, सो प्रदेश के नेताओं की आकांक्षाओं, महत्त्वाकांक्षाओं एवं गुटबाजी का चरम पर होना स्वाभाविक ही है। गुटबाजी का ही जलवा है कि बीते चार वर्षों में विकास की गति कहीं दौड़ती हुई दिखी, कहीं एकदम धीमी हो गई और कहीं तो नदारद ही रही।  बड़ी-बड़ी घोषणाएं, जैसे कि मोनो रेल, होली-चामुंडा सुरंग, आईटी पार्क इत्यादि हवाहवाई हो गईं। सरकार ईमानदारी व निष्ठा से काम करने वाले अधिकारियों के   तबादलों में उलझ कर रह गई। खनन माफिया की रहनुमाई करने पर माननीय उच्च न्यायालय को स्वयं संज्ञान लेते हुए सरकार से न केवल जवाब मांगना पड़ा, बल्कि सरकार को लताड़ भी लगानी पड़ी। सरकार का आधे से अधिक समय तो भ्रष्टाचार के दागों को धोने में निकल गया। ईडी, आयकर विभाग, सीबीआई, कोर्ट-कचहरी जैसे शब्दों ने जनता के सम्मुख कई प्रश्न खड़े किए और अटकलों को हवा दी, जिससे उसका ध्यान गड्ढे युक्त सड़कों से हटकर बिना आग के धुआं कैसे उठ रहा है, जैसे प्रश्नों के उत्तर तलाशने और समाचार पत्रों पर केंद्रित रहा। विपक्ष की चीखो पुकार सत्ता की गर्मी के आगे ठंडी रही। विकास का पैमाना स्कूल-कालेज खोलने तक सिमट गया बजाय शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के। मेडिकल कालेजों की संख्या बढ़ने के साथ स्वास्थ्य सेवाएं सुधरने की अपेक्षा कहीं कमजोर पड़ती गईं।

केंद्रीय योजनाओं के प्रति सरकार का उदासीन रवैया उन्हें ठंडे बस्ते में डाल गया। भ्रष्टाचार का बोलबाला व चमचों की चांदी रही। जो बहती गंगा में हाथ धोने से महरूम रह गए, उन का दर्द और असंतोष अखबारों की सुर्खियां बन गया। रैलियों के माध्यम से जनाधार को साबित करने की भरपूर कोशिशों के बीच बेरोजगारी भत्ते को भुनाने का प्रयास हुआ, लेकिन यहां किसी को यह जानने की फुर्सत नहीं कि युवा आखिर सरकार से अपेक्षा क्या रखता है। अगर बेरोजगारी भत्ते वाले डेढ़ सौ करोड़ का स्वरोजगार आधारित ग्रामीण या लघु उद्योगों में लगाया होता, तो कई बेरोजगारों को आर्थिकी के नियमित स्रोत मिलते, लेकिन यहां तो कम बांटकर भी बड़े वर्ग को साधने की कला काम कर गई।धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने की मुहिम   वाद-विवाद के बीच, राजकीय कोष पर भार की अनदेखी कहें या अत्यधिक बोझ तले दबे शिमला को  भार मुक्त करने की कवायद, जो भी हो वफादारों को इनाम व विरोधियों को सबक सिखाने का मुकाम  हासिल कर गई। कुल मिलाकर पूरे चार वर्ष संगठन और सरकार की तनातनी और नौटंकी विपक्ष को मजबूत करने में सहायक हुई, जिसका भोरंज उपचुनाव अपवाद नहीं हो सकता। मोदी सरकार की लोकप्रियता और राज्य सरकार की नाकामियों ने टूटते-बिखरते विपक्ष को संजीवनी दे कर एकजुट तो किया, परंतु अभिलाषाओं की लहरों पर सवार भाजपा नेता एवं कार्यकर्ता क्या हासिल कर पाते हैं, यह तो समय तय करेगा, परंतु पार्टी में कुकुरमुत्तों की तरह उगते छोटे-बड़े नेताओं को पार्टी टिकट की चाह में लाइन में खड़े रहना हाई कमान के लिए सिरदर्दी अवश्य साबित हो सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के ‘तपेदिक मुक्त भारत’ अभियान  का शुभारंभ  कांगड़ा से करना एवं उनके आगमन पर उमड़ी भीड़ से चुनावों की आहट का आभास तो हो ही गया, परंतु भाजपा का नया आकार क्या होगा, इस पर संशय कायम है।

बीते लंबे समय से दो राजनीतिक परिवारों के अहं एवं एक-दूसरे को भ्रष्ट साबित करने की लड़ाई  निरंतर जारी रहने से विकास कार्यों पर से मौजूदा सरकार का ध्यान हटा है। उसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ा है, वहीं दूसरी तरफ  नड्डा जी का राज्य की राजनीति से बाहर होना भी किसी से छिपा नहीं है।अब प्रदेश की जनता भी इन दो परिवारों के रोज-रोज के मजमे से तंग आ चुकी है। हालांकि जनता राजनीति के कतई खिलाफ नहीं है और राजनेता भी अपने इस धर्म को निभाएंगे, लेकिन इस खींचातानी में प्रदेश अब तक जो कुछ गंवा चुका है, उसका हिसाब कैसे होगा? प्रदेश में अब तक जो संकीर्ण राजनीति अब तक होती आई है, उससे जनता के मन में भी एक टीस सी पैदा हो चुकी है और गुबार बढ़े, इससे पहले नेताओं को संभलना होगा। अतः भाजपा की गुटबाजी को समाप्त करना बड़े नेताओं के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी पार्टियों से जनता को जल्द ही निजात मिलेगी, ऐसी आशा तो मोदी व अमित शाह से की जा सकती है। कांग्रेस के कुछ बड़े व असंतुष्ट नेताओं पर डोरे डालने से बेहतर होगा कि भाजपा हाई कमान जनता का दिल जीतने की खातिर अपनी पार्टी के कुछ भ्रष्ट नेताओं को पीछे कर साफ-सुथरी छवि वाले नेताओं को आगे लाए क्योंकि जनता परिवर्तन का मन बना बैठी है। अतः योगी सरीखा कोई नेता ही राज्य को पटरी पर ला सकता है।

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