चुनावी भट्ठी और राजनीति की रोटियां

( सुरेश कुमार, योल )

इस साल हिमाचल विधानसभा चुनाव होने हैं, तो जाहिर सी बात है कि प्रदेश राजनीति से तपेगा। हर कोई इन चुनावों की चाशनी से कुछ न कुछ मिठास लूटने की जुगाड़ में रहेगा। नेता वोट बटोरने के जुगाड़ में रहेंगे, तो आमजन भी इस दौरान अपना कुछ न कुछ फायदा जरूर तलाशेगा। दिहाड़ीदार पक्का होने का सरकार पर दबाव बनाएगा और जो पक्का हो गया वह पुरानी पेंशन बहाल करने को सरकार से कहेगा। चुनावी वर्ष है और हर कोई बहती गंगा में हाथ धोना चाहेगा। सब जानते हैं कि सरकार आखिरी साल में 90 प्रतिशत वादे पूरे करती है या यूं कहें कि सरकार ने चुनावी वर्ष के लिए कुछ मसाला बचाया होता है ताकि चुनावी वर्ष में वोटों के जुगाड़ से अगले पांच सालों के लिए जमीन पक्की हो सके। जब से देश आजाद हुआ है और जब से चुनाव हो रहे हैं, तब से यही होता आ रहा है। न नेता सोचते हैं कि प्रदेश पर राजनीतिक रोटियां सेंकने से कितना बोझ पड़ेगा और न आमजन सोचता है कि अपने छोटे-छोटे लाभ लेने के लिए प्रदेश का दम निकाले जा रहा है। फिर भी नेता और जनता खुद को देशभक्त दिखाती है और अपने ही प्रदेश की बोटी-बोटी नोचने के लिए आतुर रहते हैं। जिस प्रदेश को समृद्ध बनाने का सपना हमारे बुजुर्गों ने देखा था, आज वह प्रदेश तो अपनों का ही शिकार हो गया। नेताओं के लिए और लोगों के लिए चुनावी वर्ष लॉटरी जैसा ही है कि लूट सके तो लूट क्योंकि फिर पांच साल कुछ नहीं मिलेगा।