नशा तो दौलत का भी बोतल से कम नहीं

( सूबेदार मेजर (से.नि.) केसी शर्मा, गगल, कांगड़ा )

किसी बुराई से मुक्ति पाना है, तो जन आंदोलन एक कारगर तरीका है, लेकिन शराबखोरी की बुराई का अंत मेरे हिसाब से असंभव है। शराब का सेवन प्राचीन काल से दुनिया में होता आया है। आज भी शराब पीने वालों की संख्या करोड़ों में है। गरीब से लेकर अमीर तक शराब का सेवन करता है। जब भी कहीं खुशी का माहौल हो, कोई बड़ी दावत हो, तो शराब परोसना एक आम बात है। शराब में कोई खराबी नहीं, खराबी है हमारे व्यवहार में, हमारी सोच में। हां, परिवार को भूखा रखकर कोई शराब पीता है, तो उसमें बुराई है। शराब पीकर घर में मार-पिटाई करना अपराध है। नशा तो दौलत में शराब से भी अधिक है, जो उस नशे में इनसान को इनसान नहीं समझने देती। धन-दौलत के इस मद में न जाने इनसान कितनी बार गुनहगार बन बैठता है। शराब के नशे में जहां इनसान अपने सोचने-समझने की शक्ति गंवा बैठता है, वहीं पैसे के नशे में झूमते इनसान को भी कहां अच्छे-बुरे की खबर रहती है। कहना न होगा कि उन हालात में वह कई मर्तबा ऐसी हरकतें कर जाता है, जो समाज में स्वीकार्य नहीं होतीं। ऐसे में शराब के साथ-साथ धन-दौलत के नशे पर भी हमें विचार करना होगा कि इस नशे में चूर होकर हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे।